03-Aug-2013 05:31 AM
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उत्तरप्रदेश सरकार ने जिस गे्रटर नोएडा एक्सटेंशन परियोजना को मंजूरी दी है उसने इस क्षेत्र में हरियाली पूरी तरह समाप्त ही कर डाली है। इस परियोजना में पर्यावरणीय मानकों और क्षेत्र के समृद्ध वन्य

जीवन का कोई ध्यान ही नहीं रखा गया। बिना किसी पर्याप्त अध्ययन और शोध के शहरीकरण के नाम पर अरबो-खरबो की जमीन वाले इस प्रोजेक्ट को उद्योगपतियों तथा भू-माफियाओं को लाभान्वित करने के लिए हरी झंडी दिखाई गई है। प्रदेश के पर्यावरण निदेशालय ने इस सिलसिले में जो घोर लापरवाहियां की हैं उनसे शक की सूई अब पर्यावरण विभाग की तरफ घूमने लगी है। पर्यावरण प्रेमियों का कहना है कि उत्तरप्रदेश सरकार निजी बिल्डरों के एजेंटों की तरह काम कर रही है। जिस क्षेत्र में यह परियोजनाएं शुरू होंगी वहां नील गाय पाई जाती हैं। कई तरह के वृक्ष मिलते हैं, सांप, मोर, काले मृग से लेकर कई प्रजातियों के निवास का यह स्थान है लेकिन इसका प्रभावी आंकलन किए बगैर पशु-पक्षियों के नैसर्गिक पर्यावास को मिट्टी में मिलाया जा रहा है। जिससे काले मृग और मोर तो करीब-करीब विलुप्ति की कगार पर पहुंच चुके हैं बाकी पशु-पक्षियों का भी यही हाल है। हरित बेल्ट समाप्त होने से क्षेत्र में कार्बन मोनो आक्साइड की उपलब्धता मानको से कहीं अधिक बढ़ चुकी है। दूसरी तरफ शहरीकरण के कारण भू-जल स्तर को खतर भी पैदा हो गया है। जिस जमीन पर आवासीय परियोजनाओं की अनुमति प्रदान की गई है। वह बहुत उपजाऊ और कीमती जमीन है, लेकिन उसका भी ख्याल नहीं रखा गया। इसी गति से शहरीकरण जारी रहा तो आने वाले समय में खाद्यान्न का भारी संकट पैदा हो सकता है पर सरकार को इसकी फिक्र नहीं है।
नाोएडा देश की राजधानी दिल्ली से लगा हुआ है। कभी यह क्षेत्र बहुत हरा भरा हुआ करता था लेकिन दिल्ली का आकार बढऩे के कारण लगभग तीन दर्शक पहले से यह उपनगरी इलाके में तबदील हो गया यहा कई कारखानें और उद्योगों इकाई भी लगाई गई जिनके चलते जमीन की उर्वरता नष्ट हो गई ओर जमीनें बंजर तथा बेकार होने लगी इसी का हवाला देते हुए सरकार ने इस जमीन को बेकार घोषित कर निजी कंपनियों ओर बिल्डरों को बेचना शुरू कर दिया आज नोएडा तेजी से विकसित होता हुआ महानगर बन चुका है। यहां शहरीकरण की गति इतनी तेज है कि पर्यावरण का संतुलन गडबडा गया है पूरे नोएडा में भूजल न के बराबर है ओर जो है वह पीने योग्य नहीं है नोएड़ा की अधिकांश कॉलोनियों में पीने का पानी बडे-बडे जार मे भर कर घरों में पहुंचाया जाता है। जिनकी कीमत बीस से चालीस रूपये तक हो सकती है। परिवारों पर 600 से लेकर 2000 रूपए तक का आर्थिक बोझ पड़ता है। इस के बाद भी खाली इलाकों को बदस्तूर बेचा जा रहा है। शहरी गंदगी को जिन नदी नालों में बहाया जाता है वे भी बुरी तरह प्रदूर्षित हो चुकी है । कहने को यह कहा जाता है कि नोएडा एक सुव्यवस्थित शहर है लेकिन यह जिस गंदगी के ढ़ेर पर बैठा है वह किसी को दिखाई नहीं देती इसी कारण प्रदूषण का स्तर लगातार बढ़ रहा है ओर स्थानीय निवासियों की अनदेखी करते हुए नई-नई कॉलोनियों की इजाजत दी जा रही है। नोएडा एकटेशन में ही कई गांव है तथा एक संपेरों की बस्ती भी है इन सब का अस्तित्व खत्म होने वाला है गांव वालों को बिल्डरों ने करोड़ो रूपये का लालच दिया है वे अपनी पुश्तैनी जमीन बेचकर पैसा उड़ा रहे है जिसके चलते अपराध भी बढ़े हैं। सारे उत्तर भारत में जमीन का गौरख धंधा इसी प्रकार चल रहा है लेकिन इसने पर्यावरण को तहसनहस कर दिया है भारत की राजधानी दिल्ली देश के 8 शहरों में सर्वाधिक प्रदूर्षित शहर है यहां क आबों-हवा बिगड़ चुकी है कई इलाकें तो रहने लायक नहीं है आईटीओ में 2 घंटें खड़े रहने पर अस्पताल में भर्ती होने की नौबत आ सकती है यमुना को सुप्रीम कोर्ट पहले ही नाले की संज्ञा दे चुका है दिल्ली के महज 300 वर्ग किलोमीटर वनक्षेत्र पर भी भूमाफियां की नजर है 1483 वर्गकिलोमीटर में फैली दिल्ली के केवल 20 प्रतिशत हिस्से पर हरियाली है और यह हरियाली दिल्ली के औद्योगिक क्षेत्र से निकलने वाले जहर को पचाने में नाकामियाब है। यही हाल यमुना का है जिसकी सफाई पर 1200 करोड़ रूपए खर्च हो चुका है ओ 1700 करोड़ रूपए खर्च किए जाने बाकी है लेकिन यमुना बदबूदार गंदे नाले मं तबदील हो चुकी है दिल्ली उसके आस-पास के उपनगरी इलाकों में नए निर्माण पर तत्काल रोक लगाने की आवश्यकता है नहीं तो दिल्ली भी दुनिया के उन शहरों में शाम्मिल हो जाएगा जहां मास्क लगाकर घुमा जाता है। क्योंकि रोजाना 1300 नए वाहन दिल्ली की सड़कों पर उतर जाते हैं ओर प्रति वर्ष 474500 गाडियां नई खरीदी जाती है। आलम यह है कि पार्किंग की व्यवस्था भी न के बराबर है एक-एक घर में छह-छह वाहन है कम से कम दिल्ली सरकार इतना तो कर ही सकती है कि उन्ही वाहनों को पंजीक्त करे जिनकी पार्किग की सुविधा वाहन मालिक के पास है। लेकिन ऐसा हो नहीं पाता। वाहनों की यह संख्या समृध्दि बढऩे के साथ-साथ बढ़ती जा रही है और सरकार वोट बैंक के लालच में कुछ भी करने में नाकामयाब है।
कुमार सुबोध