19-Jun-2019 08:18 AM
1234978
मप्र में बिजली की उपलब्धता में कोई कमी नहीं है। इस वर्ष बिजली की अधिकतम मांग 14 हजार मेगावॉट से अधिक की दर्ज हुई जिसे सफलता से पूरा किया गया। वर्तमान में प्रदेश में बिजली की अधिकतम मांग 9500 मेगावॉट से ऊपर दर्ज हो रही है जबकि पिछले वर्ष इसी अवधि में यह मांग 8600 मेगावॉट से ऊपर दर्ज हो रही थी। फिर भी राजधानी भोपाल सहित प्रदेशभर में बिजली कटौती से लोग त्राही-त्राहि कर रहे हैं। भाजपा ने तो इसे मुद्दा बनाकर सरकार के खिलाफ अभियान छेड़ दिया है। उधर सरकार के निर्देश पर की गई जांच पड़ताल में यह बात सामने आई है कि दरअसल बिजली वितरण कंपनियों का सिस्टम ही बीमार है, जिसके कारण अचानक बिजली गुल हो रही है।
प्रदेश में अचानक से शुरू हुई बिजली कटौती के लिए घटिया बिजली उपकरण जिम्मेदार हैं, यह सच सामने आया है बिजली कंपनियों के निरीक्षण में। बिजली कंपनी के अतिरिक्त महाप्रबंधक स्वाति सिंह ने दूसरे महाप्रबंधकों को भेजे पत्र में साफ लिखा है कि पिछले दिनों मुख्यालय की 17 टीमों ने बिजली सब स्टेशनों का निरीक्षण किया था, जिसमें कई तरह की खामियां सामने आई थीं। उन्होंने पत्र में इन खामियों का साफ-साफ जिक्र किया है। अगर उनके पत्र की भाषा को समझा जाए तो वह साफ कहता है कि अफसरों की लापरवाही और उनके भ्रष्टाचार के कारण ही बिजली ट्रिपिंग की स्थिति बनी हुई है। पत्र में उन्होंने कहा है कि सब स्टेशनों पर एबी स्विच और आईसोलेटर खराब पाए गए या फिर बायपास स्थिति में थे, जबकि उनके स्टोर में यह मौजूद थे। मतलब साफ है कि अफसरों ने लापरवाही करते हुए इन्हें लगाया नहीं, जिसके कारण आए दिन ट्रिपिंग की स्थिति बन रही है। अर्थिंग मानक स्तर पर नहीं है। कई जगह पर अर्थ वायर जोड़े पाए गए। जीआई स्ट्रिप की जगह पर एमएस स्टिप लगाई गई है।
मतलब मानक स्तर से नीचे उतरकर काम हुआ है। अब सवाल यहां पर भी यही है कि क्या बिजली कंपनी के अफसर और मंत्रालय में बैठे अफसर इस जमीनी हकीकत को नहीं जानते हैं? क्या उन्हें नहीं मालूम है कि जमीनी स्तर पर घटिया सामग्री का इस्तेमाल हो रहा है। क्या बिजली मंत्री को भी इसका कुछ भी नहीं मालूम या फिर सब कुछ जानकर सिर्फ आंखें मूंदने का काम सरकार कर रही है। निरीक्षण के दौरान जंपर खराब हालत में मिले। कई जगह जंपरों पर बाइंडिंग भी सही नहीं पाई गई। जबकि बाईडिंग की जगह पर क्लेम्प का उपयोग किया जाना तय है, बावजूद इसके बाइंडिग हो रही है। इतना ही नहीं बाइंडिग में भी वायर और टेप सही क्षमता का उपयोग नहीं किया जा रहा है। रिले कोर्डिनेशन पर भी पत्र में आपत्ति जाहिर की गई है।
बिजली मामलों के जानकार दलवीर सिंह चौहान की मानें तो यह पत्र साफ-साफ कहता है कि बिजली कंपनी के अफसर खुद इस ट्रिपिंग के जिम्मेदार हैं। उन्होंने घटिया सामग्री खरीदी और उसी का इस्तेमाल कर रहे हैं। इसके साथ ही उनकी लापरवाही को पूरे मध्यप्रदेश को झेलना पड़ रहा है। लापरवाही की वजह से रोज बिजली जा रही है। यह अफसरों के भ्रष्टाचार और लापरवाही का साफ नमूना है।
प्रदेश में 33 केवी क्षमता वाले उपकेंद्रों तक बिजली सप्लाई के लिए बिछाई गईं ट्रांसमिशन लाइनों में अमूमन जुलाई और अगस्त में फॉल्ट आते हैं। दरअसल, इन दो महीनों में बाकी महीनों के मुकाबले बिजली की खपत ज्यादा होती है और उपकेंद्रों पर लोड काफी बढ़ जाता है, लेकिन इस साल मई के शुरुआती दौर में ही ट्रांसमिशन लाइनों में फॉल्ट आने लगे हैं। इससे लाइनों की गुणवत्ता पर सवाल उठने लगे हैं, हालांकि लेसा अफसर लोड बढऩे को इसकी वजह बता रहे हैं। उपकेंद्रों से 11 केवी लाइन के जरिए छोटे ट्रांसफार्मर तक बिजली पहुंचती हैं, जहां से आम उपभोक्ताओं के घरों तक सप्लाई होती है। उपकेंद्र