18-Oct-2018 08:51 AM
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सूखा, फसल बर्बादी, किसान आत्महत्या, पीने के पानी की किल्लत और बेरोजगारी जैसे शब्द बुंदेलखंड की पहचान के साथ इतने जुड़ गए हैं कि जब तक इस इलाके में ऐसा कुछ न हो, नेशनल मीडिया में यहां से जुड़ी खबरें जगह भी नहीं बना पातीं। इन सभी परेशानियों को झेल रहा यह इलाका चुनावों के दौरान जातियों का अखाड़ा बन जाता है। 2013 विधानसभा चुनावों से ठीक पहले एससी/एसटी प्रोटेस्ट और फिलहाल जारी सवर्ण आंदोलन ने कई सीटों पर पार्टियों और स्थानीय नेताओं के बने-बनाए जातीय समीकरणों को तबाह कर दिया है। भले ही सवर्ण आंदोलन सुर्खियां बंटोर रहा हो लेकिन दो अप्रैल के आंदोलन के बाद एससी/एसटी जातियों ने भी इस इलाके में गोलबंदी शुरू कर दी है।
मध्य प्रदेश के हिस्से में आने वाले बुंदेलखंड के इलाके में कुल पांच जिले- सागर, छतरपुर, टीकमगढ़, दमोह और पन्ना आते हैं। इन पांच जिलों में कुल 26 विधानसभा सीटें हैं। इन 26 सीटों में से फिलहाल 20 बीजेपी के पास जबकि 6 कांग्रेस के पास हैं। इस इलाके के जातीय समीकरण की बात करें तो एससी/एसटी वोटर्स यहां सबसे ज्यादा करीब 32 प्रतिशत हैं। इस इलाके में 18 प्रतिशत सवर्ण, 26 प्रतिशत ओबीसी जबकि 24 प्रतिशत अन्य वोटर्स हैं जिनमें मुस्लिम और जैन मुख्य रूप से शामिल हैं। बुंदेलखंड में ज्यादातर सीटों पर जातीय समीकरणों के आधार पर पार्टियां टिकट बांटती हैं और वोटर्स भी इसी के आधार पर वोटिंग करते हैं। इस इलाके में बड़ी तादाद में एससी/एसटी वोटर्स होने के चलते बसपा भी ज्यादातर सीटों पर तीसरे नंबर की पार्टी रहती है।
बात सागर से शुरू करें तो राज्य के गृह मंत्री भूपेंद्र सिंह भी यहीं की खुरई सीट से विधायक है। बता दें कि पिछले चुनाव में उनकी जीत का अंतर सिर्फ 5000 वोट ही था। इलाके के लोगों से बात करने पर पता चलता है कि भूपेंद्र सिंह के काम से लोग खुश नहीं हैं, ऐसे में कांग्रेस की तरफ से मजबूत उम्मीदवार के खड़ा होने से बीजेपी के लिए चुनाव काफी मुश्किल हो सकता है। सागर जिले में कुल 8 विधानसभा सीटें हैं। सुरखी से भी बीजेपी की पारुल साहू विधायक हैं जो सिर्फ 141 वोट के अंतर से ही जीतकर आई थीं। यहां से कांग्रेस सिंधिया खेमे के नेता गोविन्द सिंह राजपूत पर अपना दांव खेल सकती है। बीना आरक्षित सीट है यहां से बीजेपी के महेश राय विधायक है। इस सीट पर आंदोलन और बसपा के कैंडिडेट के आने से बीजेपी के हिस्से आने वाले कुछ एससी वोट कम हो सकते हैं। देवरी से कांग्रेस के हर्ष यादव विधायक हैं लेकिन इस बार लोधी वोट एक होने से बीजेपी की स्थिति ज्यादा मजबूत बताई जा रही है। रहली, नरयावाली सीटें बीजेपी के पास है लेकिन यहां उसकी स्थिति थोड़ी कमजोर हुई है। नरयावली आरक्षित सीट है और रहली से गोपाल भार्गव विधायक हैं। सागर सीट से बीजेपी के शैलेन्द्र जैन विधायक हैं और जैन वोटर्स के सपोर्ट के चलते उनकी स्थिति काफी मजबूत है। हालांकि सपाक्स का दावा है कि शहरी इलाकों की सीटों पर उसे काफी जनसमर्थन मिल रहा है।
