सूखे की त्रासदी
22-Dec-2018 07:04 AM 1234794
सूखे की त्रासदी झेल रहे बुंदेलखंड की मुसीबतें कम होने का नाम नहीं ले रहीं। लगातार कम वर्षा के दंश के बाद अब इसका असर यहां के बांधों पर भी पड़ा है। क्षेत्र के बांध सूखने की कगार पर पहुंच गए हैं। इनका पानी न्यूनतम स्तर के करीब पहुंच गया है। तालाब लगभग सूख चुके हैं। छतरपुर जिले में पिछले 9 सालों में 8 बार सूखा पड़ चुका है। लगातार सूखा पडऩे से जमीनें बंजर हो गई हैं। किसान बदहाल हैं। किसान को न केवल मौसम दगा दे रहा है। बल्कि शासन-प्रशासन की लापरवाही और उदासीनता के कारण खाद, बीज भी समय से नहीं मिल पाते हैं। फसल बर्बाद होने के बाद मुआवजे की राशि भी आधी-अधूरी और लेट लतीफ मिल रही है। इस उम्मीद में कि अगली फसल ठीक होगी, किसान कर्ज लेकर खेती करता है, लेकिन लगातार फसल ठीक न होने से किसानों पर कर्ज बढ़ता ही जा रहा है। हताशा में जो किसान टूट जाते हैं, वो मौत को गले लगा लेते हैं। लेकिन सरकारें और जनप्रतिनिधि इस समस्या को गंभीरता से नहीं लेते हैं। सूखे से निपटने के लिए कोई कारगर योजना नहीं बनाई गई है। किसानों की बदहाली के ऐसे बादल छाए हैं कि सालों बाद भी छंटने का नाम नहीं ले रहे हैं। छतरपुर में कई वर्षो से लगातार पडऩे वाले सूखे ने किसानों को बर्बाद कर दिया है। बुंदेलखंड का ग्राउंड वाटर लेवल लगातार कम होता जा रहा है, और यहां का किसान बरसाती पानी के भरोसे खेती करता है। सेंट्रल ग्राउंड वाटर की रिपोर्ट के मुताबिक कुओं के पानी का स्तर नीचे जा रहा है। भू-जल स्तर 2 से 4 मीटर कम हुआ है। वहीं बड़े बांधों के नहीं होने से बारिश के दौरान 70 हजार मिलियन क्यूबिक मीटर पानी में से 15 हजार मिलियन क्यूबिक मीटर पानी ही जमीन में उतर पाता है। 1999 से 2008 के बीच के बारिश के दिनों की संख्या भी 52 से घट कर 27 हो गई है। सकल घरेलू उत्पाद में कृषि की हिस्सेदारी 16 प्रतिशत है। 90 प्रतिशत लघु किसान हैं, जिनके पास दो हेक्टेयर तक भूमि है। 45 प्रतिशत सिंचित और 55 प्रतिशत गैर सिंचित भूमि है। 55 प्रतिशत जमीन मानसून पर निर्भर है। वहीं 2016-17 की एक रिपोर्ट के मुताबिक, कृषि संबंधी उद्योगों पर कुल 12.6 लाख करोड़ रुपए का कर्ज था। औसतन प्रति किसान पचास हजार रुपए का कर्ज है। कृषि घाटे का धंधा बन गई है। लगातार कई वर्षों से सूखे की मार झेल रहे बुंदेलखण्ड के माथे से बदनसीबी की रेखा न जाने कब मिटेगी। शुरूआती दिनों में अच्छी बारिश का सपना दिखाकर मानसून ने हमेशा बुंदेलखण्ड के साथ छल किया है। इस वर्ष भी बादलों की बेपरवाही के चलते बुंदेली धरती सूखी रह गई और खेत पीले पडऩे की स्थिति में आ रहे हैं। पर्याप्त सिंचाई आखिर बिना बारिश के कैसे मिल पाएगी फसलों का यह यक्ष प्रश्न बनता जा रहा है बुंदेलखण्ड के लिए। क्षेत्र के सातों जनपदों में (चित्रकूट, बांदा, हमीरपुर, महोबा, ललितपुर, झांसी, जालौन) कमोबेश यही स्थिति है। इन सभी जिलों के प्रमुख बांध और नदियां पानी की आवश्यकता के विपरीत खाली हैं। चित्रकूटधाम मंडल के कुल 13 बांधों में कोई भी हलक तक पूरा नहीं भर पाया और सभी लबालब होने को तरस गए। बुंदेलखण्ड की प्रमुख केन बेतवा यमुना नदी का जलस्तर भी संतोषजनक नहीं है जिसे आने वाले दिनों के लिए इन पर भरोसा किया जा सके। वैसे देखा जाए तो बुंदेलखंड ही नहीं बल्कि पूरे प्रदेश में इस बार बांध अभी से सूखने लगे हैं। -सिद्धार्थ पाण्डे
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