में खराबी आने पर 7 से 10 हजार घरों की बिजली गुल हो जाती है, जबकि एक ट्रांसमिशन लाइन से कई उपकेंद्र जुड़े होते हैं। अगर इस लाइन में खराबी आ जाए तो कम से कम 50 हजार घरों की बिजली सप्लाई बाधित हो जाती है। ट्रांसमिशन लाइन का फॉल्ट 15 मिनट बाद भी सही कर दिया जाए तो एक घंटे तक बिजली सप्लाई बाधित रहती है। एक्सपट्र्स के मुताबिक, फॉल्ट सही होने के बाद अचानक सभी उपकरण जलते हैं। इस दौरान लोड अचानक बढ़ता है, जिससे दोबारा फॉल्ट की आशंका होती है। ऐसे में उपकेंद्रों से एक-एक फीडर कर सप्लाई दी जाती है।
मेंटीनेंस और रखरखाव के अभाव में बिजली यूं तो जरा सी हवा-पानी में रुला ही रही है लेकिन इस समय ट्रिपिंग ने बिजली उपभोक्ताओं को हलाकान कर रखा है। घटिया और बूढ़े ट्रांसफार्मर कब हांफने लगें, कोई भरोसा नहीं है। कम क्षमता के ट्रांसफार्मरों में अधिक क्षमता का भार लाद दिए जाने से स्थिति बद से बदतर होती जा रही है। बिजली कंपनी अक्सर ट्रांसफार्मरों के फुंकने पर उपभोक्ताओं द्वारा तय से अधिक लोड की बिजली उपकरणों के उपयोग की बात कहती है, लेकिन ऐसा नहीं है। ट्रांसफार्मरों के रखरखाव में लापरवाही और उपकरणों के अमानक होने के कारण ट्रांसफार्मर जल जाते हैं।
ट्रांसफार्मरों के दनादन खराब होने के पीछे सारा खेल तेल का है। अस्सी फीसदी ट्रांसफार्मर तेल नहीं होने के कारण क्षतिग्रस्त हो रहे हैं जबकि बाकी के बीस फीसदी ट्रांसफार्मर रखरखाव के अभाव में खराब हो रहे हैं। विद्युत वितरण कंपनियों की रिपोर्ट में यह बात सामने आई है। रिपोर्ट कहती है पावर और वितरण ट्रांसफार्मरों में कहीं भी मानक के अनुसार तेल नहीं डाला जा रहा। सबसे खराब स्थिति तो वितरण ट्रांसफार्मरों की है। ये वही ट्रांसफार्मर हैं जो गली, मुहल्ले में किसी नुक्कड़ से घरों के भीतर तक बिजली पहुंचाते हैं। 25 से 1000 केवीए के वितरण ट्रांसफार्मरों का तेल बदलने की बारी कई महीनों में आती है। रखरखाव की बात तो काफी दूर की कौड़ी है। एक छोटा सा उपकरण स्टडÓ तक तो कसा नहीं जाता जबकि इसके ढीला होने मात्र से भी ट्रांसफार्मर के फुंकने की संभावना बढ़ जाती है।
प्रदेश में बिजली सब-स्टेशनों की ऑपरेटिंग में भी बड़े घोटाले की बू आ रही है। दिसंबर 2017 में यह मामला सामने आया था, लेकिन उसे दबा दिया गया। उस समय 30 जिलों के नियंत्रण और अधिकार क्षेत्र वाली पूर्व क्षेत्र विद्युत वितरण कम्पनी के 1018 सब-स्टेशनों की ऑपरेटिंग ठेके पर सवाल उठे थे। सब-स्टेशनों पर निर्धारित कर्मचारी रखने और उनकी योग्यता को लेकर यह सवाल उठ थे। शिकायतों के बाद 18 सब-स्टेशनों की प्रथम दृष्टया जांच में सामने आया है कि एक सब-स्टेशन में चार ऑपरेटर की जगह दो से तीन लोग ही रखे गए और जो रखे गए हैं, वो भी अप्रशिक्षित हैं। इससे वेतन और ईपीएफ की राशि में घालमेल तो किया ही है, अप्रशिक्षित और अपर्याप्त ऑपरेटरों से मशीनरी खराब होने और शट-डाउन में भी बिजली चालू रहने जैसे हादसे हो रहे हैं।
हैरानी की बात है कि ग्रामीण सब-स्टेशनों में 5 और शहरी क्षेत्रों में 3 साल से ठेका व्यवस्था लागू है। ऐसे में बड़े पैमाने पर अनियमितताएं किए जाने की शिकायतें मिलती रही हैं। पूर्व क्षेत्र कम्पनी ने सब-स्टेशनों की ऑपरेटिंग के लिए करीब 6500 ठेका कर्मी रखे गए हैं। इनमें आधे कर्मचारी सब-स्टेशनों और शेष कार्यालयों और कैश काउंटरों पर लगाए हैं। मप्र यूनाइटेड फोरम की ओर से की गई शिकायतों के बाद ऊर्जा विभाग के तत्कालीन अपर मुख्य सचिव इकबाल सिंह ने जांच के निर्देश दिए थे। पूर्व क्षेत्र कंपनी में कई गड़बडिय़ां सामने आई थीं। लेकिन तत्कालीन सरकार ने इस दिशा में कोई ध्यान नहीं दिया। जिसका खामियाजा अब जनता भुगत रही है।
- सुनील सिंह