17-Apr-2019 10:20 AM
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मप्र में हर गांव में मनरेगा के तहत मुक्तिधाम बनाने के लिए सरकार ने बड़ा बजट आवंटित किया था, लेकिन वह भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ गया। आलम यह है कि कई गांव में तो अंतिम क्रिया के लिए श्मशान घाट ही नहीं हैं। प्रदेश के पिछड़े जिलों में शामिल श्योपुर के आधा सैकड़ा गांवों में तो श्मशान की जगह पर फसल उगाई जा रही है। शासन-प्रशासन द्वारा जिले में मुक्तिधामों पर व्यवस्थाएं सुधारे जाने के तमाम दावे करे, लेकिन अभी भी जिले के ग्रामीण क्षेत्र में मुक्तिधाम अतिक्रमण की चपेट में है। यही वजह है कि कई गांवों में तो जहां मुक्तिधाम की जमीन ही अतिक्रमण की चपेट में है तो कहीं मुक्तिधाम तक जाने के रास्ते ही गायब हो गए हैं।
विशेष बात यह है कि गत वर्ष वर्षाकाल में शर्मशार करने वाले कर्ई मामले सामने आने के बाद भी जिले में स्थितियां नहीं सुधरी हैं। यही वजह है कि दो दिन पूर्व ही बिजरपुर में एक मामला सामने आया, जिसमें ग्रामीणों को मुक्तिधाम तक अर्थी ले जाने को गेहूं के खेतों से होकर गुजरना पड़ा। इस मामले ने प्रशासन के दावों की पोल खोल दी। ऐसी स्थितियां जिले के कई गांवों के मुक्तिधामों पर बनी हुई है। जहां लोगों को मृत व्यक्ति का अंतिम संस्कार करने के लिए खासी परेशानियां झेलनी पड़ती हैं, जबकि कई जगह तो मुक्तिधामों की हालत संवारने के लिए शासन के लाखों रुपए फूंके जा चुके है, लेकिन वहां भी हालत वर्तमान में काफी खराब हैं। खास बात यह है कि इन स्थितियों को लेकर जिले के लोग समय-समय पर आवाज भी उठाते आए हैं। मगर इसके बाद भी जिम्मेदारों को इस तरफ ध्यान देने तक की फुर्सत नहीं है।
बताया गया है कि जिले की 225 ग्राम पंचायतों के अंतर्गत कुल 496 गांवों में मुक्तिधाम बनाए जाने थे, जिसके तहत चबूतरा, टीनशेड और बाउंड्रीवॉल बनाए जाने हैं, लेकिन धरातल पर अभी भी एक सैकड़ा से अधिक गांव ऐसे हैं, जहां बाउंड्रीवॉल तो दूर चबूतरे भी नहीं बने हैं। हालांकि विभागीय रिकार्ड में अभी लगभग दौ सैकड़ा के आसपास मुक्तिधाम प्रगतिरत बताए जा रहे हैं, लेकिन ग्राम पंचायतें इसमें केवल कागजी खेल ही खेल रही हैं। वहीं दूसरी ओर कई गांवों के मुक्तिधाम अतिक्रमण का शिकार हो गए हैं, जिसके चलते वहां जमीन ही नहीं बची है, जिसके चलते ग्रामीण खेतों में ही अंतिम संस्कार करने को मजबूर हैं।
इसी तरह छतरपुर में अवैध कब्जा और अतिक्रमण की बाढ़ आ गई है। शहर के बाहरी इलाकों में लोगों द्वारा शासकीय भूमि पर अवैध रूप से कब्जा कर भवन निर्माण का काम किया जा रहा है। इन लोगों ने शासकीय भूमि पर पहले से कब्जा कर अपने स्थान तय कर लिए थे। अब इन स्थानों पर अपने आशियाने बना रहे हैं। शहर में हो रहे बेतहाशा अतिक्रमण पर जिला प्रशासन की भी कोई नजर नहीं है। प्रशासन इस दिशा में कोई कार्रवाई करने की बजाय मूकदर्शक बनकर बैठा है। समय रहते यदि इन अतिक्रमणकारियों को नहीं रोका गया तो यह शासकीय भूमि को छलनी कर अतिक्रमण करते जाएंगे। अतिक्रमणकारियों के हौसले इतने बुलंद हैं कि उन्होंने नालों और श्मशान भूमि के करीब की खाली जगह को भी नहीं बख्शा। शहर में कई ऐसी बस्तियां हैं जहां पर हर हफ्ते एक नया अतिक्रमण किया जा रहा है और इसकी शिकायत बस्ती के लोगों द्वारा पुलिस, राजस्व और नगर पालिका में की जा रही है। लेकिन यहां के अधिकारियों द्वारा किसी भी अतिक्रमणकारी और कब्जाधारी पर कार्रवाई करने की हिमाकत नहीं जुटाई जा रही है।
- धर्मेंद्र सिंह कथूरिया