पॉवर शो!
18-Jul-2019 07:05 AM 1235038
आंध्र से गोवा और फिर कर्नाटक में अनैतिक दलबदल के बाद कांग्रेस को मप्र का डर सता रहा है। इस कारण दिल्ली से लेकर भोपाल तक कांग्रेस में एक अंजाना डर व्याप्त हो गया है। इस डर का फायदा उठाने के लिए जहां सरकार को अस्थिर करने की धमकियां दी जा रही हैं वहीं वरिष्ठ नेता अपनी ताकत दिखाने की जुगत में लगे हुए हैं। लोकसभा चुनाव के बाद से अभी तक प्रदेश में मुख्यमंत्री कमलनाथ और पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह का पॉवर शो चल रहा था। लेकिन कर्नाटक का नाटक चरम पर पहुंचते ही मप्र में हालात को काबू करने के लिए ज्योतिरादित्य सिंधिया संकट मोचक की तरह प्रकट हुए और पहले विधानसभा, फिर कॉफी हाउस उसके बाद मुख्यमंत्री निवास और फिर रात को मंत्री तुलसी सिलावट के यहां डिनर डिप्लोमेसी के माध्यम से उन्होंने अपने पॉवर का शो किया। सिंधिया के पॉवर शो में टुकड़े-टुकड़े में बंटी कांग्रेस की झलक साफ दिखी। यही नहीं सत्ता और संगठन के बीच समन्वय बिठाने आए सिंधिया अपने पॉवर प्रजेंटेशन से बुझी हुई राख में आग लगा गए। अपना जनाधार खंगाल गए सिंधिया कर्नाटक और गोवा की हालत देख, कांग्रेस मध्य प्रदेश में हाई अलर्ट पर है, ऐसा बताया जा रहा है। वैसे ये कौन सी कांग्रेस है जो अलर्ट पर है? कांग्रेस की वो कोर टीम अलर्ट पर है - जो अब तक नये अध्यक्ष के चुनाव के लिए जरूरी मीटिंग तक नहीं बुला पायी है या फिर राहुल गांधी, जिनका बाकी बातों से ज्यादा जोर इस पर है कि वो अब कांग्रेस के अध्यक्ष नहीं हैं - और न ही नये अध्यक्ष की चुनाव प्रक्रिया में उनका कोई रोल है। इन सवालों के बीच सिंधिया भोपाल पहुंचे तो पार्टी के लगभग सभी वरिष्ठ नेता किसी न किसी बहाने प्रदेश से दूर हो गए। इनमें दिग्विजय सिंह, अजय सिंह, सुरेश पचौरी, अरुण यादव, कुछ पांच मंत्री और कुछ विधायक शामिल हैं। इन नेताओं की अनुपस्थिति में कांग्रेस ने डिनर डिप्लोमेसी के माध्यम से एकता का दिखावा तो किया ही साथ ही ज्योतिरादित्य सिंधिया ने अपनी ताकत दिखाई और डिनर डिप्लोमेसी के बहाने शक्ति प्रदर्शन किया। पहले विधानसभा पहुंचे सिंधिया ने जहां भाजपा को धांैस दी वहीं अपने नेताओं के समर्थन में मुख्यमंत्री को भी सबक सिखा गए। मप्र में अफसरों और मंत्री के बीच खींचतान पर सिंधिया ने कहा कि ब्यूरोके्रसी एक विचारधारा हैं, मंत्री और ब्यूरोक्रेसी को साथ मिलकर चलना चाहिए। न मंत्री ऊपर न ब्यूरोक्रेसी ऊपर और न ही मुख्यमंत्री ऊपर, सबको टीम भावना से काम करना ही होगा तभी सरकार सफल होगी। यही नहीं वह अपने गुट के मंत्रियों के समर्थन में यह भी कह गए कि न्याय के लिए आवाज उठाना कोई गलत काम नहीं है। वहीं रात को अपने खेमे के मंत्री तुलसी सिलावट के यहां डिनर आयोजित कर उन्होंने कांग्रेस के साथ ही विपक्ष