17-Apr-2019 10:09 AM
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राजस्थान में यह मिथक या संयोग 1998 के आम चुनावों से चला आ रहा है कि राज्य में जिस पार्टी की सरकार होती है लोकसभा चुनाव में उसे ही अधिक सीटें मिलती हैं। अगर 2018 विधानसभा चुनाव के वोट प्रतिशत का आंकलन करें तो कांग्रेस का मत प्रतिशत 39.03 प्रतिशत रहा, जो कि भाजपा के वोट प्रतिशत 38.8 से कुछ ही ज्यादा है। इन आंकड़ों को ध्यान में रखकर दिल्ली में बैठे चुनाव विश्लेषक कह सकते हैं कि कांग्रेस राजस्थान की 25 में से 12-13 सीट जीत सकती है। लेकिन इस बार परिस्थितियां कुछ और हैं। मोदी के प्रति लोगों के विश्वास में कमी जरूर आई है, लेकिन पुलवामा हमले और बालाकोट एयर स्ट्राइक के बाद हवा का रुख फिर बदला-बदला सा लग रहा है।
मोदी सरकार में लोगों के विश्वास में कमी की एक प्रमुख वजह गहराता कृषि संकट है। कर्जमाफी की घोषणा कर राज्य की कांग्रेस सरकार ने इसको भुनाने की कोशिश की है। लेकिन इसी मुद्दे को लेकर हनुमान बेनीवाल की रालोपा व माकपा भी चुनाव में दमखम से ताल ठोक रही है। माकपा ने तो राजस्थान के किसान आंदोलनों की आवाज अमराराम चौधरी को भी चुनाव मैदान में उतार दिया है। इन कारणों से किसान असंतोष का कांग्रेस को कोई खास फायदा होता नहीं दिख रहा है। कांग्रेस के पारम्परिक गढ़ दक्षिणी राजस्थान में गुजरात के छोटूभाई वसावा की भारतीय ट्राइबल पार्टी के चुनाव मैदान में आने से कांग्रेस के परम्परागत आदिवासी वोट उससे छिटकते हुए दिख रहे हैं। बीटीपी हाल ही के विधानसभा चुनावों में 2 सीटें जीतने में सफल रही ओर इसने कुछ अन्य आदिवासी बहुल सीटों पर भी कांग्रेस पार्टी को नुकसान पहुंचाया। साथ ही राजस्थान के शहरी क्षेत्रों और गुजरात से लगते हुए राजस्थान के हिस्सों में मोदी के समर्थन में कोई खास गिरावट नहीं देखने को मिली है। इस बात की पुष्टि हाल के विधानसभा चुनाव के परिणाम करते हैं।
एक प्रमुख फैक्टर जो इन चुनाव परिणामों को तय करेगा, वो है ओबीसी वोटरों का रुख। राजस्थान में ओबीसी जातियों की संख्या 50 से 55 प्रतिशत तक मानी जाती है। वर्तमान में सीएम अशोक गहलोत और डिप्टी सीएम सचिन पायलट दोनों इसी वर्ग से आते हैं। इस वर्ग को हम तीन भागों में बांटकर देखने की कोशिश करेंगे। पहली जाट जाति, जो कि करीब 10 प्रतिशत है। इसे किसी भी पार्टी का परम्परागत वोट बैंक नहीं कहा जा सकता है। इस बार इसी जाति से आने वाले हनुमान बेनीवाल की आरएलपी 5-6 सीटों पर कांग्रेस के लिए मुश्किल पैदा कर सकती है। दूसरी बड़ी जाति है गुर्जर, जो कि 7-8 सीटों पर निर्णायक भूमिका अदा करने का प्रभाव रखते हैं। सचिन पायलट इसी समुदाय से आते हैं। सचिन को सीएम नहीं बनाने के कारण गुर्जर समुदाय छला हुआ महसूस कर रहा है। कांग्रेस को इससे नुकसान होने की उम्मीद है। बाकी ओबीसी समुदायों को दोनों प्रमुख पार्टियां यानी कांग्रेस और बीजेपी टिकट वितरण में प्राथमिकता नहीं देती हैं, लेकिन ये अन्य ओबीसी जातियां राजस्थान की जनसंख्या का लगभग एक तिहाई हैं। माली/सैनी जाति, जिससे राजस्थान के सीएम आते हैं, को छोड़कर अन्य जातियां भाजपा की तरफ अपना झुकाव रखती हैं।
राजस्थान का सवर्ण मतदाता जो कि जनसंख्या के 20 प्रतिशत के करीब है, वह पहले से ही भाजपा का पारम्परिक समर्थक था और 10 प्रतिशत सवर्ण आरक्षण देने से यह और भी मजबूती से भाजपा के साथ खड़ा दिख रहा है। हालांकि इसमें से कुछ हिस्सा मुस्लिमों का भी है जो कि परम्परागत रूप से कांग्रेस का वोटर रहा है। राजस्थान में एक वर्ग जो कि अभी भी कांग्रेस के साथ मजबूती से जुड़ा है, वो है एससी समूह। अनुसूचित जाति यहां 18 प्रतिशत है और यह पारम्परिक रूप से कांग्रेस को वोट करती आई है। राजस्थान सरकार ने हाल ही में 2 अप्रैल के भारत बंद में एससी/एसटी आंदोलनकारियों पर लगाए गए मुकदमों की समीक्षा करने की घोषणा की है। इसका कांग्रेस को लाभ मिलने की उम्मीद है।
-जयपुर से आर.के. बिन्नानी