गवर्नर का इस्तीफा क्यों?
22-Dec-2018 06:52 AM 1234782
भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर उर्जित पटेल के इस्तीफे पर सरकार भले ही कुछ न कहे, पर यह रिजर्व बैंक और सरकार के बीच आपसी टकराव का परिणाम है। संदेश यही जा रहा है कि सरकार स्वायत्त संस्थाओं पर हमले कर रही है। कुछ समय से पटेल के इस्तीफे के कयास लगाए जा रहे थे। पटेल रिजर्व बैंक के कामकाज में सरकार के हस्तक्षेप से खुश नहीं थे। रिजर्व बैंक की अपनी एक अलग अहमियत है, बिना सरकार के निर्देशों के अलग भूमिका है पर सरकार अपने तरीके से बैंक को चलाना चाहती है। पटेल के इस्तीफे की बड़ी वजह बैंकों का कर्ज लौटाने में डिफाल्टरों का दबाव माना जाता है। आरबीआई ने फरवरी में नए नियम जारी किए थे। इसके अनुसार कर्ज लौटाने में एक दिन की देरी होने पर बैंकों को कंपनी के खिलाफ रिजौल्यूशन प्रक्रिया शुरू करनी थी। बिजली और शुगर लौबी ने इसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी, जहां उन्हें स्टे मिल गया था। पटेल दिवालिया कार्रवाई के पक्ष में थे जबकि सरकार ऐसा नहीं चाहती थी। दूसरा बड़ा कारण रिजर्व फंड को लेकर है। सरकार चाहती है कि रिजर्व फंड का बड़ा हिस्सा सरकार को मिल जाए। इसके अलावा कच्चे तेल के बढ़ते दाम, रुपए की कीमत और स्टाक मार्केट में गिरावट जैसे मामलों में भी सरकार लगातार रिजर्व बैंक पर दबाव बना रही थी। हालांकि उर्जित पटेल को एनडीए सरकार ही लेकर आई थी लेकिन उनका सरकार के साथ जल्दी ही तनाव शुरू हो गया। वह सितंबर 2016 में गवर्नर बनाए गए थे। नवंबर में प्रधानमंत्री ने नोटबंदी की घोषणा कर दी। गवर्नर ने नोटबंदी पर सरकार की हर बात मान ली थी। खबरें थीं कि पटेल पर्याप्त संख्या में नई करेंसी छापने के बाद नोटबंदी के पक्ष में थे। इस फैसले से अचानक 86 प्रतिशत करेंसी चलन से बाहर हो गई। उर्जित पटेल से पहले गवर्नर रहे रघुराम राजन ने नोटबंदी का विरोध किया था। नोटबंदी के बाद पटेल ने बैंकों को मजबूत बनाने पर फोकस किया। एनपीए ज्यादा होने के कारण उन्होंने 21 में से 1 सरकारी बैंकों को तुरंत सुधार की श्रेणी में डाल दिया। सरकार ने पहले तो इसका समर्थन किया पर बाद में वह ढील देने की बात कहने लगी। रिजर्व बैंक ढील देने के पक्ष में नहीं था। लंदन स्कूल ऑफ इकोनोमिक्स, ऑक्सफोर्ड और येल यूनिवर्सिटी से पढ़े उर्जित पटेल जनवरी 2013 में आरबीआई के डिप्टी गवर्नर बनाए गए थे। वह नैरोबी की एक बड़ी बिजनैस फैमिली से हैं और गवर्नर बनाए जाने से पहले उन्होंने भारत की नागरिकता ली थी। सरकार एक के बाद एक अर्थशास्त्री खोती जा रही है। अरविंद सुब्रह्मण्यम, अरविंद पनगाडिय़ा, रघुराम राजन सरकार के हस्तक्षेप के चलते चले गए। दिक्कत यह है कि अर्थव्यवस्था का प्रबंधक अर्थशास्त्री अपने तरीके से करना जानते हैं जबकि सरकार अपने राजनीतिक नफा-नुकसान के हिसाब से काम करना और कराना चाहती है लेकिन राजनीतिक दलों के सामने रिजर्व बैंक जैसे संस्थानों की स्वायत्तता से बड़ा सवाल अपना राजनीतिक स्वार्थ रहता है। सरकार के पास नेता तो बहुत हैं पर अर्थशास्त्रियों का अभाव है। उर्जित पटेल के इस्तीफे से सरकार की छवि को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर नुकसान तो होगा ही, भारतीय राजनीति में विपक्ष को भी बड़ा मुद्दा मिल गया। वह भी ऐसे वक्त जब संसद का अधिवेशन शुरू हो रहा है और लोकसभा के चुनाव आगे हैं। देश की अर्थव्यवस्था ही नहीं, आम आदमी की हालत बदतर स्थिति की ओर जा रही है। और, फिर उर्जित पटेल सरकार विरोधी हो गए नोटबंदी ने बैंकों में कैश तो ला दिया, लेकिन बाजार की आर्थिक चाल को बनाए रखने के लिए कैश का संकट खड़ा होने लगा। बैंकों को कैश से मजबूत करने के लिए सरकार ने उर्जित पटेल पर दबाव बनाना शुरू किया। सीनियर इकोनॉमिक जर्नलिस्ट पूजा मेहरा सरकार और उर्जित पटेल के बीच खींचतान की वजह कुछ यूं बताती हैं- नोटबंदी के बाद करंसी प्रिंटिंग कॉस्ट ज्यादा बढ़ गई, उसी कारण सरकार का डिविडेंड (लाभांश) कम हो गया और वहीं से सारी समस्या की शुरुआत हुई। आरबीआई की तरफ से फाइनेंस मिनिस्ट्री को अगस्त में 50,000 करोड़ रुपए का डिविडेंड देने की बात पर स्वीकृति तो दे दी गई थी लेकिन सरकार इससे खुश नहीं थी। उसके बाद आया था फाइनेंस मिनिस्ट्री का वह प्रपोजल जिसमें कहा गया था कि आरबीआई के खजाने में मौजूद अतिरिक्त 3.6 लाख करोड़ रुपए सरकार को ट्रांसफर कर दिए जाएं। आरबीआई से इस पर समर्थन न मिलने पर दोनों के बीच विरोध चरम पर पहुंच गया। वित्त मंत्री अरुण जेटली ने तो स्पष्ट रूप से ऐसे नियमों की जरूरत का जिक्र किया, जिसके तहत आरबीआई के पास फंड रखने की सीमा तय की जा सके। सरकार ने पिछले महीने नवंबर में अप्रत्याशित रूप से आरबीआई एक्ट सेक्शन 7 लागू कर दिया। ये वो सेक्शन है जो सरकार को आरबीआई के कामों में दखलअंदाजी करने की छूट देता है। जेटली ने ये भी कहा था कि सरकार कोई सीमा नहीं पार कर रही है ये जानी पहचानी बात है कि इससे पहले भी कई सरकारों ने आरबीआई गवर्नरों को इस्तीफा देने पर मजबूर भी किया है और उनका कार्यकाल खत्म भी किया है। -विशाल गर्ग
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