03-Jan-2019 06:41 AM
1234814
पिछले लोकसभा चुनाव में मध्यप्रदेश की 29 लोकसभा सीटों में से कांग्रेस को सिर्फ दो सीटें हासिल हुई थीं। बाद में एक सीट रतलाम झाबुआ उपचुनाव के कारण कांतिलाल भूरिया ने जीत ली थी। इस तरह से फिलहाल भाजपा के पास 26 सीटें हैं और कांग्रेस के पास 3 सीटें है। अब कांग्रेस का लक्ष्य है कि मध्यप्रदेश में 20 लोकसभा सीटों को जीता जाए। 13 लोकसभा सीटें ऐसी हैं जहां विधानसभा चुनाव में भाजपा को अधिकांश विधानसभा सीटों पर हार का सामना करना पड़ रहा है।
इनमें ग्वालियर लोकसभा सीट भी एक है। यहां से नरेंद्र सिंह तोमर सांसद हैं। केंद्रीय मंत्री तोमर 29699 वोट से जीते थे। 2018 के विस चुनाव में कांग्रेस ने सात सीटें जीती हैं, जबकि भाजपा 5 से सिमटकर 1 पर आ गई है। यहां पड़े कुल 1299812 वोट में से कांग्रेस को 558648, भाजपा को 424712 और बसपा को 187301 वोट मिले थे। कांग्रेस 1,33,936 वोट से आगे रही। ऐसे में भाजपा आलाकमान को इस सीट पर भी हार का खतरा मंडरा रहा है।
भिंड लोकसभा सीट पर ब्यूरोक्रेसी छोड़ राजनीति में उतरे भागीरथ प्रसाद यहां से सांसद हैं। प्रसाद 159961 वोट से जीते थे। 2013 विस चुनाव के मुकाबले इस बार भाजपा 4 सीटें गंवा चुकी है। बसपा का खाता खुला है। यहां इस बार कांग्रेस ने 5, भाजपा ने 2 और बसपा ने 1 सीट जीती है। यहां पड़े कुल 11,19,211 वोट में से कांग्रेस को 456621, भाजपा को 357341 और बसपा को 160780 वोट मिले। कांग्रेस 99280 वोटों से आगे रही। यहां कांग्रेस मजबूत हुई है।
मंडला लोकसभा सीट पर फग्गन सिंह कुलस्ते 2014 में 1,10,469 वोट से जीते थे। इस बार के विधानसभा चुनाव कांग्रेस ने 6, भाजपा ने 2 सीटें जीती है। यहां कुल 1519029 वोट पड़े। कांग्रेस को 659345, भाजपा को 537657 और बसपा को 18387 वोट मिले। कांग्रेस 1,21,688 वोटों से आगे रही। यहां बीजेपी के खिलाफ सत्ता विरोध लहर है। यहां भाजपा के भीतर काफी संघर्ष है और ऐसे में कुलस्ते ब्रदर्स की लोकप्रियता भी घट रही है।
इंदौर लोकसभा सीट से सुमित्रा महाजन साढ़े चार लाख वोटों से जीती थीं। पिछले विधानसभा चुनाव में भाजपा के पास 8 में से 7 सीटें थीं, लेकिन 2018 में कांग्रेस बराबरी पर आ खड़ी है। इस बार कांग्रेस ने 4 और भाजपा ने 4 सीटे जीती हैं। यहां कुल 1592099 वोट पड़े। जिसमें कांग्रेस को 718455, भाजपा को 813835, बसपा को 11142 वोट मिले। यहां भाजपा 95380 वोटों से आगे रही। लेकिन कांग्रेस ने दमदार वापसी कर लोकसभा सीट पर अपनी दावेदारी मजबूत की है।
दमोह लोकसभा सीट से 2014 में प्रहलाद पटेल 2,13,299 वोटों से जीते थे। 2013 में कांग्रेस के खाते में दो सीटें थीं, लेकिन 2018 में उसके पास 4 सीट हैं। भाजपा ने यहां 3 और बसपा ने एक सीट जीती है। यहां कुल 1293170 वोट पड़े। जिसमें से कांग्रेस को 495094, भाजपा को 511951 और बसपा को 84638 वोट मिले हैं। भाजपा केवल 11 हजार वोट से आगे हैं।
खंडवा लोकसभा सीट से 2014 में नंदकुमार सिंह चौहान 259714 वोट से जीते थे। 2013 में भाजपा की 7 सीटें थीं, अब 3 सीटों पर सिमट गई है। वहीं कांग्रेस ने 4 और एक निर्दलीय ने जीती है। यहां कुल 14,42,432 वोट पड़े हैं। जिसमें कांग्रेस को 563706, भाजपा को 635973, निर्दलीय को 98561 वोट मिले हैं। यहां कांग्रेस 26,294 वोटों से आगे हैं। यहां कहा जाता है कि नर्मदा नदी और बीजेपी दोनों स्थिर हैं। कांग्रेस के नेता अरुण यादव भी 2019 से पहले वोटरों को कांग्रेस के पक्ष में मनाने के लिए मेहनत कर रहे हैं। वह 2009 में यहां से सांसद थे।
