12-Feb-2019 09:10 AM
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विधानसभा चुनाव के बाद भाजपा और कांग्रेस ने अब लोकसभा चुनाव की तैयारी शुरू कर दी है। भाजपा ने प्रदेश की 29 सीटों मेें से जीत के लिए 26 सीटों का लक्ष्य तय किया है। इसके लिए इन क्षेत्रों में सर्वे कराया जा रहा है। वहीं कांग्रेस फिलहाल 18 लोकसभा सीटों का सर्वे करा रही है। माना जा रहा है कि दोनों पार्टियां का संगठन इस बार पूरी तैयारी से न केवल मैदान में उतरेगा, बल्कि सामूहिक रूप से प्रयास करते हुए कार्यकर्ता लक्ष्य हासिल करने का भी प्रयास करेंगे। दरअसल दोनों पार्टियों की कोशिश है कि लोकसभा की अधिक से अधिक सीटों पर अपना कब्जा जमाया जाए। इसके लिए दिल्ली से लेकर भोपाल तक रणनीति बनाने का दौर चल रहा है।
चुनाव आयोग द्वारा भले ही लोकसभा चुनावों की घोषणा किए जाने में समय है, लेकिन दोनों प्रमुख राजनैतिक दलों भाजपा व कांग्रेस द्वारा अभी से चुनाव की जमीनी तैयारियां शुरु कर दी गई हैं। इस वजह से अभी से इस चुनाव को लेकर सियासी माहौल गर्म होने लगा है। इन दोनों ही दलों द्वारा तैयारियों को लेकर शुरूआती बैठकों का दौर शुरु कर दिया है। यही नहीं संगठन द्वारा संभाग से बूथस्तर तक की टीमों का गठन कर उन्हें अलग-अलग काम का जिम्मा सौंप दिया गया है। भाजपा का पूरा जोर विधानसभा चुनाव में हार की वजह बनी गलतियों से सबक लेकर नई रणनीति बनाने पर है तो डेढ़ दशक बाद प्रदेश में सत्ता में आई कांग्रेस लोकसभा चुनाव में भी अपना प्रदर्शन सुधारने पर पूरा जोर दे रही है।
विधानसभा चुनाव में जीत से उत्साहित कांग्रेस इस बार लोकसभा चुनाव में प्रदेश की करीब डेढ़ दर्जन सीटों पर अपना कब्जा चाहती है। पार्टी को लगता है कि लोगों में भाजपा के खिलाफ नाराजगी है, जिसका उसे फायदा मिलेगा। कांग्रेस इसके लिए 18 जिलों का सर्वे करा रही है, जिनमें पार्टी की विधानसभा चुनाव में बुरी तरह हार हुई है। कांग्रेस संगठन उन कारणों को जानना चाहता है जिनकी वजह से इन जिलों में जनता की मानसिकता पूरे प्रदेश से अलग रही। यह वे जिले हैं जहां पर भाजपा को भारी जीत मिली है। इनमें ज्यादातर जिले विंध्य और मध्य क्षेत्र के हैं। पार्टी का मकसद इन कमियों को दूर कर लोकसभा चुनाव में जीत हासिल करना है।
सर्वे में जिलों में विधानसभा चुनाव के वोटिंग ट्रेड पर ध्यान दिया जा रहा है। दूसरी बड़ी चीज लोगों की मानसिकता है, जिसमें ये जानने की कोशिश की जाएगी कि आखिर यहां की जनता में भाजपा के खिलाफ नाराजगी क्यों नहीं थी, जबकि पूरे प्रदेश में एंटी इंकम्बेंसी का माहौल था। पार्टी अपने कैंडिडेट चयन को लेकर भी पड़ताल कर रही है। ये पता लगाया जा रहा है कि पार्टी उम्मीदवार के चयन में तो मात नहीं खा गई। कांग्रेस का सबसे कमजोर परफॉर्मेंस विंध्य में रहा, जहां 30 में से छह सीटें ही जीत पाई। वहीं, मध्य में 36 में से 13 सीटों पर ही जीत हासिल हुई।
आगामी लोकसभा चुनाव के लिए विजय की रणनीति के साथ भाजपा ने प्रत्येक लोकसभा सीट पर एक स्पेशल टीम गठित की है। 18 सदस्यीय यह टीम पूरे चुनाव के दौरान लोकसभा सीट पर अहम भूमिका में होगी। संसदीय क्षेत्र की सभी प्रमुख राजनीतिक गतिविधियों पर नजर रखने के साथ ही यह टीम सीधे केंद्रीय कार्यालय एवं प्रदेश कार्यालय को फीडबैक भी देगी। यह टीम संंबंधित संसदीय क्षेत्र की हर एक गतिविधि पर नजर रखेगी। इस स्पेशल 18 टीम में प्रत्येक लोकसभा पर एक-एक चुनाव प्रभारी, सह प्रभारी, संयोजक और सह संयोजक, विस्तारक, समन्वयक के साथ तीन मीडिया मैनेजर और तीन स्पेशन मीडिया मैनेजर, पार्टी के लीगल सेल के पदाधिकारी सहित अन्य पदाधिकारी भी शामिल हैं।