को भी संदेश दिया कि उनमें पार्टी को एक रखने की क्षमता सबसे अधिक है। कांग्रेस की राजनीति को करीब से जानने वाले लोगों का कहना है कि इस आयोजन के बहाने कांग्रेसी एकजुटता की बातें चाहे जितनी हो रही हों, मगर सच्चाई यह है कि लोकसभा चुनाव में गुना से हार के बाद सिंधिया अपने जमीनी आधार और कांग्रेस में उनकी अभी कितनी ताकत है, यह जांचने आए थे। सिंधिया के भोपाल आने का एक और मकसद यह दिखाना था कि मध्यप्रदेश कांग्रेस में अभी एकमात्र वे ही कांग्रेस का चमकीला चेहरा हैं। डिनर डिप्लोमेसी में सरकार को समर्थन दे रहे बसपा, सपा और निर्दलीय विधायकों सहित सारे मंत्री और 90 कांग्रेस विधायक पहुंचे थे। पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह और पूर्व नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह ने डिनर पार्टी से दूरी बनाए रखी। इन दोनों नेताओं की दूरी कांग्रेस में एकजुटता के दावे के बीच कई सवालों को जन्म दे रही है। ऑल इज नो वेल कांग्रेस में एक तरफ कहा जा रहा है कि सरकार पर कोई खतरा नहीं है वहीं दूसरी तरफ क्षत्रप सिंधिया का भोपाल दौरा, दिनभर राजनीतिक व्यस्तता, डिनर डिप्लोमेसी का मकसद यह संदेश देना था कि सूबे में सत्ता और संगठन में ऑल इज वेल वाले हालात हैं। जबकि पार्टी में सबकुछ ठीक नहीं है। कांग्रेस की अंदरूनी गतिविधियों के कारण ही सूबे में राजनीतिक अस्थिरता का माहौल बनाने में भाजपा कामयाब रही है। कमलनाथ सरकार के गठन से लेकर लोकसभा चुनाव के परिणाम तक भाजपा के नेता खम ठोककर दावा करते रहे हैं कि कांग्रेस सरकार ज्यादा दिन की मेहमान नहीं है। विधानसभा सत्र से पहले मुख्यमंत्री कमलनाथ का कांग्रेस विधायक दल की बैठक में विधायकों से सदन में उपस्थिति सुनिश्चित करने का आग्रह इस आशंका के साथ करना कि कभी भी फ्लोर टेस्ट हो सकता है। इसके बाद मंत्रियों से भी कहा गया कि किसी विधायक को नाराज न किया जाए। सिंधिया का भोपाल में पॉवर शो भी इसी कड़ी का अगला कदम था। सिंधिया ने कमलनाथ सरकार को मजबूत सरकार बताते हुए कहा कि भाजपा के सरकार गिराने के मंसूबे कभी पूरे नहीं हो पाएंगे। भाजपा मुंगेरीलाल की तरह हसीन सपने देख रही है। पूर्व मंत्री नरोत्तम मिश्रा सवाल उठाते हैं कि आखिर कांग्रेस को बार-बार यह क्यों कहना पड़ रहा है कि सब ठीक है। ये बेचैनी क्यों हैं? क्यों बार-बार यह कह रहे हैं कि हमारी सरकार पांच साल चलेगी। इस पर सहकारिता मंत्री गोविंद सिंह दावा करते हैं कि कमलनाथ सरकार मजबूत है। पूरे पांच साल चलेगी। उनकी भाजपा को चुनौती है कि चाहे तो फ्लोर टेस्ट करा लें। दूध का दूध, पानी का पानी हो जाएगा। लेकिन मंत्री के इस दावे को खुद सिंधिया खोखला साबित कर गए जब वे विधानसभा अध्यक्ष के खिलाफ धरने पर बैठ गए। दरअसल विधानसभा में पत्रकारों की व्यवस्था में परिवर्तन