टीकमगढ़ जिले में कुल पांच सीटें हैं। टीकमगढ़ से बीजेपी के केके श्रीवास्तव विधायक हैं जिन्होंने पूर्व मंत्री यादवेंद्र सिंह को हराया था। इस सीट पर टिकट को लेकर बीजेपी में फूट की स्थिति बताई जा रही है और इसका फायदा कांग्रेस को मिल सकता है। जतारा आरक्षित सीट है और यहां से कांग्रेस के दिनेश कुमार अहिरवार विधायक हैं। फिलहाल एससी/एसटी आंदोलन के बाद कांग्रेस यहां मजबूत बताई जा रही है। पृथ्वीपुर की बात करें तो यहां से बीजेपी की अनीता सुनील नायक विधायक हैं लेकिन रामनरेश यादव की पुत्रवधु रौशनी यादव की दावेदारी से मुकाबला रोचक होता नजर आ रहा है। यहां बीजेपी से ही गणेशी नायक भी टिकट मांग रहे हैं। निवाड़ी में इस बार सपा काफी मजबूत नजर आ रही है। खरगापुर फिलहाल कांग्रेस के पास है लेकिन सवर्ण आंदोलन ने सारे जातीय समीकरणों को बदल दिया है।
छतरपुर जिले में कुल पांच विधानसभा सीटें हैं जिनमें से 5 पर बीजेपी जबकि 1 पर कांग्रेस का कब्जा है। यहां बीजेपी से ज्यादा कांग्रेस गुटबाजी की शिकार है। एक गुट पूर्व राज्यसभा सांसद सत्यव्रत चतुर्वेदी और उनके बेटे का है तो वही दूसरा गुट उनके ही भाई आलोक चतुर्वेदी उर्फ पज्जन भैया का है। दोनों के पारिवारिक रिश्ते खराब होने के चलते कांग्रेस 2 खेमों में बंटी हुई है। यहां लगातार दो बार से बीजेपी की ललिता यादव विधायक हैं, जो कि मंत्री भी हैं। वह पिछली बार यहां से सिर्फ 2217 वोट से कांग्रेस के आलोक चतुर्वेदी को हरा पाई थीं। महाराजपुर सीट भले ही बीजेपी के पास हो लेकिन यहां बसपा का भी काफी वोट बैंक है, इस बार भी यहां बीजेपी से मानवेंद्र सिंह की उम्मीदवारी मजबूत है लेकिन पुष्पेन्द्र नाथ पाठक, सूरजदेव मिश्रा ने मामला त्रिकोणीय बना दिया है। कांग्रेस लीडरशिप यहां कमजोर नजर आ रही है।
चंदला आरक्षित सीट है और यहां से बीजेपी के डी प्रजापति विधायक हैं। यहां भी सीट को लेकर दोनों पार्टियों में ही घमासान जारी है। हालांकि इलाके के लोग रेत माफिया, बिजली, सड़क और पानी जैसी समस्याओं से जूझ रहे हैं। राजनगर से कांग्रेस के कुंवर सिंह उर्फ नाती राजा विधायक हैं। यहां कांग्रेस से निकाले गए नेता प्रकाश पांडे इस बार नाती राजा का खेल बिगाड़ सकते हैं। सत्यव्रत चतुर्वेदी के बेटे बंटी चतुर्वेदी भी यहां से टिकट की आस लगाए हुए हैं। बीजेपी से यहां करीब छह दावेदार हैं। बिजावर में बीजेपी मजबूत नजर आती है लेकिन यहां भी गुटबाजी के चलते नुकसान हो सकता है। मलहरा सीट बीजेपी की रेखा यादव ने कांग्रेस के तिलक सिंह लोधी को 1514 वोटों से हराकर जीती थी। दमोह जिले में विधानसभा की कुल चार सीटें हैं। दमोह सीट से बीजेपी के जयंत मलैया विधायक हैं जो कि राज्य के वित्त मंत्री भी हैं। गुजरे 35 सालों में एक बार छोड़ दें तो इस सीट पर उनका ही कब्जा है। यहां सपाक्स और एससी/एसटी दोनों ही बंद का असर रहा था। बीजेपी-कांग्रेस दोनों ही इस सीट पर नुकसान में दिख रही हैं। पथरिया की बात करें तो यहां बीजेपी