12-Feb-2019 08:34 AM
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किसानों के नाम पर कर्ज दिखा रहीं सहकारी समितियों के कर्ता-धर्ताओं पर कार्रवाई शुरू हो गई है। सागर, कटनी, रीवा समेत कुछ जिलों में कार्रवाई की गई। इसमें सोसायटी प्रबंधक, शाखा प्रबंधक तथा सोसायटी अध्यक्ष पर केस दर्ज किए गए हैं। वहीं कर्जमाफी के आवेदन और निकायों में सूचियों की गड़बड़ी को देखते हुए कृषि व सहकारिता विभाग की संयुक्त बैठक में तय हुआ कि ऐसे मामले की तत्काल जांच व समीक्षा होगी।
भोपाल में जय किसान फसल ऋण माफी मामलों में किसानों की आपत्ति और शिकायतें सुनने के लिए कंट्रोल रूम बना दिया गया है। इसमें 14 अफसरों की ड्यूटी लगाई गई है। यह कंट्रोल रूम कलेक्ट्रेट परिसर में बनाया गया है। ऋण माफी से संबंधित सभी समस्याएं, शिकायतें और आपत्तियां सुनी जाएंगी। प्रदेश भर के किसान इसमें अपनी शिकायतें दर्ज करा सकेंगे। उधर मुख्यमंत्री कमलनाथ ने कहा है कि किसानों की कर्जमाफी के मामले में शिकायतों की जांच कराई जाएगी और दोषियों को बख्शा नहीं जाएगा, उन पर एफआईआर होगी। नाथ ने विदेश यात्रा से लौटने के बाद छिंदवाड़ा में मीडिया से चर्चा में कहा कि किसानों की कर्जमाफी के मामलों में कई शिकायतें आई हैं, खासतौर पर कोऑपरेटिव बैंकों में। ये कांग्रेस की सरकार बनने के बाद एक महीने में नहीं हुआ है, ये सालों से हो रहा पुराना घपला है। इसकी जांच कर दोषियों पर कार्रवाई की जाएगी।
यकीनन यह घोटाला तीन हजार करोड़ के आसपास का हो सकता है और यह अकेले मध्यप्रदेश की कहानी नहीं है। ऐसी घटनाएं हर उस प्रदेश में सामने आ रही हैं, जहां किसानों के कर्जमाफी की घोषणा की गई है। चाहे वो फिर पंजाब हो, महाराष्ट्र, उत्तरप्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान, कर्नाटक या फिर मध्यप्रदेश। हर जगह ऐसे किस्से कहानी सामने आ रहे हैं, जहां या तो किसान का नाम मात्र का कर्ज माफ हो रहा है या फिर किसान ने कर्ज लिया ही नहीं है, लेकिन उसके नाम पर चढ़ा कर्ज माफ किया जा रहा है। जाहिर है, पूरे देश के सहकारिता सिस्टम का यह एक बड़ा झोल सामने आ रहा है। मध्यप्रदेश में बीते पंद्रह साल के दौरान भाजपा की सरकार थी, जिसने हर बार खेती को लाभ का धंधा बनाने का जोर-शोर से ऐलान किया, ब्याज जीरो, शिवराज हीरो के नारे लगाए लेकिन अब जब कमलनाथ सरकार किसानों के कर्ज माफ कर रही है तो बैंकों के कर्ज की ही नई कहानियां सामने आ रही है। ये किस्से कहानियां जाहिर करते हैं कि किसानों को कर्ज देने के नाम पर अराजकता का नंगा नाच हुआ। जिन्होंने कभी सहकारी समिति या बैंक की चौखट तक पार नहीं की, ऐसे किसानों के नाम पर भी भारी-भरकम कर्ज देना बता दिया गया या फिर बड़ी संख्या में कर्जमाफी की श्रेणी में ऐसे किसान शामिल किए जा रहे हैं जिन पर नाम मात्र का कर्जा दर्शाया जा रहा है। सहकारिता मंत्री डॉ. गोविंद सिंह अनुमान लगा रहे हैं कि किसानों को कर्ज देने के नाम पर सहकारिता विभाग में मामला एक हजार करोड़ रुपए के घोटाले का है।
मुख्यमंत्री कमलनाथ इसकी जांच की बात कह चुके हैं। लेकिन क्या यह उचित होगा कि सारा सच सामने आने के पहले ही कमलनाथ सरकार दनादन किसानों का कर्ज माफ करने में जुटी रहे? यह तो वैसा ही होगा, जैसे किसी बीमारी का टीकाकरण करने का लक्ष्य पूरा करने के लिए टीके उन्हें भी लगा दिए जाएं, जिन्हें वह रोग हो ही नहीं। ऐसी प्रक्रिया तो किसानों के भीतर कांग्रेस के लिए भी नाराजगी का संचार ही करेगी। इससे होगा यह कि कर्ज का मर्ज उलटे राज्य सरकार के ही गले पड़ सकता है। कहना गलत नहीं होगा कि बीते दशकों में प्रदेश में सहकारी आंदोलन की कब्र खोदी गयी। अब कब्र के डरा देने वाले तथ्य सामने आ रहे हैं।
- विकास दुबे