संगठन ने राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह के निर्देश के बाद इस स्पेशल टीम को तैनात किया है। टीम में प्रभारी और संयोजक की नियुक्ति संगठन की सिफारिश पर केंद्रीय कार्यालय ने की है जबकि अन्य पदाधिकारियों की नियुक्ति प्रदेश अध्यक्ष, संगठन महामंत्री एवं संभागीय संगठन मंत्रियों एवं स्थानीय सांसद के परामर्श पर की गई है। इसके अलावा लोकसभा चुनाव के लिए सात पदाधिकारियों को विधानसभावार भी तैनात किया गया है।
लोकसभा चुनाव में चंद माह का समय रह जाने की वजह से भाजपा ने अभी से प्रदेश की उन 11 सीटों पर दमदार प्रत्याशियों की तलाश शुरू कर दी है, जिन पर विस चुनाव में पार्टी को पिछडऩा पड़ा है। दो दिन पहले हुई राष्ट्रीय परिषद की बैठक में पार्टी अध्यक्ष अमित शाह ने प्रदेश संगठन को इसके संकेत दे दिए। लोकसभा चुनाव की प्रदेश में तैयारी को लेकर शाह ने लोकसभा चुनाव अभियान समिति को भी एक्टिव कर दिया है। पार्टी आलाकमान का मानना है कि विदिशा, खजुराहो, रतलाम, देवास, गुना, छिंदवाड़ा समेत 11 लोकसभा सीटों पर उम्मीदवारों को लेकर नए सिरे से संगठन में गंभीरता से मंथन की जरूरत है। यही नहीं उनका मानना है कि कांग्रेस दिग्गज कमलनाथ, ज्योतिरादित्य सिंधिया और कांतिलाल भूरिया की सीटों पर भी नई रणनीति व दमदार प्रत्याशी के साथ मैदान में उतरना जरूरी है। यही वजह है कि शाह ने अपने स्तर पर भी सीटों का फीडबैक लिया है।
पार्टी सूत्रों का कहना है कि इस बात की भी तैयारी हो रही है कि तमाम दिग्गजों को इस बार मैदान में उतारा जाए। इनमें पूर्व मुख्यमंत्री व पार्टी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष शिवराज सिंह चौहान से लेकर राज्यसभा सदस्यों में शामिल प्रभात झा व केंद्रीय मंत्री थावरचंद गेहलोत के नाम शामिल हैं। हालांकि अंतिम निर्णय आलाकमान को ही करना है। बताया जा रहा है कि इस बार तमाम सीटों पर प्रत्याशी चयन में अमित शाह की भूमिका ही रहेगी। भाजपा ने खजुराहो के सांसद नागेंद्र सिंह और देवास से सांसद मनोहर ऊंटवाल को विधानसभा चुनाव में उतारा था, जो जीत कर विधायक बन चुके हैं। चूंकि मप्र में भाजपा की 109 विधानसभा सीटें हैं और आगे यदि कांग्रेस की अल्पमत वाली सरकार गिरती है तो सीटों का नंबर गेम अहम साबित होगा। इसलिए भाजपा एक भी विधायक को चुनाव में नहीं उतारेगी। इसीलिए कुछ जगहों पर नए व दमदार चेहरों की भी जरूरत महसूस की जा रही है।
मध्यप्रदेश में मंत्रिमंडल में कई वरिष्ठ कांग्रेस नेताओं को जगह नहीं मिलने से पार्टी के कई विधायक और कार्यकर्ता नाराज हैं। दीपक बावरिया ने कहा, कई वरिष्ठ नेता मंत्री बनने से रह गए हैं, बड़ा जटिल विषय है, राज्य में 35 मंत्री ही बन सकते हैं। लिहाजा प्रदेश और अखिल भारतीय कांग्रेस कोई न कोई रास्ता निकाल ही लेगा। वहीं, उन्होंने गठबंधन को लेकर भी किसी तरह की संभावनाओं से इंकार नहीं किया है।
दीपक बावरिया ने ये भी कहा कि पार्टी के जो वरिष्ठ लीडर विधानसभा चुनाव हार गए हैं। पार्टी उन्हें लोकसभा चुनाव में टिकट देने पर विचार कर सकती है। हालांकि उन्होंने ये भी कहा है कि हारे हुए नेताओं को टिकट देना है या नहीं यह स्टेट कमेटी और चुनाव समीति का अधिकार है। बता दें कि मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव में इस बार कई वरिष्ठ नेताओं को हार का सामना करना पड़ा है। चुरहट विधानसभा सीट से लगातार चुनाव जीत रहे अजय सिंह को इस बार हार का सामना करना पड़ा है। विंध्य क्षेत्र में अजय सिंह को कांग्रेस के सीएम उम्मीदवार के रूप में देखा जा रहा था हालांकि इस बार वो अपना चुनाव हार गए।
- श्याम सिंह सिकरवार