18-Oct-2018 07:42 AM
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वेस्टइंडीज की टीम भारत के दौरे पर आई तो खबरे आने लगी कि भारतीय टीम प्रबंधन ने नवंबर में होने वाले ऑस्ट्रेलिया दौरे के मद्देनजर हरी व तेज पिचों की मांग की है। लगा कि टीम ऑस्ट्रेलिया के मुश्किल दौरे पर खेले जाने वाले चार टेस्ट मैचों से पहले पेशेवर तरीके से सोच रही है। यह भी कि उसने एशिया के बाहर अपनी शर्मनाक हारों से सीखना शुरू कर दिया है।
वेस्टइंडीज दोनों मैच तीन दिन के भीतर हार गई। टीम इंडिया के लिए उपर से लेकर निचलेक्रम तक के बल्लेबाजों ने छक्क कर रन बनाए। यह पूरी सीरीज जैसे किसी बड़ी लड़ाई पर जाने से पहले प्लास्टिक के खिलौना हथियारों से अभ्यास जैसी ही रही। लगा कि यह टीम इतनी जबरदस्त फॉर्म में है कि किसी की भी बखियां उधेड़ देगी। यह सही है कि दोनों मैचों के सपाट पिचों पर भारतीय तेज गेंदबाजों ने विकेट हासिल किए, लेकिन जो मेहनत उन्हें इन पिचों पर करनी पड़ी है, वह शायद ही किसी को दिखाई दे।
हैदराबाद टेस्ट मैच में दस विकेट हासिल करने वाले उमेश यादव का आंकलन इस तरफ इशारा करता है। मैन ऑफ द मैच यादव ने कहा कि यह पिच इतनी सपाट थी कि इस पर गेंदबाजी की सबसे बड़ी चुनौती रनों के रफ्तार पर काबू रखना था। दोनों मैचों में भारतीय टीम के स्कोर बोर्ड पर निगाह डालने से लगता है कि इस बल्लेबाजी के सामने कोई भी गेंदबाजी ठहर ही नहीं सकती। लेकिन सबसे बड़ा सवाल है कि क्या ऑस्ट्रेलिया जैसे क्रिकेटरों के करियर को खतरे में डालने वाले दौरे से पहले ऐसी पिचों पर टेस्ट मैच और उनमें वीडियो गेम के स्कोर जैसे रन विराट कोहली की टीम के लिए कितने मददगार साबित होंगे।
इस साल जनवरी में साउथ अफ्रीका के दौरे पर जाने से पहले टीम इंडिया ने श्रीलंका की मेजबानी की थी। तीन मैचों की उस सीरीज में दो मैच ड्रॉ रहे और एक भारत ने जीता। उस सीरीज की छह पारियों में भारतीय बल्लेबाजों ने 1916 रन बनाए, जिसमें सात शतक और सात अर्धशतक थे। रोहित शर्मा ने तो दोहरा शतक ठोका था। उस समय स्कोर बोर्ड को देखने के बाद कोई शक ही नहीं था कि इस टीम की बल्लेबाजी जबरदस्त फॉर्म में है। लेकिन साउथ अफ्रीका पहुंचते ही जैसे पूरा गणित ही बदल गया। साउथ अफ्रीका के खिलाफ तीन मैचों की सीरीज की छह पारियों में भारत महज एक बार ही 300 के स्कोर से उपर पहुंच पाया, दो मैच बुरी तरह से हारने के बाद जोहनसबर्ग में टीम को जीत मिली और सीरीज 1-2 से खत्म हुई। उस सीरीज में विराट कोहली के एकमात्र शतक और एक अर्धशतक के अलावा केवल हार्दिक पांडया और चेतेश्वर पुजारा ही थे जो एक-एक बार पचास रन से उपर पहुंच सके।
अगर ऑस्ट्रेलिया के दौरे से पहले तेज पिचों की मांग की खबर सही होती तो टीम इंडिया से इस बार बेहतर करने की उम्मीद करना बेमानी नहीं थी, लेकिन इस सीरीज से ठीक पहले वेस्टइंडीज जैसी दोयम दर्जे की टीम के साथ इतनी सपाट और रनों की फसल देने वाली पिचों पर यह सीरीज खेल कर भारतीयों ने एक बार फिर से खुद को जोखिम में डाल लिया है। इस साल अगस्त में टीम इंग्लैंड से अपनी साख 1-4 से लुटवा कर लौटी है। यह सीरीज कई महीने पहले से तय थी, लेकिन वहां जाने से पहले तैयारी के तौर पर किसी मजबूत टीम के खिलाफ खेलने की बजाय टीम प्रबंधन ने अफगानिस्तान से टेस्ट मैच खेला। उस मैच का परिणाम क्या होना था, सभी को पता था।
एशिया के बाहर टीम
का गिर रहा है ग्राफ
एशिया से बाहर टीम इंडिया के रिकॉर्ड के लगातार गिरते ग्राफ के कारण उसकी क्षमताओं पर सवाल उठते रहे हैं। टीम का समर्थन करने वाले जानकार और पूर्व क्रिकेटर मैच ड्रॉ करवाने या सीरीज के फैसले के बाद एक अदद जीत को भी टीम का बेहतर प्रदर्शन बताकर न केवल खिलाडिय़ों, बल्कि इस खेल को चाहने वालों को धोखा दे रहे हैं। यह कुछ ऐसा है कि जो टीम के खिलाफ जाता है। इंग्लैंड में सीरीज 1-4 से हार का मतलब साफ है। एक मैच में जीत टीम इस शर्मनाक नतीजे को झुठला नहीं सकती। वैसे पिछले 18 साल में भारत ने ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ उसके मैदानों पर 17 टेस्ट मैच खेले हैं और उसमें से वह दस हारा और सिर्फ दो जीता है। वैसे वह पांच मैच ड्रॉ भी खेलने में कामयाब रहा।
द्यआशीष नेमा