02-Nov-2018 07:31 AM
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साल 2013 में जब चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने अपनी बहुचर्चिंत बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (बीआरआई) परियोजना की घोषणा की थी तब दुनिया के 70 देशों ने इसका हिस्सा बनने की इच्छा जाहिर की थी। ये देश इस परियोजना को लेकर अगर खासे उत्साहित थे तो इसका बड़ा कारण इस योजना में चीन द्वारा लगाया जाने वाला बड़ा फंड था। इन देशों को लगा कि चीन के इस बड़े निवेश से उनकी अर्थंव्यवस्था को नयी गति मिलेगी। साथ ही इस परियोजना से जुडऩा न केवल उनके घरेलू बाजार के लिए फायदेमंद साबित होगा बल्कि इससे उनके लिए दुनियाभर में आयात-निर्यांत करना भी आसान हो जाएगा।
लेकिन, अब इस परियोजना के शुरू होने के तीन साल बाद इसे लेकर इन देशों के रुख में बड़ा बदलाव आता दिख रहा है। पिछले कुछ महीनों में कई देशों ने चीनी निवेश के कारण अपने ऊपर बढ़ते कर्ज को लेकर चिंता जाहिर की है। इन देशों ने आशंका जताई है कि कर्ज न चुका पाने की स्थिति में चीन इनकी संप्रभुता का उल्लंघन कर सकता है। यही वजह है कि इनमें से कुछ देशों ने अपने यहां बीआरआई के तहत प्रस्तावित कई प्रोजेक्ट रद्द भी कर दिए हैं। 2014 में चीन ने मलेशिया में बीआरआई के तहत 50 अरब डॉलर से ज्यादा की परियोजनाओं में निवेश करने के लिए समझौते किए थे। लेकिन, बीते मई में हुए आम चुनाव में महातिर मोहम्मद की जीत ने काफी हद तक उसके मंसूबों पर पानी फेर दिया। सत्ता में आने के बाद महातिर मोहम्मद ने सबसे पहले चीनी निवेश पर ही प्रहार किया। उन्होंने करीब 25 अरब डॉलर की चीनी परियोजनाओं को तत्काल प्रभाव से रद्द कर दिया।
मलेशिया के बाद बीआरआई में शामिल म्यांमार ने भी बड़े चीनी निवेश को लेकर पिछले सालों में अपनी चिंताएं जाहिर की हैं। चीन म्यांमार में गैस और तेल पाइप लाइन के अलावा कई और प्रोजेक्ट्स पर भी काम कर रहा है। इनमें से एक प्रोजेक्ट म्यांमार के पश्चिम में स्थित क्याउकप्यू बंदरगाह के निर्माण का है। चीन के इस प्रोजेक्ट की कुल लागत 7.3 अरब डॉलर है। साल 2016 में हुए इस समझौते के तहत बंदरगाह के निर्माण में 85 फीसदी पैसा चीन देगा और 15 फीसदी म्यांमार को खुद वहन करना होगा। लेकिन, सितम्बर 2017 में म्यांमार ने अचानक चीनी निवेश में कटौती किये जाने की बात करनी शुरू कर दी। म्यांमार ने चीन से लंबी बातचीत के बाद चीनी निवेश को 85 फीसदी से घटाकर 70 फीसदी करवा दिया। म्यांमार सरकार से जुड़े अधिकारियों का कहना है कि उनकी सरकार ने यह फैसला श्रीलंका से सबक लेकर किया है। श्रीलंका ने अपने हम्बनटोटा बंदरगाह के निर्माण के लिए चीन से एक अरब डॉलर का कर्ज लिया था, लेकिन यह न चुका पाने की स्थिति में उसे यह बंदरगाह चीनी कंपनी को 99 साल की लीज पर देना पड़ा है। इस साल जुलाई-अगस्त में जब मलेशिया सहित कई देशों में चीन के निवेश के खिलाफ आवाजें उठीं तो म्यांमार ने एक बार फिर चीन से प्रोजेक्ट की कीमत पर बातचीत करने की अपील की। म्यांमार ने चीन से कहा कि उसे लगता है कि वह इतना कर्ज नहीं चुका सकेगा इसलिए बंदरगाह का निर्माण 7.3 अरब डॉलर की जगह 1.3 अरब डॉलर में ही किया जाए।
- संजय शुक्ला