04-Jul-2019 07:10 AM
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मप्र में भाजपा नेतृत्व चौथी पीढ़ी के नेताओं को आगे बढ़ाने की कवायद में जुटा हुआ है, लेकिन पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का मप्र से मोहभंग ही नहीं हो रहा है। जबकि विधानसभा चुनाव में मिली हार के बाद आलाकमान ने राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बनाकर उन्हें प्रदेश की राजनीति से अलग होने का संदेश दे दिया था। उसके बाद लोकसभा चुनाव में पार्टी को मिली ऐतिहासिक जीत ने शिवराज सिंह चौहान का मुगालता दूर कर दिया कि उनके बिना भी भाजपा प्रदेश में बड़ी जीत पा सकती है। दरअसल शिवराज सिंह चौहान इसी मुगालते में थे कि प्रदेश में भाजपा के कर्णधार वही हैं। लेकिन मध्यप्रदेश ही नहीं देशभर में आए लोकसभा चुनाव के परिणामों ने यह सिद्ध कर दिया कि मोदी है तो मुमकिन है।
एक बार फिर आलाकमान ने शिवराज को सदस्यता अभियान का राष्ट्रीय दायित्व देकर उन्हें मप्र से अलग होने का संकेत दिया है, लेकिन शिवराज हैं कि मप्र छोडऩे को तैयार नहीं है। 13 साल तक मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे शिवराज सिंह चौहान लगातार पार्टी लाइन से बाहर जाकर जनता के बीच अपनी उपस्थिति दर्ज कराने की कोशिश में लगे हुए हैं। शिवराज सिंह चौहान की गतिविधियां कई बीजेपी नेताओं को रास नहीं आ रहीं हैं। पार्टी का राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बनाए जाने के बाद भी शिवराज सिंह चौहान अपनी गतिविधियों से यह जताने की कोशिश कर रहे हैं कि राज्य में बीजेपी का नेतृत्व अभी भी उनके ही हाथ में है।
शिवराज की कार्यप्रणाली देखकर ऐसा लग रहा है जैसे वे विपक्ष के नेता तौर के पर अपनी ताकतवर भूमिका को छोडऩे वाले नहीं है। भले ही भाजपा हाइकमान ने उन्हें सदस्यता अभियान का राष्ट्रीय संयोजक बना दिया हो। जिस तरह से शिवराज ने भोपाल में आदिवासियों के आंदोलन की आक्रामक अगुवाई की है, उसने कई राजनीतिक हालातों को साफ कर दिया है। शिवराज ने अपनी मौजूदगी दिखाते हुए न सिर्फ अफसरों को चेतावनी दी बल्कि खुद आदिवासियों के साथ ट्रैक्टर में बैठकर धरनास्थल पर पहुंच गए।
मामला आदिवासियों के वन अधिकार और उन पर लादे गए पुलिस प्रकरणों का था, लेकिन जिस तरीके से शिवराज सिंह की मौजूदगी ने इसे गरमा दिया वह सनसनी फैलाने वाला था। यह आदिवासी शिवराज के चुनावी क्षेत्र बुधनी के थे। हालांकि जितनी आक्रामकता से शिवराज ने माहौल बनाया उतनी ही तत्परता से मुख्यमंत्री कमलनाथ ने भी दांव चला। धरना प्रदर्शन से शिवराज को बुलाकर ज्ञापन लिया और सारी मांगे मानने का आश्वासन दे दिया।
इस पूरे घटनाक्रम ने प्रदेश में सत्ता और विपक्ष की बेहतरीन राजनीतिक सौजन्यता का परिचय भी दिया। और यह भी दिखाया कि मुख्यमंत्री कमलनाथ प्रदेश में उदार माहौल के हिमायती हैं। पूर्व मुख्यमंत्री की अगुवाई वाले आंदोलन को वे पूरी तत्परता और गंभीरता से लेते हैं। लेकिन मामला यहीं तक नहीं है।
दरअसल यह पूरा घटनाक्रम शिवराज की उस राजनीति का भी हिस्सा था। जिसके लिए वे पहचाने जाते हैं। सदस्यता अभियान का संयोजक बनने के बाद यह खबरें सुर्खियों में थीं कि उन्हें अब प्रदेश की राजनीति से कुछ समय के लिए रूखसत कर दिया गया है। वे इस धारणा को बदलना चाहते थे वह भी अपनी जमीनी पहचान के साथ। जिसके दम पर उन्होंने 13 साल राज किया। कभी किसान नेता बनकर तो कभी आदिवासियों का हितैषी मामा बनकर। तो कभी भीड़ में खो जाने वाले किसी शख्स के बतौर वे अपनी छवि गढ़ते रहे। अब उसी स्वरूप में उन्होंने भोपाल में आदिवासियों के साथ सात किमी। तक ट्रैक्टर की संवारी की। उन्हीं के बीच का कोई आम नेता बनकर वे मुख्यमंत्री और कांग्रेस सरकार पर दहाड़ते रहे। जिसकी गूंज मंत्रालय तक पहुंची। और मुख्यमंत्री अपने सारे काम छोड़कर सजग हो गए। एक साधारण सा शांतिपूर्ण धरना बड़े राजनीतिक घटनाक्रम में तब्दील हो गया। क्योंकि इसकी अगुवाई पूर्व मुख्यमंत्री जो कर रहे थे।
दरअसल जानकारों का कहना है कि शिवराज सिंह चौहान जानते हैं कि अगर उन्होंने मप्र छोड़ दिया तो उनकी राजनीति का भी पतन शुरू हो जाएगा।
- अरविंद नारद