के लखन पटेल विधायक हैं और इस बार भी मजबूत नजर आ रहे हैं, हालांकि बसपा के अलग लडऩे से उनका खेल बिगड़ भी सकता है। जबेरा सीट से कांग्रेस के प्रताप सिंह विधायक हैं। हालांकि पूर्व मंत्री रत्नेश सोलोमन के बेटे आदित्य सोलोमन भी टिकट मांग रहे हैं। बीजेपी से चंदमान सिंह ही इकलौते उम्मीदवार नजर आ रहे हैं। हटा आरक्षित सीट है और यहां से बीजेपी की उमादेवी खटीक विधायक हैं और इन्हें ही उम्मीदवार बनाया जा सकता है। कांग्रेस यहां से पूर्व जिला अध्यक्ष हरिशंकर चौधरी को टिकट दे सकती है। पन्ना में तीन विधानसभा सीटें हैं जिनमें से 2 बीजेपी और 1 कांग्रेस के पास है। पवई सीट से कांग्रेस के मुकेश नायक विधायक हैं। बीजेपी यहां से ठाकुर वोटों के लिए बिजेंद्र सिंह को ही टिकट दे सकती है। गुन्नौर आरक्षित सीट है, इस सीट का इतिहास है कि यहां कोई विधायक रिपीट नहीं हो पाता। यहां पार्टियां लगातार तभी जीत पाती हैं जब उम्मीदवार बदल दें। यहां फिलहाल बीजेपी के महेंद्र सिंह बादरी विधायक हैं। पन्ना सीट से बीजेपी की कुसुम मेहदेले विधायक हैं जो कि मंत्री भी हैं। यहां बीजेपी की तरफ से कुसुम के अलावा करीब 10 और दावेदार हैं जिनमें सतानंद गौतम, सुधीर अग्रवाल आशा गुप्ता प्रमुख हैं। कांग्रेस का भी यहां यही हाल है और श्रीकांत दुबे के आलावा मीना यादव, श्रीकांत दीक्षित, केशव प्रताप सिंह अपनी दावेदारी बता रहे हैं। सपा भी इस सीट पर मजबूत है और महेन्द्रपाल वर्मा इस सीट से 2013 के चुनावों में दूसरे नंबर पर भी रहे थे।
4 मंत्रियों के खिलाफ माहौल
बुंदेलखण्ड से भाजपा ने इस बार सरकार में 5 विधायकों को मंत्री बनाया था। इनमें से गोपाल भार्गव को छोड़कर अन्य चार मंत्रियों जयंत मलैया, भूपेन्द्र सिंह, कुसुम मेहदेले और ललिता यादव के खिलाफ उनके विधानसभा क्षेत्र में ही माहौल है। पार्टी इस बार पन्ना विधायक कुसुम मेहदेले को शायद ही टिकट दे। लेकिन अन्य तीन मंत्रियों को घेरने के लिए कांग्रेस ने भी जोरदार तैयारी की है। वहीं क्षेत्र की कई ऐसी विधानसभा सीटें हैं जहां भाजपा कमजोर नजर आ रही है।
गुटबाजी के चलते असली समस्याओं पर ध्यान नहीं
इस इलाके में बीजेपी और कांग्रेस को सवर्ण और एससी/एसटी आंदोलन से ज्यादा आपसी गुटबाजी से नुकसान होता नजर आ रहा है। सवर्ण आंदोलन ज्यादातर सीटों पर यहां सिर्फ ब्राह्मणों तक ही सिमटा नजर आ रहा है। व्यापारियों ने सवर्ण आंदोलन को सपोर्ट किया था लेकिन इनके पास कोई नेतृत्व ही नहीं है। सवर्ण आंदोलन का शहरी सीटों को छोड़ दें तो कहीं कोई असर नजर नहीं आता। उनके मुताबिक सपाक्स अगर चुनाव लड़ेगी भी तो 2-3 हजार से ज्यादा वोट का नुकसान नहीं पहुंचा पाएगी। बुंदेलखंड सर्वदलीय नागरिक मोर्चा के संरक्षक और समाजवादी नेता रघु ठाकुर कहते हैं कि मध्य प्रदेश द्वारा बनाए गए बुंदेलखंड विकास प्राधिकरण का बजट पांच करोड़ रुपए है। इतनी कम राशि में कैसे विकास हो सकता है। जबकि यूपी सरकार के बुंदेलखंड विकास परिषद का तो अभी तक गठन ही नहीं हुआ है।
द्यरजनीकांत पारे