जानलेवा गड्ढों की फिक्र
22-Dec-2018 07:11 AM 1234777
सड़क सुरक्षा को लेकर सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश केएस राधाकृष्णन की अध्यक्षता में गठित कमेटी की ओर से पेश यह आंकड़ा चौंकाने और साथ ही चिंतित करने वाला है कि पांच वर्षों में सड़क पर गड्ढों के कारण करीब 15 हजार लोगों की मौत हुई है। वर्ष 2012 से लेकर 2017 तक के इस भयावह आंकड़े को देखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने यह सही कहा कि ये मौतें तो आतंकी हमलों में होने वाली मौतों से भी अधिक हैं। उसके इस निष्कर्ष से भी असहमत नहीं हुआ जा सकता कि सड़क के गड्ढों के कारण होने वाली इतनी अधिक मौतों से यही पता चलता है कि प्रशासन सड़कों का रखरखाव उचित तरीके से नहीं कर रहा है। स्पष्ट है कि इस प्रशासन में नगर निकायों से लेकर राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण तक आते हैं। कहना कठिन है कि सुप्रीम कोर्ट के दखल के बाद सड़कों पर गड्ढों के कारण होने वाले हादसों को रोकने के लिए राज्य एवं केंद्र सरकार क्या जतन करती हैं और उससे हालात कितने बदलते हैं, क्योंकि समस्या केवल यही नहीं है कि सड़कों पर गड्ढे जानलेवा हादसों को जन्म दे रहे हैं, बल्कि यह भी है कि अपने देश में मार्ग दुर्घटनाओं में प्रति वर्ष एक लाख से अधिक लोग जान गवां देते हैं। बड़ी संख्या में लोग घायल भी होते हैं। इनमें से कुछ तो हमेशा के लिए अपंग हो जाते हैं। नि:संदेह सरकारों और उनकी एजेंसियों को न केवल यह देखना होगा कि सड़कें गड्ढों मुक्त हों, बल्कि इसकी भी चिंता करनी होगी कि वे बेहिसाब दुर्घटनाओं का ठौर न बनें। इस चिंता में आम जनता को भी भागीदार होना होगा, क्योंकि यह एक तथ्य है कि बड़ी संख्या में मार्ग दुर्घटनाएं लोगों की लापरवाही के चलते होती हैं। जैसे यह स्वीकार नहीं हो सकता कि बड़ी संख्या में लोग सड़कों पर गड्ढों के कारण मौत के मुंह में चले जाएं, वैसे ही इसका कोई औचित्य नहीं कि बेहतर सड़कें भी दुर्घटनाओं की गवाह बनें। ऐसा इसलिए भी हो रहा है, क्योंकि वाहन चलाते वक्त आवश्यक सावधानी का परिचय देने से परहेज किया जा रहा है। सड़कों से जुड़ी एक और समस्या यह है कि वे अतिक्रमण का शिकार होने के साथ ही गंदगी से अटी रहती हैं। यह अतिक्रमण यातायात को बाधित करने के साथ ही प्रदूषण का कारण भी बन रहा है। ये सारी समस्याएं शहरीकरण को लेकर जो गंभीर सवाल खड़े कर रही हैं, उनका समाधान सही तरह से तब होगा, जब आम नागरिक अपनी जिम्मेदारी समझने के लिए तैयार होंगे। शहरीकरण की एक बड़ी समस्या सार्वजनिक स्थलों पर साफ-सफाई की कमी है। इस कमी को दूर करने के प्रति थोड़ी-सी भी सजगता हालात बदल सकती है। नि:संदेह एक आम नागरिक सड़क के गड्ढे पाटने का काम नहीं कर सकता, लेकिन वह सुरक्षित यातायात को लेकर तो सचेत रह ही सकता है। ऐसा करके वह न केवल खुद जोखिम से बचेगा, बल्कि औरों को भी बचाएगा। अच्छा होगा कि विभिन्न समस्याओं के समाधान की पहल कर रहा सुप्रीम कोर्ट इस पर भी ध्यान दे कि आम लोग एक नागरिक के तौर पर अपने दायित्व बोध से कैसे लैस हों, ताकि शहरीकरण की स्थिति संवर सके। देश में सड़क पर गड्ढों के कारण लगातार बढ़ते मौतों के आंकड़ों पर आई रिपोर्ट ने एक बार फिर से प्राधिकरणों, प्रशासन और नगर निकायों के दावों की पोल खोल दी है। उच्चतम न्यायालय ने पूर्व न्यायाधीश केएस राधाकृष्णन की अध्यक्षता वाली सड़क सुरक्षा समिति की रिपोर्ट पर केंद्र और राज्यों से जबाब मांगा है। अदालत ने गड्ढों की वजह से सड़क दुर्घटनाओं में बढ़ती मौतों को अस्वीकार्य बताते हुए कहा है कि भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण एवं अन्य विभाग सड़कों का ठीक से रखरखाव नहीं कर रहे हैं। इस रिपोर्ट के अनुसार देश में 2013 से 2017 के दौरान गड्ढों की वजह से हुए सड़क हादसों में 14,926 लोगों की मौत हुई। न्यायालय ने इस आंकड़े को सीमा पर आतंकवादी घटनाओं में मारे गए लोगों से भी अधिक बताया है। अदालत ने सड़क हादसों की वजह से तबाह होने वाले परिवारों को मुआवजा नहीं दिए जाने पर भी नाराजगी जताई है। इन हादसों के आधे से ज्यादा पीडि़त ऐसे होते हैं जिन्हें पात्र होने के बावजूद मुआवजा नहीं मिल पाता है। आतंकवाद से खतरनाक गड्ढे पिछले दिनों एक चौंकाने वाली रिपोर्ट आई। इसमें कहा गया है कि देश में आतंकवाद और नक्सलवाद से भी ज्यादा जान को कई गुना खतरा सड़क के गड्ढों के कारण होता है। वैसे देखें तो आतंकवाद वाकई देश के लिए बड़ा संकट है, जिससे निपटने का प्रयास पहले होना चाहिए पर लोकतांत्रिक व्यवस्था में अपनी जेब भरने के लिए दूसरे की जान पर खेलने का जो खतरनाक खेल लंबे समय से चला आ रहा है, वह भी देश और देशवासियों के साथ कम छल नहीं है। जनता के पैसे से ही देश चलता है। फिर भी अगर चलने के लिए आज तक अच्छी सड़कें मयस्सर नहीं हो सकी हैं तो यह न सिर्फ देश की जनता, बल्कि लोकतंत्र के साथ भद्दा मजाक और अन्याय है। स्मार्ट और आधुनिकता का दंभ भरते हमारे देश की सड़कों को देख कर तो कभी-कभी यह लगने लगता है कि सड़कों में गड्ढे हैं या फिर गड्ढों में सड़कें। कहने को देश में एक्सप्रेस-वे बन रहे हैं। लेकिन आम जिंदगी का आए दिन जिन सड़कों और रास्तों से सामना होता है, बरसात के मौसम में उन्हें छोटे तालाब में तब्दील होने में देर नहीं लगती। लेकिन जैसे ही बारिश का मौसम खत्म होता है, इन गड्ढों को जो भरने का काम चल निकलता है। - श्याम सिंह सिकरवार
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