17-Aug-2013 06:09 AM
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आजकल चिटफंड और पोंजी स्कीमों के नाम पर निवेशकों के साथ धोखाधड़ी के बढ़ते मामलों पर केंद्रीत है फिल्म बजाते रहोÓ। फिल्म के शीर्षक से ही लगता है कि यह भ्रष्टाचार के विरुद्ध शंखनाद पर

आधारित नए तरीके की मुहिम है। निर्देशक ने एक बात तो अच्छी की कि ज्वलंत विषय को सितारा कलाकारों पर फिल्माना सही नहीं समझा नहीं तो उनकी इमेज को उभारने में ही ज्यादा ध्यान देना पड़ता। काफी समय से ऐसी फिल्में आ भी रही हैं जिनमें कलाकार तो बड़े नहीं थे लेकिन फिर भी अपने सशक्त कथानक के चलते यह फिल्में हिट हुईं। मोहन सभरवाल (रवि किशन) मशहूर उद्योगपति है। उसका फाइनेंस, स्कूल और प्रापर्टी का काम है लेकिन इनकी आड़ में वह कई गैरकानूनी धंधे करता है। उसके साथ फाइनेंस के काम से जुड़े सभरवाल के साथ काम करने वाले मिस्टर बावेजा की छवि निवेशकों के बीच काफी अच्छी है इसी बात का फायदा उठाने की योजना बनाकर मोहन एक निवेश स्कीम लांच करता है और सभरवाल तथा बावेजा को उसमें ज्यादा से ज्यादा निवेशकों को पैसा लगाने के लिए प्रोत्साहित करने का काम सौंपता है। यह स्कीम हिट होती है और लोगों का पैसा आने के बाद सभरवाल इस बात से मुकर जाता है कि बावेजा ने उसे कोई रकम सौंपी है। मामला जब पुलिस के पास पहुंचता है तो वह बावेजा को गिरफ्तार कर उससे पूछताछ करती है लेकिन पुलिस हिरासत में ही उसकी मौत हो जाती है। अब अपने पति बावेजा की इस मौत का बदला लेने के लिए उनकी पत्नी मिसेज बावेजा (डॉली अहलूवालिया) सामने आती हैं और उन्हें इस काम में उनका बेटा सुखी (तुषार कपूर) तथा उसके दोस्त मिंटू हासन (विनय पाठक) और बल्ली (रणवीर शौरी) मदद करते हैं। अभिनय के मामले में मिसेज बावेजा के रोल में डॉली अहलूवालिया का काम सबसे अच्छा रहा। उन्होंने काफी दमदार तरीके से अपनी भूमिका निभाई है। मोहन सभरवाल के रोल में रवि किशन और बल्लू के किरदार में रणवीर शौरी तथा मिंटू के रोल में विनय पाठक भी प्रभावित करने में सफल रहे वहीं तुषार कपूर कोई प्रभाव नहीं छोड़ पाए। फिल्म का गीत संगीत सामान्य है और एक गाना नागिन तो आजकल काफी हिट हो रहा है। निर्देशक शशांक की इस फिल्म को एक बार तो देखा ही जा सकता है।