22-Dec-2018 07:00 AM
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पीके उर्फ प्रशांत किशोर जब से जेडीयू उपाध्यक्ष बने हैं वो आक्रामक तरीके से पार्टी के विस्तार में जुटे हुए हैं। जेडीयू के यूथ विंग पर प्रशांत किशोर का खास जोर है और पटना यूनिवर्सिटी छात्रसंघ चुनाव में उसका असर भी देखा गया है। छात्र संघ चुनावों में एक नारा शुरू से ही लोकप्रिय रहा है - ये तो बस अंगड़ाई है, आगे और लड़ाई है। पटना यूनिवर्सिटी छात्र संघ चुनाव के लिए वोटिंग से दो दिन पहले प्रशांत किशोर ने ऐसा ही कुछ संकेत दिया - ये तो सिर्फ अंगड़ाई है पूरी लड़ाई तो अभी बाकी ही है। अब तक अमित शाह जैसे बड़े नेता को ही लोकसभा और विधानसभा के साथ-साथ पंचायत और नगर निगम चुनावों में सक्रिय और सीधी निगरानी करते देखा जाता रहा, लेकिन प्रशांत किशोर दो कदम आगे नजर आ रहे हैं। प्रशांत किशोर छात्र राजनीति में भी गहरी रुचि लेने लगे हैं। छात्रसंघ चुनावों में कोई भी कैंडिडेट किसी राजनीतिक दल का अधिकृत प्रत्याशी नहीं होता। फिर भी यूथ विंग के नेता अपनी-अपनी पार्टियों के झंडे और बैनर इस्तेमाल करते रहे हैं। पटना यूनिवर्सिटी चुनाव में भी सब कुछ वैसे ही हो रहा था, लेकिन प्रशांत किशोर और वाइस चांसलर की एक लंबी मुलाकात ने विवाद खड़ा कर दिया है।
विवाद की नींव तब पड़ी जब बीजेपी की स्टूडेंट विंग एबीवीपी को प्रशांत किशोर के वीसी से मुलाकात की खबर मिली। अभी प्रशांत किशोर अंदर ही थे कि एबीवीपी कार्यकर्ताओं ने वाइस चांसलर के आवास को घेर लिया। नतीजे में पुलिस बुलानी पड़ी और तब कहीं जाकर पीके बाहर निकल सके। एबीवीपी कार्यकर्ताओं पर पुलिस के होने से भी फर्क नहीं पड़ा और वो प्रशांत किशोर की गाड़ी पर पथराव करने लगे। परिसर से चले जाने के बाद प्रशांत किशोर ने ट्वीट कर साफ किया कि वो पूरी तरह सुरक्षित हैं। साथ में एबीवीपी नेताओं के लिए कुछ नसीहत भी थी।
पुलिस ने हंगामा कर रहे कुछ एबीवीपी कार्यकर्ताओं को हिरासत में भी लिया। बाद में पुलिस ने उनके ठिकानों पर छापेमारी भी की। पुलिस छापेमारी से बीजेपी नेता काफी गुस्से में दिखे और धांधली की शिकायत लेकर गवर्नर लालजी टंडन के पास भी पहुंच गए। पटना यूनिवर्सिटी के छात्रसंघ चुनाव में पूरे वक्त प्रशांत किशोर के दिशा-निर्देश की साफ झलक देखने को मिली। जेडीयू का छात्र विंग चुनाव में काफी आक्रामक नजर आया। लोक सभा और विधानसभा चुनावों की तरह यहां भी नेताओं को तोड़ कर अपनी तरफ लेने की कवायद हुई। एबीवीपी के एक सीनियर नेता का पाला बदल कर जेडीयू में चला जाना इसी का उदाहरण है। इस घटना के बाद बीजेपी नेताओं ने कड़ा ऐतराज जताया और इसे बाहरी दखल माना।
दरअसल, जेडीयू का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाये जाने के बाद से पीके पर परफॉर्म करने का दबाव काफी ज्यादा है। प्रशांत किशोर के कामकाज की आक्रामक शैली जेडीयू नेताओं को भी नहीं भा रही है। मजबूरी है कि जिस पर आलाकमान का हाथ हो उसके खिलाफ बोलने की हिम्मत भला कौन जुटाये। ऑफ द रिकॉर्ड बातचीत में जेडीयू नेता पीके के कार्य-व्यवहार से नाखुशी जरूर जताते हैं। लगे हाथ प्रशांत किशोर जेडीयू के यूथ विंग को भी मजबूत करने की कोशिश में जुट गये थे। प्रशांत किशोर ने इसी मकसद से जेडीयू के युवा और छात्र विंग के नेताओं के साथ कई बैठकें भी की। इन्हीं बैठकों में युवा और छात्र नेताओं को छात्रसंघ चुनाव में पूरी ताकत झोंक देने को कहा गया। अब तो कहा जा सकता है कि जेडीयू से जुड़े छात्र नेताओं ने आंख मूंद कर प्रशांत किशोर के बताये अनुसार काम किया। जिस छात्र संघ का अध्यक्ष पद पिछले दो साल से एबीवीपी के कब्जे में रहा, अब अध्यक्ष पद सहित दो पद जेडीयू के खाते में आ चुके हैं।
भाजपा-आरजेडी नेता सतर्क
प्रशांत किशोर के इस कदर सक्रिय होने से बीजेपी के साथ-साथ आरजेडी नेता भी काफी सतर्क हो गये थे। हालांकि, आरजेडी की यूथ विंग तो इस चुनाव में कहीं मुकाबले में ही नहीं रही। छात्रसंघ चुनाव के लिए वोटिंग से दो दिन पहले प्रशांत किशोर और पटना यूनिवर्सिटी के वाइस चांसलर की मुलाकात निश्चित तौर पर सवाल खड़े करती है। सबसे ज्यादा हैरानी की बात इस मुलाकात में यूनिवर्सिटी के मुख्य चुनाव अधिकारी की मौजूदगी को लेकर है। प्रशांत किशोर की तरफ से सफाई दी गयी है कि वो अपने चाचा यूके मिश्रा के साथ निजी काम से गये थे। प्रशांत किशोर का कहना है कि उनके चाचा राज्य आपदा प्रबंधन के सदस्य हैं और जब वो वाइस चांसलर से मिलने जा रहे थे तो साथ लेते गये। ऊपर से प्रशांत किशोर की नाराजगी ये है कि छात्रों के प्रदर्शन के चलते उन्हें घंटों वहां रुकना पड़ा। बाकी बातें अपनी जगह है लेकिन घंटों चली इस मुलाकात में यूनिवर्सिटी के चुनाव अधिकारी की मौजूदगी को कैसे सही ठहराया जा सकता है।
- विनोद बक्सरी