04-Jul-2019 07:24 AM
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मप्र की जीवन रेखा नर्मदा नदी की सांसे टूट रही हैं। इसकी वजह है नदी के पानी का अंधाधुंध इस्तेमाल। मध्य प्रदेश में कहीं भी जल संकट की स्थिति से निपटने के लिए नर्मदा को ही एकमेव विकल्प मान लिया गया है। परम्परागत तरीकों तथा पीढिय़ों से साथ दे रहे जल स्रोतों को उपेक्षित कर नर्मदा का पानी खैरात की तरह दूर-दूर बांटा जा रहा है। ऐसे में बार-बार हर पर्व स्नान से पहले नर्मदा का कीमती पानी क्षिप्रा नदी में प्रवाहित करना और इसकी भी चोरी होना पानी के प्रति हमारे समाज और प्रशासन की घोर लापरवाही साबित करता है। हम बीते 25 सालों के जल संकट से भी कोई सबक नहीं ले पा रहे हैं।
मध्यप्रदेश के लिए नर्मदा नदी के पानी का महत्व सभी जानते-पहचानते हैं, लेकिन बीते कुछ महीनों से नर्मदा के बेशकीमती पानी पर डाका डाला जा रहा है। साल दर साल सूखे का सामना करने वाले इस प्रदेश में पानी की बर्बादी का आलम बहुत दुखद है। यह ठीक उसी तरह है, जैसे कोई अपनी पूर्वजों की विरासत रखे हुए हो और किसी रात कोई आकर उससे सब कुछ छीन ले जाए।
यहां बात नर्मदा पर बनाए बांध, प्रदूषण या शहरों को पानी दिए जाने के नाम पर नदी को उलीचने भर की नहीं है। इससे एक कदम आगे बढ़कर नर्मदा क्षिप्रा लिंक से जो पानी नर्मदा से दूर इंदौर तक पाइप लाइन में लाकर क्षिप्रा नदी में प्रवाहित किया जा रहा है, उसकी चोरी की बात है। आज भी इसका हजारों गैलन पानी हर दिन सैकड़ों मोटर पम्प लगाकर चोरी हो रहा है। अब तक इस पर खासी धनराशि भी खर्च हो चुकी है लेकिन नर्मदा का पानी क्षिप्रा में छोड़े जाने के बाद करीब-करीब हर बार गंतव्य तक पहुंचने से पहले ही इस पानी का एक बड़ा हिस्सा क्षिप्रा नदी के आसपास के खेत मालिकों द्वारा पम्प से खींच लिया जाता है।
गौतलब है कि आज से पांच साल पहले 16 फरवरी 2014 को मध्यप्रदेश सरकार ने उज्जैन में आयोजित होने वाले सिंहस्थ की आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर 432 करोड़ की लागत से एक महती परियोजना क्रियान्वित की थी। इसमें करीब सौ किमी दूर नर्मदा नदी का पानी पाइप लाइन से होते हुए क्षिप्रा के उदगम स्थल उज्जैनी तक लाया गया और यहां से नदी में छोड़ते हुए इसे उज्जैन पहुंचाया गया। क्षिप्रा नदी सूख जाने से तीन साल पहले सिंहस्थ का स्नान इसी पानी से कराया गया था। इसके पानी का इस्तेमाल बाकी दिनों में पेयजल, उद्योगों तथा किसानों को देने की बात कही गई थी लेकिन इसका अब तक ज्यादातर उपयोग उज्जैन में पर्व स्नान पर आयोजित भीड़ के स्नान तक ही रहा है। हालांकि इससे देवास शहर को पीने का पानी तथा यहां स्थापित उद्योगों को पानी देने का निर्णय भी हो चुका है।
उपलब्ध आंकड़ों के मुताबिक अब तक बीते पांच सालों में नर्मदा के बहाव क्षेत्र से 90 मिलियन क्यूबिक मीटर पानी उलीच कर क्षिप्रा नदी में प्रवाहित किया गया है। इस पर 200 करोड़ रूपये की भारी भरकम सरकारी धन राशि भी खर्च हो चुकी है। इस महत्वाकांक्षी योजना के पीछे उद्देश्य यह था कि नर्मदा के पानी से क्षिप्रा को सदानीरा रूप दिया जा सकेगा लेकिन यह उद्देश्य अपने प्रारम्भिक चरण से लेकर आज तक कभी मूर्त रूप नहीं ले सका। हमेशा ही पर्व स्नान या मेले के मौके पर पानी छोड़ा गया और हर बार गैरकानूनी तरीके से इसका पानी चोरी होता रहा। इंदौर, देवास और उज्जैन जिले के क्षेत्र में आने वाले नदी किनारे के सैकड़ों किसान अपने खेतों में सिंचाई तथा अन्य कार्यों के लिए सीधे मोटर पम्प के जरिये नदी से पानी खींच लेते हैं। इस बात की जानकारी होने के बाद भी आज तक स्थानीय प्रशासन ने कभी इस पर कोई बड़ी कार्यवाही नहीं की।
गौरतलब यह भी है कि प्रदेश के एक बड़े हिस्से से गुजरने वाली नर्मदा नदी पर सरकार ने बीते सालों में कई छोटे-बड़े बांध बना दिए हैं। इससे नदी का प्रवाह प्रभावित हुआ है। दूसरी तरफ नर्मदा के पानी का बड़ा हिस्सा विभिन्न शहरों और कस्बों-गांवों की प्यास बुझाने के नाम पर तो कहीं उद्योग बचाने के नाम पर करोड़ों की लागत से पहुंचाया जा रहा है। नदी के पानी की अंधाधुंध खपत, प्रदूषण की मार और इन बांधों से बाधित होने के बाद भी नर्मदा आज भी सदानीरा बनी हुई है। हालांकि अब वह पहले की तरह वेगवती और प्रचुर जल राशि वाली नहीं रह गई है।
- बृजेश साहू