तेल का खेल
17-Sep-2018 09:14 AM 1235075
पिछले कुछ समय से पेट्रोल डीजल के दाम लगातार बढ़ रहे हैं और हर दिन इनके दाम नये रिकार्ड छू रहे हैं। महाराष्ट्र के परभणी में तो पेट्रोल 92 रूपये पहुंच गया। दिल्ली में भी पेट्रोल सारे रिकार्ड तोड़कर 80 रूपये पर बिक रहा है। सरकार पर चारों तरफ से विपक्षी दलों का हमला हो रहा है। तेल के इन बढ़े दामों और तेल की लूट के विरोध में कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों ने 10 सितंबर को भारत बंद कराया था। तमाम मांगों और दबाव के बावजूद भी सरकार टैक्स में कोई कटौती करने को तैयार नहीं है। दरअसल भारत अपनी जरूरत का 80 प्रतिशत तेल आयात करता है। औसतन लगभग 5 मिलियन बैरल तेल रोज आयात होता है। जून 2010 से पेट्रोल और अक्टूबर 2014 से डीजल को डीरेगुलेट कर दिया गया, यानी तेल कंपनियां अंतर्राष्ट्रीय कीमत के अनुसार दाम घटा बढ़ा सकेंगी और इसमें सरकार का हस्तक्षेप नहीं होगा। चूंकि अंतर्राष्ट्रीय मार्केट में तेल की कीमत डॉलर में होती है तो जब भी रूपये की कीमत डॉलर के मुकाबले गिरती है तो उतना ही तेल खरीदेने के लिए ज्यादा पैसा चुकाना होता है। अब जो तेल बाजार में बिकता है उसकी कीमत में कई फैक्टर शामिल होते हैं। तेल एक निश्चित मूल्य पर डीलरों को मिलता है। उस तेल पर केंद्र सरकार का उत्पाद कर, फिर राज्य सरकार का बिक्री कर, डीलर को मिलने वाला कमीशन, इन सबको जोड़कर अंत में तेल का मार्केट मूल्य तय होता है। इसमे केंद्र का उत्पाद कर देश के हर हिस्से में एक जैसा होता है लेकिन राज्यों का बिक्री कर हर राज्य में अलग-अलग होता है, इसलिये हर राज्य में तेल की कीमत अलग होती है। जहां तक मध्यप्रदेश सहित कुछ राज्यों में तेल की कीमतें बढऩे का मामला है तो इसके पीछे मुख्य वजह यह है कि राज्य सरकारें अपने खर्चों की भरपाई के लिए पेट्रोलियम पदार्थों पर टैक्स बढ़ाती रहती हैं। पेट्रोलियम पदार्थों की मूल्यवृद्धि के खिलाफ भारत बंद करने वाली कांग्रेस शासित राज्यों में भी पेट्रोल डीजल पर टैक्स बेहिसाब है। कांग्रेस शासित कर्नाटक में सरकार बनने के बाद सरकार ने किसानों का कर्ज माफ कर दिया। जिससे सरकार पर लगभग 35 हजार करोड़ का बोझ पड़ा। इस बोझ की भरपाई करने के लिए सरकार ने पेट्रोल पर टैक्स 30 से बढ़ाकर 32 प्रतिशत और डीजल पर 19 प्रतिशत से बढ़ाकर 21 प्रतिशत कर दिया। सरकार का कहना था कि किसानों की कर्ज माफी और प्रदेश के विकास के लिए पैसे की जरूरत है और सरकार के पास इसके अलावा कोई चारा नहीं है। वहीं पंजाब देश के उन राज्यों में है जहां पेट्रोल डीजल पर सबसे ज्यादा टैक्स है। दरअसल चाहे राज्य हो या केंद्र, पेट्रोलियम पदार्थों की बिक्री से मिलने वाले कर का इस्तेमाल सरकार तमाम विकास और वेलफेयर योजनाओं को फाइनेंस करने के लिए करती है। और कर में कटौती से सरकार की आय कम होती है और किसी भी सरकार के लिए आय ना होने पर खर्च करना संभव नहीं हो सकता। दरअसल यूपीए सरकार के दौरान 2004 से 2014 के बीच जब पेट्रोल और डीजल के दाम डिरेग्यूलेटेड नहीं थे, तब सरकार तेल पर सब्सिडी देती थी। इस दौरान सरकार को लगभग 8,53,628 करोड़ रूपये की अंडर रिकवरी हुई। यानी जिस मूल्य पर सरकार अंतर्राष्ट्रीय बाजार से खरीदती है और जिस मूल्य पर भारतीय बाजार में बेचती है उसके बीच का अंतर। इसका एक बड़ा हिस्सा घाटे के रूप में दर्ज होता है। इससे सरकार का राजकोषीय घाटा बढ़ता है। राजकोषीय घाटे बढऩे से महंगाई बढ़ती है। इस महंगाई को नियंत्रित करने के लिए सरकार बैंकों के लोन रेट बढ़ाती है। लोन रेट बढऩे से प्राइवेट इंवेस्टमेंट कम होता है जिससे देश की विकास दर और रोजगार के अवसर पर असर पड़ता है। इसलिये एक हद तक तेल के दाम भारत जैसे देश के विकास में अहम भूमिका निभाते हैं। इसलिये चाहे केंद्र सरकार हो या राज्य सरकार तमाम आलोचनाओं के बाद भी इन पर से कर कम नहीं करतीं। - राजेश बोरकर
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