चौपट अर्थव्यवस्था
21-Feb-2019 06:56 AM 1234809
रहमदीन खान सालभर से सो नहीं पाए हैं। राजस्थान के अलवर जिले में अरावली की पहाडिय़ों की तलहटी में 500 घरों वाले खोआबास गांव में रहने वाले रहमदीन चार साल पहले एक घटना के गवाह बने थे जिसने उनकी जिंदगी बदलकर रख दी। घर के आसपास घूमती नजरें उन्हें परेशान करती हैं। उनके यहां बकरियां और भैंस तो हैं, लेकिन वे मवेशी नहीं हैं जो कभी उनकी आमदनी निर्धारित करते थे। खाद्य फसलें यहां सेकंडरी अर्थव्यवस्था का हिस्सा हैं। पहले स्थान पर मवेशी ही हैं। 2017 में जब वह एक स्थानीय मवेशी मेले में दो गाय और बछड़ों को लेकर जा रहे थे, तभी कथित गोरक्षकों के समूह ने उनकी पिटाई कर दी और मवेशी ले गए। घायल और अपमानित रहमदीन ने तभी मवेशियों को छोडऩे का फैसला कर लिया। फर्श को एकटक देखते हुए रहमदीन कहते हैं, हम मवेशी अर्थव्यवस्था के संरक्षक हैं लेकिन हमारी छवि गाय के दुश्मन और गोतस्कर की बना दी गई। इसके बाद पुलिस ने गांव में कई बार छापेमारी की। जानवरों के खिलाफ क्रूरता के कानूनों के आरोप में रहमदीन जैसे कई डेयरी किसानों को जेल में डाल दिया गया। आरोप है कि 2014 से 2017 के बीच उन्हें दो बार गिरफ्तार किया गया। उन्हें जेल से निकलने के लिए 40,000 रुपए तक घूस के रूप में देने पड़े। 2018 में उन्होंने हिंसा के डर से पशुपालन छोड़ दिया। रहमदीन कहते हैं, 65 मवेशियों को त्यागने के बाद मन में एक अजीब बेचैनी है। इसके बिना हम समृद्धि की कल्पना नहीं कर सकते। एक समय समृद्ध माने जाने वाले रहमदीन अब गरीबी रेखा से नीचे के किसान के रूप में देखे जा सकते हैं। उनकी शिकायत यह है कि वह उन लोगों द्वारा गरीबी के दलदल में धकेले गए हैं, जो भूख व गरीबी से रक्षा की बात करते हैं। वह बताते हैं, मुझे मवेशियों के बिना नींद नहीं आती। उनकी ही तरह, अन्य निवासियों ने भी मवेशियों की आवाजाही पर मंडराते हिंसा के बादल, कड़े गाय व्यापार विरोधी कानूनों को देखते हुए मवेशी पालन छोडऩा शुरू कर दिया। मवेशी अब गांव के परिदृश्य से गायब हो चुके हैं। राजस्थान में गोरक्षकों द्वारा नियमित रूप से छापे मारे जाते हैं और अक्सर वे हिंसक हो जाते हैं। राजस्थान बोवाइन एनीमल (वध प्रतिषेध और अस्थायी प्रवासन या निर्यात पर प्रतिबंध) एक्ट, 1995 के तहत पुलिस ने 2017 में सिर्फ 389 मामले दर्ज किए। राज्य सरकार ने 2015 में इस अधिनियम में संशोधन कर मवेशियों को अवैध रूप से ले जाने में लगे वाहन को जब्त करने और गिरफ्तारी के साथ दंडित करने का प्रावधान किया। 2016 में 474 मामले दर्ज हुए जबकि 2015 में 543। राज्य में गाय तस्करी के संदेह में गोरक्षकों द्वारा लिंचिंग की घटनाएं हुईं। अगस्त 2018 में उच्चतम न्यायालय ने जुलाई में अलवर जिले में हुई लिंचिंग की घटना पर राज्य सरकार के गृह विभाग के प्रधान सचिव को निर्देश दिया कि वह इस केस में की गई कार्रवाई का विवरण देते हुए हलफनामा दायर करें। राजस्थान ही नहीं बल्कि उत्तर भारतीय राज्यों में भी हाल के वर्षों में मवेशियों से संबंधित हिंसा में वृद्धि हुई है। देश भर के सिविल सोसाइटी समूहों के संघ भूमि अधिकार आंदोलन की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत में 2010 के बाद से गायों से संबंधित 78 हिंसा (इसमें से 50 उत्तरी भारत के राज्यों में) हुई। लेकिन, 97 प्रतिशत हमले 2014 के बाद हुए। इन सभी घटनाओं में 29 लोगों को मौत के घाट उतार दिया गया। इनमें से ज्यादातर पीडि़त वे हैं, जो पारंपरिक रूप से मवेशी अर्थव्यवस्था पर निर्भर हैं। हालांकि, केंद्र सरकार ने संसद में ऐसे किसी भी आंकड़े से इनकार किया है। पेट पर लात अलवर और आसपास के जिलों के कई दूध संग्राहक दूध उत्पादन में गिरावट की बात करते हैं। गाजौद गांव के एक दुग्ध संग्रहकर्ता शहाबुद्दीन की आमदनी पिछले दो वर्षों के मुकाबले आधी रह गई है। शहाबुद्दीन कहते हैं, मैंने तीन साल पहले पांच गांवों से 800 लीटर दूध इक_ा करने के लिए पांच लोगों को नौकरी दी थी। 2018 में दूध की वह मात्रा एक चौथाई रह गई है। वह हिचकिचाते हुए कहते हैं कि लोगों के पास अब गायों की संख्या कम है। वह अब खुद दूध एकत्र करते हैं। निवासियों का कहना है कि सिर्फ तीन साल पहले हर गांव में पांच से 10 दूध एकत्र करने वाले होते थे। यह भारत के 6.14 लाख करोड़ (2016-17 का अनुमान) से अधिक के डेयरी उद्योग के लिए एक डरावनी चेतावनी हो सकती है, जिसमें 7.3 करोड़ छोटे और सीमांत डेयरी किसान शामिल हैं। दिल्ली की डेयरी कंपनी क्वालिटी लिमिटेड के चेयरमैन आरएस खन्ना कहते हैं, सरकार के लिए इसे जल्दी समझना और ऐसे कानूनों से पीछे हटना बेहतर होगा, जिससे डेयरी विकास में बाधा आती है। -जयपुर से आर.के. बिन्नानी
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