17-Apr-2019 08:43 AM
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भले ही शासन-प्रशासन बाल और शिशु मृत्यु दर रोकने के तमाम दावे करे, लेकिन कुपोषण के कलंक से जूझ रहे मप्र में स्थिति दिन पर दिन खराब होती जा रही है। खासकर देश में कुपोषित जिले के रूप में बदनाम श्योपुर में शिशु मृत्यु दर की स्थिति बेहद चिंताजनक है। यहां हर माह औसतन 64 बच्चे समय से पहले ही दम तोड़ रहे हैं। ये हम नहीं बल्कि स्वास्थ्य विभाग के आंकड़े बयां कर रहे हैं। जिसमें हर साल जिले में औसतन 600 से 700 बच्चों की मौत विभिन्न कारणों से हो जाती है। इसमें संक्रमण भी एक वजह है।
बीते रोज बच्चों की मौतों के संबंध में हाइकोर्ट में चल रही एक जनहित याचिका के जबाव में श्योपुर सीएमएचओ ने अपनी रिपोर्ट दी, जिसमें बताया गया कि जिले की औसत बाल मृत्यु और शिशु मृत्यु दर देश की औसत बाल और शिशु मृत्यु दर से दोगुनी है। जाहिर है कि श्योपुर जिले में बच्चों की बढ़ती मौतों के बाद भी शासन-प्रशासन कोई ठोस कार्य योजना नहीं बना पाया है, जबकि कुपोषण सहित अन्य तमाम योजनाओं के नाम पर करोड़ों रुपए पानी में बहाए जा रहे हैं।
स्वास्थ्य विभाग के रिकॉर्ड में बताया गया है कि बीमारियों और स्वाभाविक मौत सहित विभिन्न वजह से वर्ष 2018 -19 में 0 से 5 वर्ष तक के 773 बच्चों की मौत हुई। इस लिहाज से हर माह लगभग 64 बच्चे काल कवलित हो रहे हैं। विशेष बात यह है कि बच्चों की मौत का यह आंकड़ा पिछले वर्ष से ज्यादा है। गत वर्ष 2017-18 में तो 615 बच्चों की मौत हुई थी। ऐसे में पिछले वर्ष के मुकाबले 158 मौत ज्यादा हुईं। इन स्थितियों से साफ जाहिर है कि श्योपुर जिले में स्वास्थ्य विभाग और महिला बाल विकास विभाग द्वारा बाल स्वास्थ्य और बाल संरक्षण की दिशा में किए जा रहे प्रयास सिर्फ कागजी घोड़े साबित हो रहे हैं।
श्योपुर के माथे पर कुपोषण का कलंक तो लगा ही हुआ है, अब देश की औसत बाल और शिशु मृत्यु दर से जिले की मृत्युदर दोगुनी होने से श्योपुर जिला अब फिर शर्मशार है। स्वास्थ्य विभाग की हाईकोर्ट में पेश हुई रिपोर्ट के मुताबिक देश में जहां बाल मृत्यु दर प्रति 1000 बच्चों पर 52 है और शिशु मृत्यु दर 42 है, लेकिन श्योपुर जिले में यह 98 और 72 है। सीएमएचओ श्योपुर डॉ.एनसी गुप्ता कहते हैं कि बच्चों की मौतों में कई कारण रहते हैं, लेकिन कुपोषण से कोई मौत नहीं हुई है। चूंकि श्योपुर जिला आदिवासी बाहुल्य जिला है, जिसके चलते अज्ञानता और जागरुकता की कमी से कई लोग बच्चों की केयर नहीं कर पाते हैं।