जबलपुर लोकसभा सीट से भाजपा प्रदेश अध्यक्ष राकेश सिंह यहां 2014 के लोकसभा चुनाव में 2,08,639 वोट से जीते थे। लेकिन विधानसभा चुनाव में वे भाजपा की दो सीट नहीं बचा पाए। पिछले विस में भाजपा के पास छह सीटे थीं। कांग्रेस 4 पर आ गई है। यहां कुल 1283506 वोट पड़े हैं। जिसमें से कांग्रेस को 529673, भाजपा को 567506 और बसपा को 29456 वोट मिले हैं। भाजपा 37833 वोटों से आगे है।
धार लोकसभा सीट से 2014 के लोकसभा चुनाव में धार सीट से भाजपा की सावित्री ठाकुर जीती थी। 2013 में भाजपा के पास 6 सीट थीं, जो अब कांग्रेस के पास है। 2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने 6 तो भाजपा ने दो सीट जीती है। इस बार कुल 1377351 वोट पड़े हैं। जिसमें से कांग्रेस को 743526, भाजपा को 523456, बसपा को 14734 वोट मिले हैं। कांग्रेस 220070 वोटों से आगे है।
राजगढ़ लोकसभा सीट पर भाजपा के रोडमल नागर सवा दो लाख वोटों से जीते थे। 2013 में भाजपा की 6 सीटें थीं, अब कांग्रेस ने 5 जीती ली हैं। वहीं भाजपा 2 और निर्दलीय को एक सीट मिली है। विधानसभा चुनाव में कुल 1358359 वोट पड़े। इसमें कांग्रेस को 634687, भाजपा को 525481, निर्दलीय को 75804 वोट मिले हैं। कांग्रेस 185010 वोटों से आगे है।
यह वरिष्ठ कांग्रेसी नेता दिग्विजिय सिंह की फैमिली सीट है। 1991 से लेकर 2004 तक यहां से सिंह या उनके भाई लक्ष्मण सिंह सांसद रहे। 2014 में भाजपा ने यह सीट जीत ली लेकिन नागर की आगे की राह मुश्किल दिखती है। लक्ष्मण सिंह वापस कांग्रेस में हैं और हाल ही में चाचौड़ा विधानसभा सीट से जीते हैं। दिग्विजय सिंह के बेटे जयवर्धन राघोगढ़ सीट से दूसरी बार जीते हैं। यहां भाजपा को शिकस्त देने के लिए पूरा परिवार कड़ी मेहनत करेगा और कांग्रेस की जीत सुनिश्चित करना चाहेगा। अब राज्य में कांग्रेस की सरकार भी आ गई है।
मुरैना लोकसभा सीट से अनूप मिश्रा 1,32,981 वोट से जीते थे। 2013 में भाजपा के पास 5 सीट थीं, लेकिन 2018 के विस चुनाव में कांग्रेस ने इस क्षेत्र की 7 सीटें जीती हैं, जबकि मिश्रा भितरवार से हारे गए हैं। भाजपा को एक सीट मिली। यहां कुल 12,45,503 वोट पड़े। जिसमें से भाजपा को 384382, कांग्रेस को 511224 और बसपा को 22179 वोट मिले हैं। कांग्रेस 1,26,842 वोटों से आगे है।
बैतूल लोकसभा सीट से 2014 में ज्योति धुर्वे जीती थी। 2013 के विधानसभा चुनाव में इस क्षेत्र में भाजपा के खाते में 6 सीटें थीं, जो अब घटकर 4 रह गई हैं। कांग्रेस को भी 4 सीट मिली है। विधानसभा चुनाव में कुल 1387463 वोट पड़े। कांग्रेस को 638329, भाजपा को 597653, बसपा को 19523 वोट मिले। कांग्रेस 40676 वोटों से आगे है।
उज्जैन लोकसभा सीट से चिंतामणी मालवीय 3 लाख वोट से जीते थे। 2013 में आठों सीट भाजपा जीती थी, अब कांग्रेस ने 5 सीटें छीन लीं। भाजपा को तीन सीट मिली है। विधानसभा चुनाव में कुल 1121791 वोट पड़े। कांग्रेस को 522106, भाजपा को 592028, निर्दलीय को 55279 वोट मिले। भाजपा 14,643 वोटों से आगे है। यहां भाजपा के खिलाफ सत्ता विरोधी लहर है और इसका परिणाम यह हुआ कि उसे पांच सीटों पर हार मिली। खरगोन लोकसभा सीट से 2014 के लोकसभा चुनाव में यहां से सुभाष पटेल चुनाव जीते थे। 2018 के विधानसभा चुनाव में यहां की 8 सीटों में से कांग्रेस ने 6 सीटे जीती है। भाजपा ने एक सीट जीती है। बीजेपी के स्थानीय नेता पटेल से काफी नाराज हैं। खरगोन पहले भाजपा और कांग्रेस को बराबर मौका देता रहा है और असेंबली के नतीजों में दिखता है कि भाजपा के खिलाफ आदिवासी एकजुट हैं। कांग्रेस इन 13 लोकसभा सीटों के साथ ही अपने कब्जे वाली तीन सीटों के साथ ही 20 सीटों का आंकड़ा लोकसभा चुनाव में पाना चाह रही है।
- विशाल गर्ग