18-Jul-2019 09:19 AM
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लोकसभा चुनाव में भाजपा ने उत्तर प्रदेश में भले ही अच्छा प्रदर्शन किया है, लेकिन राज्य में 12 सीटों पर होने वाले उपचुनाव को पार्टी अपनी असली परीक्षा मान रही है। क्योंकि ये उपचुनाव प्रदेश सरकार के परफॉर्मेंस और स्थानीय मुद्दों के आधार पर होंगे। इसलिए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जीत के जतन में जुट गए हैं। दो प्रमुख सियासी दल समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी के बीच गठबंधन टूटने के बावजूद सूबे के मुख्यमंत्री आदित्यनाथ योगी प्रदेश की सियासी बिसात पर लड़ाई को लेकर एकतरफा आश्वस्त होना नहीं चाहते हैं। वे विपक्षी एकता में फूट का फायदा उठाने और फिर से मैदान मारने निकल पड़े हैं क्योंकि उनकी सरकार बनने के बाद यूपी में हुए उपचुनावों के नतीजे काफी कड़वे अनुभव लेकर आए थे, जहां से विपक्षी एकता की बुनियाद पड़ी थी।
राज्य के 12 विधायकों के लोकसभा में चुनकर चले जाने से रिक्त हुई सीटों पर उपचुनाव से पहले कील कांटों को योगी दुरुस्त करना चाहते हैं। इसकी शुरुआत उन्होंने शनिवार को सहारनपुर से की और करीब 20 घंटे तक यहां मंडल मुख्यालय पर डेरा डाले रहे। उन्होंने रविवार का दिन मुरादाबाद के नाम किया। अफसरों से उन्होंने विकास और कानून व्यवस्था पर बात की, लेकिन भाजपा के जिम्मेदारों से गंगोह और रामपुर में उपचुनाव की तैयारियों पर खास चर्चा की। सीएम योगी के लिए दोनों ही सीटें खासी अहम हैं। गंगोह सीट सहारनपुर जिले में है, लेकिन शामली जिले की कैराना लोकसभा सीट में आती है और भाजपा के प्रदीप चौधरी ने कैराना से सांसद निर्वाचित होने के बाद छोड़ी है। सांसद बाबू हुकुम सिंह के निधन के बाद एक साल पहले ही कैराना में उपचुनाव हुआ था। सपा, बसपा, रालोद और कांग्रेस के अघोषित गठबंधन से राष्ट्रीय लोकदल के सिंबल पर स्वर्गीय मुनव्वर हसन की पत्नी तबस्सुम हसन ने हुकुम सिंह की बेटी भाजपा की मृगांका सिंह को चुनाव हराया था। लेकिन इस बार सपा-बसपा और रालोद के घोषित गठबंधन से सपा के सिंबल पर लड़कर वह भाजपा से हार गई।
दरअसल कैराना लोकसभा सीट की पांच में से दो नकुड़ और गंगोह विधानसभा सीटें सहारनपुर जिले में आती हैं और कांग्रेस इन पर दूसरे नंबर की पार्टी रही है। 2017 में नकुड़ से कांग्रेस के इमरान मसूद और गंगोह से इनके जुड़वा भाई नोमान मसूद दूसरे नंबर पर रहे थे। उपचुनाव में यही दो सीटें कैराना में भाजपा की हार का कारण बनी थीं। इसीलिए हाल ही में संपन्न लोकसभा चुनाव में सीएम योगी ने इशारों में इमरान मसूद को अजहर मसूद का दामादÓ कहकर ध्रुवीकरण का दांव चला था। रामपुर विधानसभा सीट सपा के फायर ब्रांड नेता आजम खान के सांसद निर्वाचित होने के बाद इस्तीफे से रिक्त हुई है, जो मुरादाबाद मंडल के अंतर्गत आती है। जौहर यूनिवर्सिटी को लेकर आजम खान लगातार योगी सरकार के निशाने पर चल रहे हैं। जाहिर है कि मुख्यमंत्री ने उन मंडलों को स्थलीय समीक्षा के लिए पहले चुना है जहां की विधानसभा सीटों पर उपचुनाव होने हैं। इनमें गंगोह (सहारनपुर), इगलास (अलीगढ़), रामपुर, प्रतापगढ़, गोविंदनगर (कानपुर), टूंडला (फिरोजाबाद), कैंट (लखनऊ), जैदपुर (बाराबंकी), मानिकपुर (चित्रकूट), बलहा (बहराइच), जलालपुर (अंबेडकरनगर) और हमीरपुर हैं।
रामपुर से एसपी और जलालपुर से बीएसपी के विधायक सांसद चुने गए हैं, जबकि बाकी पर भाजपा के विधायक निर्वाचित हुए हैं। भाजपा के लिए उपचुनाव का अनुभव बेहतर नहीं रहा है। योगी के मुख्यमंत्री बनने के बाद गोरखपुर, फूलपुर, कैराना लोकसभा और नूरपुर विधानसभा उपचुनाव भाजपा हार गई थी जबकि चारों सीटें आम चुनाव में भाजपा जीती थी। सरकार और संगठन के स्तर पर उपचुनाव की चुनौती को भाजपा आम चुनाव की तरह ही ले रही है।
भाजपा के सामने एक चुनौती यह भी है कि सांसद बनने वाले उसके कुछ विधायक अपनी सीटों पर रिश्तेदारों को चुनाव लड़ाना चाहते हैं। मगर पार्टी और राज्य सरकार समर्पित कार्यकर्ताओं को लड़ाने के मूड में है। सिफारिश के आधार पर कमजोर उम्मीदवारों की हार होती है तो इसके लिए राज्य सरकार को कठघरे में खड़ा करने में देर नहीं लगेगी, इस बात को योगी भी महसूस कर रहे हैं और संगठन भी। लिहाजा दोनों ही स्तर पर एक साथ कमजोर विपक्ष से जंग जीतने की कवायद शुरू की गई है।
- मधु आलोक निगम