जनवरी 2019 में इकोनोमिक एंड पॉलिटिकल जर्नलÓ में प्रकाशित एक अध्ययन का विश्लेषण करने के बाद यह स्थिति सामने आई है कि मप्र के सभी संसदीय क्षेत्रों में बाल कुपोषण संकेतक- स्टंडिंग यानी बौनापन, उम्र के अनुसार कम वजन, वेस्टिंग और एनीमिया की व्यापकता है। 19 संसदीय क्षेत्र में कुपोषण के कई चेहरे हैं, जिन्हें प्राथमिकता के आधार पर हल किया जाना चाहिए। वर्तमान में, चूंकि लोकसभा निर्वाचन क्षेत्रों और जिलों की सीमाएं ओवरलैप नहीं होती हैं, इसलिए निर्वाचन क्षेत्रों के प्रदर्शन को मापा नहीं जा सकता, क्योंकि कुपोषण के आंकड़ों को जिले द्वारा मापा जाता है। कुपोषण सीखने, रोजगार और आर्थिक विकास को धीमा करता है। फिर भी, 4.66 करोड़ स्टंड बच्चों वाले देश में (दुनिया का एक तिहाई बोझ) कुपोषण लगभग कभी चुनावी मुद्दा नहीं रहा है।
नीति-निर्माताओं के लिए उन क्षेत्रों में संकेतक को मापने की तुलना में शोध परिणामों को और अधिक प्रासंगिक बनाने के लिए क्या बेहतर तरीका है, जहां नीति निर्माता सीधे जिम्मेदार हैं? स्टंड (आयु के अनुसार कम कद), कम वजन (आयु के अनुसार कम वजन), वेस्टेड (आयु के अनुसार कम कद) और एनीमिक (कम हीमोग्लोबिन) बच्चों का राष्ट्रीय औसत क्रमश: 35.9 फीसदी, 33.5 फीसदी, 20.7 फीसदी और 56.8 फीसदी हैं। मतलब लगभग पांच वर्ष से कम आयु के एक तिहाई बच्चे स्टंड और कम वजन वाले हैं, पांचवें वेस्टेड होते हैं और आधे से ज्यादा एनीमिक होते हैं। देश भर के संसदीय क्षेत्रों में, पांच से कम आयु के स्टंड बच्चों का अनुपात 15 फीसदी से 63.6 फीसदी तक था। कम वजन के बच्चों का अनुपात 11.1 फीसदी से 60.9 फीसदी तक, वेस्टेड बच्चों का अनुपात 5.9 फीसदी से 39.6 फीसदी तक और एनीमिक बच्चों का अनुपात 17.8 फीसदी से 83.6 फीसदी तक है।
चुनावी मुद्दा नहीं बना कुपोषण
मप्र में कुपोषण किसी आपदा से कम नहीं है। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक यहां हर दिन करीब 92 बच्चे कुपोषण के कारण काल के गाल में समा रहे हैं। लेकिन हैरानी इस बात की है कि कुपोषण कभी चुनावी मुद्दा नहीं बन पाया है। हालांकि, विधानसभा चुनाव के दौरान कांग्रेस ने अपने वचन पत्र में इस बात का जिक्र किया था कि कुपोषण और शिशु मृत्यु दर को कम करने हेतु हर संभव प्रयास किए जाएंगे। गंभीर कुपोषित और एनीमिया से प्रभावित बच्चों की पहचान कर कुपोषण कम करने एवं एनीमिया से दूर करने की कोशिश की जाएगी। कुपोषण की प्रभावी रोकथाम के लिए खाद्य तेल एवं पैक्ड दुग्ध में विटामिन व सूक्ष्म पोषक तत्वों की पूर्ति की जाएगी। हालांकि सरकार ने अभी इस दिशा में कोई कदम नहीं उठाया है। अब लोकसभा चुनाव का घमासान शुरू हो गया है। अभी तक चुनावी सभाओं में किसी भी पार्टी के प्रत्याशी ने कुपोषण का नाम तक नहीं लिया है। जबकि यथार्थ तो यह है कि देशभर में सर्वाधिक शिशु मृत्यु दर मध्य प्रदेश में ही है।
- सुनील सिंह