18-Jul-2019 06:58 AM
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छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को जो काम करने हैं, उन सूची में विपक्षी भाजपा की तरफ से उनकी सरकार को अस्थिर करने के प्रयासों की बारीकी से निगरानी शामिल नहीं है। फिर भी उनके सामने चुनौतियों की भरमार है। बघेल को जहां अपनी महत्वाकांक्षी योजना नरवा, गरवा, घुरवा, बारी को अंजाम तक पहुंचाना है, वहीं प्रदेश की अन्य समस्याओं का भी समाधान करना है। बघेल अपनी महत्वाकांक्षी परियोजना को आगे बढ़ाने की कोशिशों में जुटे हुए हैं लेकिन एक पहलू जिससे उन्हें जल्द से जल्द निपटना होगा, वह यह धारणा है कि ज्यादातर मुद्दों पर नौकरशाही और कार्यपालिका में एक राय नहीं है। वैसे अपने पूरे राजनीतिक जीवन में बघेल को हमेशा चुनौतियों से ताकत मिलती रही और कुशल योद्धा की तरह वे हर मुश्किल को पार करते हुए आगे बढ़ते रहे हैं। शायद, वे केवल तभी बेहतर काम कर पाते हैं जब उनके सामने रुकावटें खड़ी होती हैं।
पंद्रह साल बाद सत्ता में लौटी कांग्रेस हालांकि इससे इनकार कर सकती है, लेकिन नौकरशाही में उसके प्रति एक अविश्वास है। यह अविश्वास राज्य में दिसंबर के बाद से तबादलों और पोस्टिंग के कई दौर के कारण बढ़ा है। मैदानी तैनातियों में तो उतना नहीं लेकिन मंत्रालय और निदेशालय स्तर पर अच्छा-खासा अविश्वास है। सिविल प्रशासन, पुलिस स्थानांतरण और तैनातियों के मामलों में सामान्य प्रशासन के मुखिया मुख्य सचिव या पुलिस के बॉस डीजीपी की राय बहुत कम ली गई है या कहें कि अधिकांश तैनातियां और तबादले सियासी आधार पर हो रहे हैं, योग्यता के आधार पर नहीं। दूसरी ओर नौकरशाही अपने राजनीतिक आकाओं के दिमाग को पढऩे में असमर्थ रही है। जमीन पर इसका यह असर हो रहा है कि अधिकारी परियोजनाओं या कार्यों का उत्तरदायित्व लेने से या तो आनाकानी कर रहे हैं या फिर इसे आधे-अधूरे मन से लागू किया जा रहा है। नाम न छापने की शर्त पर मंत्रालय में तैनात एक आइएएस अधिकारी कहते हैं, ज्यादातर अधिकारियों को लगता है कि जो लोग पिछली सरकार के करीबी माने जाते थे, अगर उन्होंने कोई फैसला लिया तो उन पर कार्रवाई हो सकती है। मुख्यमंत्री लगातार तबादलों का इस आधार पर बचाव करते हैं कि यह उनका विशेषाधिकार है।
राज्य में राजनीतिक हलकों में एक और बात बहुत तेजी से फैल रही है कि बघेल अपने अन्य कैबिनेट सहयोगियों को खुलकर काम करने की इजाजत नहीं दे रहे हैं। मंत्रिमंडल में दुर्ग क्षेत्र का वर्चस्व है, मंत्रियों को अपने विभागीय सचिवों के तबादलों का अधिकार नहीं है और कुछ वरिष्ठ विधायकों को मंत्रिमंडल में मंत्री के रूप में समायोजित नहीं करने की बातें खूब हो रही हैं। राजनीतिक सरगर्मियां इशारा करती हैं कि ग्रामीण विकास और स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव और गृह मंत्री तार्मध्वज साहू की मुख्यमंत्री से लगातार ठनी रहती है, क्योंकि ये भी दोनों कांग्रेस के चुनाव जीतने के बाद मुख्यमंत्री पद के कद्दावर दावेदार माने जाते थे। बघेल को सरकार सुचारु रूप से चलाने के लिए मंत्रियों को साथ लेकर चलना होगा, विशेष रूप से उन्हें जो खुद ताकतवर हैं।
मुख्यमंत्री को दंतेवाड़ा के बैलाडीला में अडानी समूह के खनन से जुड़े विवादास्पद मुद्दे से भी निपटना पड़ा। बड़ी संख्या में आदिवासी मौके पर एकत्र हुए और निजी क्षेत्र की कंपनी के खनन कार्य का इस आधार पर विरोध करने लगे कि यह पहाड़ी उनके देवताओं के निवास स्थानों में से एक है। बघेल ने खनन रुकवाकर, कथित रूप से पेड़ों की कटाई की जांच का ऐलान किया और उस ग्राम सभा की महत्वपूर्ण बैठक बुलाई जिसके क्षेत्र में परियोजना है। उन्होंने अस्थायी तौर पर ही सही लेकिन मामले को व्यक्तिगत हस्तक्षेप से सुलझाया है।
छत्तीसगढ़ में माओवाद चिंता का विषय बना हुआ है। बघेल ने माओवाद से निपटने में परामर्शी दृष्टिकोण की बात कही है।
विधानसभा चुनावों के बाद माओवादियों और सुरक्षाकर्मियों के बीच कुछ समय तक शांति के बाद नक्सलवादियों ने फिर गतिविधियां शुरू कर दी हैं।
-रायपुर से टीपी सिंह