की बात जब सिंधिया को पता लगी तो वे विधानसभा में जमीन पर धरने पर बैठ गए और अध्यक्ष से मांग की कि वे इस व्यवस्था में बदलाव करें। आखिर सिंधिया अपने इस उपक्रम से क्या संदेश देना चाह रहे थे। कोई काउंटर मेकैनिज्म नहीं मप्र में सरकार पर बहुमत के खतरे की तलवार तो लटक ही रही है, उससे कम खतरनाक दो बड़े नेताओं का झगड़ा है। मध्य प्रदेश से राहुल गांधी ने भले ही ज्योतिरादित्य सिंधिया को यूपी लाकर झगड़ा खत्म करने की कोशिश की लेकिन हालत में जरा भी सुधार नहीं हुआ है। कांग्रेस की सरकार सपोर्ट सिस्टम से चल रही है। कांग्रेस ने यहां भी बहुमत का आंकड़ा 116 हासिल करने के लिए बाहरी सपोर्ट सिस्टम की सहायता ली है। ये सपोर्ट सिस्टम कितना मजबूत है कहने की जरूरत नहीं है। मध्य प्रदेश से मुख्यमंत्री कमलनाथ के लिए राहत की बात निर्दलीय कोटे से मंत्री बने प्रदीप जायसवाल का वो बयान जरूर है - मध्य प्रदेश की स्थिति कर्नाटक और गोवा जैसी नहीं है और इसलिए यहां पर कमलनाथ सरकार पर कोई संकट नहीं है। जब कांग्रेस का आपस में ही ये हाल है तो भाजपा को ऑपरेशन लोटस चलाने में क्या मुश्किल आनी है। भाजपा के एक नेता का दावा है कि सब कुछ आसानी से ही हो सकता है। जब सिंधिया को लगेगा कि कुर्सी तो उन्हें मिलने से रही तो वे खामोश होकर बैठ जाएंगे और कोई तीसरा खेल कर देगा। ऐसा ही कमलनाथ भी सोच रहे होंगे - फिर तो कांग्रेस का हाल वैसा ही होगा जैसा कर्नाटक और गोवा में हो रहा है। राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि कांग्रेस में यह स्थिति इसलिए बनी है कि पार्टी में कोई काउंटर मैकेनिज्म नहीं है। सभी नेता अपनी साख मजबूत करने में लगे हुए हैं। वादे आधे-अधूरे दरअसल प्रदेश में छह माह पहले बनी कांग्रेस सरकार अभी तक खोखले दावों और तबादले में ही व्यस्त रही है। इसलिए सरकार को डर सता रहा है। गौरतलब है कि लोकसभा चुनाव का बिगुल बजते ही सरकार ने दावा किया था कि उसने वचन पत्र के 973 वचनों में से 89 वादे पूरे कर दिए हैं। लेकिन लोकसभा चुनाव परिणाम ने इसकी हकीकत बयां कर दी। उसके बाद छह माह पूरे होने पर सरकार ने दावा किया कि उसने 100 वादे पूरे कर दिए हैं। लेकिन वे कहीं दिखाई नहीं दे रहे हैं। दरअसल वादे केवल कागजों में ही पूरे किए गए हैं। अगर वे धरातल पर उतरते तो आज कांग्रेस की यह स्थिति नहीं होती। अगर सरकार के पिछले छह माह के कार्यकाल को देखा जाए तो वह पूरे समय तबादलों में व्यस्त रही। तबादलों को लेकर सरकार पर कई तरह के आरोप लगते रहे। भोपाल से लेकर दिल्ली तक भाजपा नेता सरकार पर तबादला उद्योग चलाने का आरोप लगाते रहे। यही नहीं मंत्री, मुख्यमंत्री पर मनमानी करने का आरोप लगाते रहे तो मुख्यमंत्री मंत्रियों को अपने आंका के इशारे पर काम करने की तोहमत लगाते रहे। ऐसे में जनहितैशी काम अधर