बेरोजगारी की मार!
19-Jun-2019 08:48 AM 1234832
सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय द्वारा हाल में जारी आंकड़ों के अनुसार, देश में बेरोजगारी चार दशकों में सबसे ज्यादा 6.1 प्रतिशत तक पहुंच चुकी है। इसमें भी हैरान करने वाली बात ये है कि इसमें सबसे ज्यादा प्रभावित 15 से 29 साल के शहरों में रहने वाले युवा हैं। मिंट ने पीएलएफएस के वर्ष 2017-18 के डेटा के अनुसार बताया है कि दिसंबर तिमाही के दौरान लगभग एक चौथाई शहरी युवा जो रोजगार की तलाश में थे, बेरोजगार रह गए। तीन तिमाहियों में लगातार बढऩे के बाद, वित्त वर्ष 2018 की तीसरी तिमाही में शहरी युवाओं में बेरोजगारी की दर 23.7 प्रतिशत थी। यह कहानी उन युवाओं की है जो अपनी औपचारिक शिक्षा पर औसतन 11 साल खर्च करते हैं। पीएलएफएस की शुरूआत प्रत्येक तीन महीने पर शहरों में और साल में एक बार ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार के आंकड़ों की गणना के लिए हुआ था। इस सर्वे में युवाओं की शैक्षणिक योग्यता का भी इस्तेमाल किया जाता है। इसके पीछे मकसद ये है कि विभिन्न नीतियों की वजह से शैक्षणिक स्तर में वृद्धि दर्ज की गई है। इसके माध्यम से ये पता लगाना है कि शैक्षणिक स्तर बढऩे से रोजगार के स्तर में क्या बदलाव आया है। त्रैमासिक सर्वेक्षण केवल वर्तमान साप्ताहिक स्थिति (सीडब्लूएस) के रूप में डेटा को कैप्चर करता है, जबकि वार्षिक सर्वेक्षण में सामान्य स्थिति और सीडब्लूएस दोनों को मापा जाता है। एक व्यक्ति जो सात दिनों के समय के दौरान एक घंटे के लिए भी काम पाने में असमर्थ है, सीडब्लूएस के तहत बेरोजगार माना जाता है। सामान्य स्थिति के तहत, सर्वेक्षण की तारीख से पहले 365 दिनों के समय के आधार पर किसी व्यक्ति की रोजगार गतिविधि निर्धारित की जाती है। पीएलएफएस की वार्षिक रिपोर्ट के अनुसार, सीडब्लूएस में शहरी क्षेत्रों में पुरुषों के बीच बेरोजगारी प्रतिशत 8.8 और महिलाओं के बीच बेरोजगारी प्रतिशत 12.8 था। वहीं, साधारण अवस्था में शहरी क्षेत्र में पुरुषों के बीच बेराजगारी प्रतिशत 7.1 और महिलाओं के बीच 10.8 प्रतिशत रहा। रिपोर्ट के अनुसार, साधारण अवस्था में वित्त वर्ष 2012 में पुरुषों के बीच बेरोजगारी का प्रतिशत 8.1 था, जो वित्त वर्ष 2018 में बढ़कर 18.7 हो गया। वहीं, महिलाओं के बीच उसी समय काल में यह 13.1 प्रतिशत से बढ़कर 27.2 प्रतशित हो गया। यह चिंताजनक है कि बेरोजगारी की दर बढ़ रही है, श्रम की भागीदारी दर (कार्यशील जनसंख्या का अनुपात (15 वर्ष से अधिक) जो या तो कार्यरत है या सक्रिय रूप से नौकरी की तलाश में है) गिर रहा है। नवीनतम सर्वेक्षण के अनुसार, वित्त वर्ष 18 में 15-29 आयु वर्ग के शहरी युवाओं के लिए एलएफपीआर 38.5 प्रतिशत मापा गया है, जो वित्त वर्ष 12 में 40.5 प्रतिशत से कम है, क्योंकि उनमें से अधिक ने उच्च अध्ययन के लिए दाखिला लिया, खासकर महिलाओं ने। वित्त वर्ष 18 में सभी उम्र के लिए भारत का आंकड़ा 36.9 प्रतिशत था, जो वित्त वर्ष 12 में 39.5 प्रतिशत से नीचे था। एलएफपीआर के गिरने और बेरोजगारी बढऩे के दोहरे खतरे का मतलब है कि भारत की रोजगार दर गिर रही है, जो कि मोदी 2.0 सरकार के लिए बुरी खबर है। जिस तेजी से देश की जनसंख्या बढ़ रही है, वैसी स्थिति में यदि कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया तो यह समस्या और विकराल हो जाएगी। यही रिपोर्ट और उसके आंकड़े अगर तयशुदा वक्त यानि दिसंबर 2018 में जारी कर दिये जाते तो लोकसभा चुनाव नतीजों की तस्वीर कुछ और होती। लेकिन नरेंद्र मोदी और उनकी सरकार की नीयत का खोट अब उजागर होने लगा है। कैसे उन्होंने बेरोजगारी जैसे अहम और संवेदनशील मुद्दे पर बेरोजगारों को गुमराह कर उनके वोट राष्ट्रवाद के नाम पर झटके। -कुमार विनोद
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