19-Aug-2019 06:21 AM
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बुंदेलखंड के ग्रामीण क्षेत्रों से पलायन रोकने एवं गांव में ही मजदूरी उपलब्ध कराने के लिए चलाई गई मनरेगा से मजदूरों का मोहभंग होता जा रहा हैं। पिछले तीन साल के आंकड़ों पर नजर डाले तो मनरेगा में मजदूरी करने वालों की संख्या में खासी कमी आई हैं। मनरेगा में कम हो रही मजदूरों की संख्या साफ करती हैं कि जिले के लोग मजदूरी के लिए पलायन कर रहे हैं। टीकमगढ़ जिले में महात्मा गांधी ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना में मजदूर काम करने से बच रहे हैं। मनरेगा में यदि जिले के पिछले तीन वर्ष के आंकड़ों को देखे तो यह साफ हो जाएगा कि जिले में तेजी से मनरेगा में काम करने वालों की संख्या घट रही हैं। 2017-18 से लेकर आज तक 100 दिन की मजदूरी करने वालों की संख्या में खासी कमी दिखाई दे रही हैं। विदित हो कि जिले में मनरेगा अपने प्रारंभ से ही विवादों एवं भ्रष्टाचार का केन्द्र बनी रही हैं। मनरेगा से मजदूरी की दूरी होने से योजना अपने लक्ष्य को पूरा करती नहीं दिखाई दे रही हैं।
मनरेगा में पिछले तीन साल के आंकड़े साफ बयां करते हैं कि मजदूरों का तेजी से इस योजना से रूझान कम हो रहा हैं। यही कारण हैं कि पिछले तीन वर्ष में 100 दिन की मजदूरी करने वाले मजदूरों की संख्या में जमकर कमी देखी जा रही हैं। मनरेगा योजना में वर्ष 2017-18 में जहां 15914 परिवारों को 100 दिन का रोजगार दिया गया था वहीं 2018-19 में यह घटकर महज 2301 परिवारों पर पहुंच गया था। इस वित्त वर्ष में भी यह आंकड़ा महज 351 परिवारों तक सिमट कर रह गया हैं। मनरेगा में कम हो रहे 100 दिन के रोजगार पाने वाले परिवारों की संख्या चिंता का विषय होना चाहिए।
योजना के तहत अब भी जिले में लापरवाहियां कम होने का नाम नहीं ले रही हैं। अब भी जिले में कई स्थानों से योजना का काम मशीनों से होने की शिकायतें सामने आती हैं। इसके साथ ही मजदूरी भुगतान में होने वाली लापरवाही से भी मजदूरों का योजना से मोहभंग हो रहा हैं। यही कारण हैं कि योजना में हर साल 100 दिन का रोजगार देने वाले परिवारों की संख्या में कमी देखने को मिल रही हैं। मनरेगा में चल रही लापरवाहियों के कारण योजना अपने लक्ष्य को पूरा करने में सफल होती नहीं दिखाई दे रही हैं। इस योजना को प्रारंभ करने का शासन का मुख्य उद्देश्य ग्रामीण क्षेत्रों के मजदूरों का महानगरों की ओर पलायन रोकना एवं उन्हें अपने घर पर ही काम उपलब्ध कराना था। ताकि यह भी अपने बच्चों पर ध्यान दे सकें और उनकी शिक्षा पर भी विपरीत प्रभाव न पड़े। लेकिन मनरेगा में कम हो रही मजदूरों की संख्या, योजना का अपने लक्ष्य से दूर होने की बात कह रही हैं। जिला पंचायत सीईओ हर्षल पंचोली कहते हैं कि यह सही हैं कि मजदूरों का काम कम हुआ हैं। योजना के लक्ष्य को पाने के लिए लेबर का उपयोग बढ़ाने के लिए कार्ययोजना बनाई जा रही हैं। पंचायतों में रोजगार दिवस का आयोजन किया जाएगा। इसे अभियान की तरह चलाया जाएगा। एक बार मजदूर काम करने आना शुरू होंगे तो इसमें लापरवाहियां भी कम होंगी। हर पंचायत में मस्टर चस्पा कर काम की जानकारी दी जाएगी। इसका पूरा शेड्यूल बनाकर योजना के लक्ष्य को पूरा किया जाएगा।
बुंदेलखंड में बेरोजगारी सबसे विकराल समस्या है। रोजगार के अभाव में हजारों शिक्षित और गैर शिक्षित युवा महानगरों में पनाह लेकर दो वक्त की रोटी कमा रहे हैं। ऐसा भी नहीं कि विभिन्न राजनीतिक दल इस समस्या से अनजान हों, लेकिन किसी भी दल ने बुंदेलखंड की इस समस्या को अपने एजेंडे में तरजीह नहीं दी है। उत्तर प्रदेश के हिस्से वाले बुंदेलखंड में चित्रकूट जिले की बरगढ़ ग्लास फैक्ट्री और बांदा जिले की कताई मिल दो ही रोजगार मुहैया कराने के संसाधन थे, जो पहले से ही बंद पड़ी हैं। सभी चार लोकसभा और सभी उन्नीस विधानसभा सीटों पर काबिज होने के बाद भी भाजपा ने इस दिशा में कोई पहल नहीं की है। हर चुनाव की तरह इस आम लोकसभा चुनाव में भी सभी दल बेरोजगारों को झूठ का झुनझुना थमाने की कोशिश कर रहे हैं। चित्रकूटधाम मंडल बांदा के चार जिलों बांदा, चित्रकूट, महोबा और हमीरपुर के सरकारी सेवायोजन विभाग में 85 हजार शिक्षित बेरोजगार दर्ज हैं, जो किसी भी रोजगार की आस लगाए अब भी बैठे हैं।
-सिद्धार्थ पाण्डे