में लटके रहे। इस स्थिति से निपटने के लिए सरकार वचन पत्र के वादों को पूरा करने का दावा कर जनता को भरमाने की कोशिश करती रही। यही कारण है कि सरकार अपने आपको स्वयं स्थिर नहीं मान रही है। सरकार की इसी कमी का फायदा उठाकर भाजपा सरकार गिरने का दावा करती रही है। जानकार बताते हैं कि कांग्रेस के तीन गुटों में सरकार बंटी हुई है। ऐसे में मुख्यमंत्री खुद को असहाय महसूस कर रहे हैं। ऐसे में ज्योतिरादित्य सिंधिया ने अपना पॉवर शो करके कमलनाथ को सकते में डाल दिया है। कांग्रेस की लड़ाई कांग्रेस से कांग्रेस के एक वरिष्ठ पदाधिकारी कहते हैं कि मध्यप्रदेश में इन दिनों कांग्रेस और उसकी सरकार दोनों ही उलझी दिखाई दे रही है। सरकार के अंदर खींचतान है तो बाहर भी पार्टी का बुरा हाल है। लिहाजा यहां से दिल्ली तक चिंता बनी हुई है। कई खेमें में बंट चुकी कांग्रेस में अब पावर का खेल चल रहा है। बाजार की तरह सियासत में भी शर्तें लागू हुआ करती हैं और उसमें फेरबदल के राइट्स भी रिजर्व होते हैं। फिलहाल इन दिनों मध्यप्रदेश कांग्रेस का हाल भी कुछ ऐसा ही है। यहां कांग्रेस पार्टी कई धड़ों में बंटी दिखाई दे रही है। कमलनाथ की कैबिनेट दो फाड़ हो गई है, अनुशासन बिखर गया है, मंत्री आपस में उलझ रहे हैं, ज्योतिरादित्य सिंधिया गुट के मंत्रियों ने मोर्चा खोल दिया है, सरकार पर अल्पमत की तलवार लटक रही है और मुख्यमंत्री कमलनाथ अंदरूनी दबाव में क्षुब्ध हैं। वह कहते हैं कि विधानसभा चुनाव के समय से चल रहा कमलनाथ और ज्योतिरादित्य सिंधिया में पावर की जंग फिर शुरू हो गई। वैसे तो पार्टी हाईकमान युवा हाथों में नेतृत्व सौंपने की बात करती है लेकिन जब मौका आता है तो 70 पार कमलनाथ जैसे नेताओं को कमान सौंप दी जाती है। सिंधिया पहले मुख्यमंत्री पद से साइड हटाए गए फिर गुना-शिवपुरी से लोकसभा का चुनाव भी गंवा बैठे। दिल्ली में भी उनकी राजनीतिक भूमिका फिलहाल समाप्त हो गई है। लिहाजा अब वे मध्यप्रदेश में अपनी दमदार जगह कायम रखना चाहते हैं। सिंधिया समर्थक तो अब अपने नेता की प्रदेश वापसी तक चाहने लगे हैं और उनकी ताजपोशी प्रदेश अध्यक्ष पद पर करने की मांग कर रहे हैं। वह कहते हैं कि चुनाव में मुलाबला भले ही भाजपा बनाम कांग्रेस में होता हो लेकिन मध्यप्रदेश में इन दिनों कांग्रेस बनाम कांग्रेस की लड़ाई चल रही है। कमलनाथ सरकार में आंतरिक प्रतिस्पर्धा का ग्रहण लग चुका है। पार्टी सिंधिया बनाम मुख्यमंत्री कमलनाथ के बहस में उलझी हुई है और मंत्री-विधायक को सरकार से ज्यादा अपने-अपने आकाओं की चिंता है। कमलनाथ और सिंधिया अपने-अपने राजनीतिक जामा पहनाने में लगे हैं। इसका फायदा कांग्रेस को या इन नेताओं को भले ही न हो, लेकिन भाजपा उन्हें डराने में सफल हो रही है।
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