नरवाई की आग
17-Apr-2019 10:18 AM 1235096
नरवाई जलाना प्रकृति ही नहीं खेतों के लिए भी नुकसान दायक है। इसलिए सुप्रीम कोर्ट और सरकार ने नरवाई जलाने पर प्रतिबंध लगाया हुआ है। इसके बाद भी मप्र सहित देशभर में किसान नरवाई जलाने से चूकते नहीं हैं। मप्र में रबी की फसल कटते ही नरवाई जलाने का सिलसिला ऐसा शुरू हुआ कि हजारों एकड़ फसल जलने और आधा दर्जन मौत के बाद भी नरवाई जलाई जा रही है। नरवाई की आग में कई सैकड़ा किसानों की पूरी फसल खाक हो गई है वहीं कई किसानों के घर जल गए हैं। मप्र में नरवाई जलाने का सबसे बड़ा खामियाजा होशंगाबाद के किसानों को भुगतना पड़ा है। होशंगाबाद में खेतों में आग लगने से हजारों एकड़ गेहूं की फसल जलकर खाक हो गई। हवा चलने की वजह से आग तेजी से आस-पास के इलाके में फैल गई। हादसे में 4 की मौत हो गई जबकि दो दर्जन से अधिक लोग आग की चपेट में आने से झुलस गए। घायलों में कई बच्चे भी शामिल हैं। आग का कहर इतना भयानक था की होशंगाबाद, इटारसी, बाबई सहित ऑर्डनेंस फैक्ट्री एसपीएम की दमकल आग पर काबू नहीं कर पाई। इसके बाद तो भोपाल, सीहोर और रायसेन से भी दमकल को बुलाया गया। तब जाकर आग पर काबू पाया गया। नरवाई की आग में फसल और घर जलने की घटना केवल होशंगाबाद में ही नहीं बल्कि प्रदेश के हर जिले में हुई है। श्योपुर, मुरैना, भिंड, इंदौर, झाबुआ, उज्जैन, खण्डवा, राजगढ़, देवास, सीहोर, विदिशा, रायसेन, बैतूल, नरसिंहपुर, मंडला, जबलपुर, सिंगरौली, छतरपुर, सतना, गुना आदि जिलों में नरवाई जलाने के बाद खेत में खड़ी फसलों के कारण सैकड़ों किसान तबाह हो गए हैं। दरअसल एक किसान की गलती का खामियाजा कई किसानों को भुगतना पड़ रहा है। अनिश्चितताओं की दुनिया में जितने भी खेल होते होंगे या विरोधाभासों के जितने भी मुहावरे सभी भाषाओं में होंगे, वे सब भारत की खेती पर लागू होते हैं। सांप, छछूंदर, नेवले, कुंओं-खाइयों आदि वाले सारे मुहावरों का सच या सांप-सीढ़ी के खेल की अनिश्चितता यहां मिल जाएंगे। मप्र ही नहीं देशभर अप्रैल आते-आते खेती में एक नया मौसम आ जाएगा। वह उत्तर भारत में पराली कहलाता है और मध्यप्रदेश में इसे नरवाई कहते हैं। गेहूं कटाई के बाद अन्न तो घर पहुंच जाएगा, लेकिन शेष बचे तने वाले भाग में किसान खेत में ही आग लगा देगा और अगली फसल के लिए अपना खेत साफ कर लेगा। यही काम खरीफ की फसलों धान या सोयाबीन में अक्टूबर नवम्बर के दौरान होता है। नासा ने सारे भारत सहित, दक्षिण एशिया के अन्य देशों की छवियां सारी दुनिया से साझा की थीं। उन छवियों को देखकर लगता है कि उस समय दुनिया का यह हिस्सा, पूरा का पूरा एक आग का गोला बना हुआ है। आग लगाने वाले किसान की मजबूरी यह है कि गेहूं की फसल कटाई के बाद खेत की सफाई के लिए मजदूर नहीं मिलते, मिलते भी हैं, तो बहुत महंगे मिलते हैं और मशीनों से यह काम कराओं तो 3 से 4 हजार रुपये प्रति एकड़ का खर्चा आता है। इस बढ़ी लागत की पूर्ति फसल के दाम के साथ होना संभव ही नहीं है। इसीलिए मध्य प्रदेश के हरदा जिले के अबगांव के एक किसान अंकित जाट का कहना है कि किसान का काम यदि एक रुपये की माचिस से हो जाता है, तो कई हजार रुपये क्यों खर्च करें। पूरा हिन्दुस्तान घूम आइये, इस मामले में सारे के सारे किसान यही जवाब देंगे। लेकिन, हर किसान को यह भी मालूम है कि यह कानूनी रूप से गलत है। इससे दूसरे नुकसान भी बहुत ज्यादा हैं। किसान गणेश चौहान कहते हैं कि हम सब इन नुकसानों के बारे में बहुत अच्छे से जानते हैं। हम यह भी जानते हैं कि इस आग का बुरा प्रभाव हमारी अपनी जमीन पर पड़ता है। आग से कड़क हुई जमीन में बीज की अंकुरण क्षमता भी कम हो जाती है और भूमि के मित्र जीव भी जलकर मर जाते हैं। हमको यह भी पता है कि इसे रोकने के लिए जिले के कलेक्टर भारतीय दंड संहिता की धारा 144 लगाकर अर्थदंड भी देते हैं, पर हम भी करें तो क्या करें। सारी जाब्ता-फौजदारी के बाद भी देश के अस्सी प्रतिशत से ज्यादा किसान नरवाई जलाते हैं। इसका सबसे बड़ा कारण है अगली फसल के लिए खेत की सफाई में लगने वाला खर्च और समय की कमी। - बृजेश साहू
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