बिखरेगा मुस्लिम वोटबैंक?
18-Jan-2019 07:05 AM 1234845
कहावत है- मरा हुआ हाथी दस लाख का होता है। शायद सपा-बसपा के संभावित गठबंधन का अति आत्मविश्वास इस कहावत को न मानकर कांग्रेस को नजरअंदाज कर रहा है। इन क्षेत्रीय दलों और कांग्रेस में यदि आपसी वर्चस्व की लड़ाई चलती रही, तो इस राज्य में मुस्लिम वोटबैंक का बिखराव तय है और यदि इन दलों ने प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से आपसी सामंजस्य बना लिया तो यूपी में भाजपा के लिए पंद्रह-बीस सीटें भी बचा पाना मुश्किल हो जायेगा। इन दलों के बीच ट्यूनिंग का ऊंट किस करवट बैठेगा अभी ये तय नहीं हुआ है, लेकिन आपसी ईगो के होते सही मायने में अभी कोई तस्वीर सामने नहीं है। लोकसभा चुनाव की लड़ाई जीतने के लिए भाजपा से लडऩे वाले आपस में तालमेल के लिये कैसे लड़ रहे हैं इसके पीछे तमाम फेक्टर हैं। यूपी में कांग्रेस लगभग मरी हुई है। लेकिन लोकसभा में भाजपा विरोधी मतदाताओं कि पहली पसंद कांग्रेस ही होती है। यूपी के विधानसभा चुनाव में सपा या बसपा को वोट देने वाले लोकसभा में अक्सर कांग्रेस पर विश्वास जताते हैं। पिछले लोकसभा में दस साल की एंटीइंकम्बेंसी थी और भाजपा और मोदी लहर ऊफान पर थी। उत्तर प्रदेश में कांग्रेस का कमजोर संगठन था। आपसी खेमे बाजी थी। राहुल सिर्फ पप्पू की इमेज में बंधे थे। तब भी कांग्रेस ने पिछले लोकसभा चुनाव में करीब दस सीटों पर फाइट की थी। इस बार माहौल बदल गया है। केंद्र और उत्तर प्रदेश में भाजपा की सरकारों की एंटीइंकम्बेंसी। बतौर पार्टी अध्यक्ष राहुल गांधी का एक नया स्वरूप। नरेंद्र मोदी के खिलाफ आक्रामक तेवर मुस्लिम समाज को प्रभावित जरूर कर रहे हैं। सपा-बसपा का संभावित गठबंधन साझे में अपने-अपने क्रमश: पिछड़ों, दलितों की घर वापसी पर ज्यादा ध्यान दे रहे हैं। एक तरफ सपा-बसपा गठबंधन की जीत के ज्यादा चांस और दूसरी तरफ मोदी का खुलकर विरोध कर दिल में उतरने वाले राहुल की कांग्रेस का मोह। ऐसे में भाजपा विरोधी दलों के बीच कोई बेहतर सामंजस्य नहीं बन सका तो मुस्लिम वोट बैंक एक तरफा न होकर बिखराव का शिकार बन सकता है। पिछले लोकसभा चुनाव से लेकर उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में भाजपा की शानदार जीत के बाद मुस्लिम समाज सियासत के हाशिये पर आ गया है। ये वही अल्पसंख्यक समाज है जिसकी किसी भी हार या जीत में निर्णायक भूमिका रहती थी। किंग मेकर कहे जाने वाले मुस्लिम वोट बैंक को पहली बार तब जबरदस्त झटका लगा जब लोकसभा में भाजपा का परचम लहराया। ध्रुवीकरण का माहौल हिन्दुओं की जातियों को जोड़कर भाजपा को सफलता दिलाने के लिए काफी होता है। इस बात को ही भांपकर अल्पसंख्यक समाज ने धार्मिक ध्रुवीकरण की तमाम कोशिशों को नाकाम करने के लिए अब भड़कने के बजाय शांत रहना मुनासिब समझा। यही कारण रहा कि पिछले पांच राज्यों के चुनाव में ध्रुवीकरण के माहौल का सफाया होता नजर आया। लगने लगा है कि अब अगले लोकसभा चुनाव में धर्म की नहीं बल्कि जाति कि हवा चलेगी। यही कारण है कि जातिवाद के लिए सबसे ज्यादा बदनाम यूपी पर सबकी निगाहें लगी हैं। सबसे ज्यादा सीटों वाला यूपी ही दिल्ली की कुर्सी तय करता रहा है। भाजपा के खिलाफ तैयार हो रहे गठबंधन को यदि यूपी में बीस प्रतिशत मुसलमानों का बीस-पच्चीस प्रतिशत वोट सपा-बसपा के संभावित गठबंधन से छिन सकता है। इस बात के मद्देनजर ही भाजपा विरोधी दल आपसी सामंजस्य बनाने की हर संभव कोशिश करेंगे। लेकिन सच ये है कि कांग्रेस और सपा-बसपा के बीच प्रत्यक्ष समझौते ना होने से ये माना जा सकता है कि इन्हें मुस्लिम मतदाताओं के वोटों की परवाह नहीं है। उत्तर प्रदेश में बीस प्रतिशत से अधिक मुस्लिम आबादी है। सपा-बसपा के संभावित गठबंधन से कांग्रेस अलग रही तो मुस्लिम वोट बैंक बिखर जायेगा। क्योंकि ज्यादातर मुसलमान लोकसभा में कांग्रेस को वोट देता है और विधानसभा में सपा या बसपा को। इस बात की परवाह किये बिना सपा-बसपा यूपी में कांग्रेस को दूर रखकर पिछड़े-दलितों और अल्पसंख्यकों की बदौलत पूरा यूपी फतह करने के सपने देख रहे हैं। हालांकि उच्च पदस्थ सूत्रों के मुताबिक इन दलों में अंदरूनी सांठ-गांठ तय होकर भाजपा को शिकस्त देने का प्लान तय हुआ है। साइलेंट रणनीति जातिगत समीकरणों में मजबूत सपा और बसपा का संभावित गठबंधन उत्तर प्रदेश में कांग्रेस के साथ साइलेंट रणनीति में इस सूबे से भाजपा का सूपड़ा साफ करने की योजना पर काम कर रहा है। उच्च पदस्थ सूत्रों के मुताबिक सपा-बसपा और कांग्रेस के आलाकमान खामोशी से आपसी बातचीत जारी रखे हैं। कांग्रेस यूपी में कम सीटों के लिए राजी नहीं हुई और सपा व बसपा मुखिया कांग्रेस को बेहद कम सीटें देने पर ही अड़े रहे। किंतु ये तीनों दल यूपी से भाजपा का सूपड़ा साफ करने के मिशन को मिलजुलकर अंजाम पर लाने के लिए एक दूसरे फार्मूले का विकल्प खोज लाये हैं। अमेठी और रायबरेली सीट छोडऩे के अलावा करीब सात-आठ सीटों पर कांगेस के साथ गठबंधन की फ्रेंडली फाइट होगी और यहां सपा-बसपा अपना नाम मात्र का डमी कैंडिडेट ही खड़ा करेंगी। -मधु आलोक निगम
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