04-Sep-2018 09:17 AM
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राजस्थान में करीब 4 माह बाद होने वाला विधानसभा चुनाव मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सचिन पायलट के राजनीतिक अस्तित्व के लिए काफी महत्वपूर्ण है। इसी के मद्देनजर वसुंधरा राजे अपनी छवि को बेहतर बनाने की कवायद में जुटी है। वसुंधरा राजे अपनी राजस्थान गौरव यात्रा के माध्यम से प्रदेश में लोगों की नब्ज टटोलने के साथ ही सरकारी योजनाओं के तेजी से क्रियान्वयन में व्यस्त है। वहीं प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सचिन पायलट ने भी अपनी पूरी ताकत चुनाव अभियान में झोंक रखी है। प्रदेश के दिग्गज कांग्रेसी नेताओं के बीच चल रही खीचंतान के बीच पायलट अपनी अगुवाई में कांग्रेस की सरकार बनाने की कोशिश में जुटे है।
राज्य में चल रही सत्ता विरोधी लहर। भाजपा के परम्परागत वोट बैंक राजपूत समाज के साथ ही आरक्षण के मुद्दे को लेकर गुर्जर समाज की नाराजगी। सरकारी कर्मचारियों एवं बेरोजगारों का सरकार के खिलाफ सड़कों पर उतरना। भाजपा के दिग्गज नेता घनश्याम तिवाड़ी द्वारा पार्टी से नाता तोड़कर भारत वाहिनी पार्टी नाम से अलग दल बनाकर जनसंघ एवं भाजपा के पुराने लोगों को अपने साथ जोडऩे से और दो लोकसभा और एक विधानसभा उप चुनाव में पार्टी प्रत्याशियों की भारी मतों से हार के बीच फिर से भाजपा को सत्ता में लाना मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के लिए चुनौती भरा काम है। वहीं पिछले तीन-चार साल से वसुंधरा राजे और भाजपा आलाकमान के बीच विवाद की चर्चा आम हो चुकी है।
भाजपा प्रदेश अध्यक्ष पद को लेकर पार्टी आलाकमान और वसुंधरा राजे के बीच कई दिनों तक खींचतान चलने के बाद आखिरकार मुख्यमंत्री अपनी पसंद के मदनलाल सैनी को अध्यक्ष बनवाने में कामयाब रही। इसके साथ ही वसुंधरा राजे ने पार्टी अध्यक्ष अमित शाह से खुद को चुनाव जीतने पर फिर से मुख्यमंत्री बनाए जाने की घोषणा करवा ली। इन सबके बीच अब विधानसभा चुनाव जीतना वसुंधरा राजे के लिए करो या मरो हालात जैसा हो गया है। चुनाव परिणाम भाजपा की आंतरिक राजनीति और वसुंधरा राजे के राजनीतिक करियर को काफी हद तक प्रभावित करेगा। यदि भाजपा चुनाव जीतती है तो वसुंधरा राजे का राजनीतिक कद बढ़ेगा और यदि पराजय होती है तो उनका राजनीतिक अस्तित्व संकट में हो सकता है।
पिछले साढ़े चार साल से प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष के रूप में काम कर रहे सचिन पायलट के राजनीतिक अस्तित्व के लिए विधानसभा चुनाव काफी महत्वपूर्ण साबित होगा। पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और पूर्व केन्द्रीय मंत्री डॉ. सीपी जोशी सहित कई दिग्गज नेताओं के साथ चल रहे मतभेदों के बावजूद पायलट ने खुद को प्रदेश के नेता के रूप में स्थापित तो कर लिया, लेकिन अब खुद की अगुवाई में चुनाव जीतना उनके लिए काफी चुनौतीपूर्ण होगा। दो लोकसभा और एक विधानसभा सीट के उप चुनाव में पार्टी प्रत्याशियों की जीत से उत्साहित पायलट के लिए गहलोत और जोशी खेमों से पार पाना अभी भी मुश्किल है। मुख्यमंत्री पद के चेहरे को लेकर पार्टी नेताओं के बयानों से कार्यकर्ताओं में उत्पन्न हुए असमंजस के हालात, नीचले स्तर तक नेताओं और कार्यकर्ताओं के बीच गुटबाजी को खत्म करना फिलहाल तो मुश्किल लग रहा है।
कांग्रेस के परम्परागत वोट बैंक दलित और आदिवासियों का भाजपा के प्रति बढ़ता झुकाव भी कांग्रेस के लिए चिंता की बात है। पार्टी के ही एक वर्ग द्वारा पायलट के अध्यक्ष रहते हुए मीणा समाज द्वारा कांग्रेस को वोट नहीं देने की फैलाई गई चर्चा। इन सबके बीच राज्य में यदि कांग्रेस की सरकार बनती है तो पायलट के राजनीतिक भविष्य के लिए बेहद अच्छा होगा। यह भी हो सकता है कि वे मुख्यमंत्री बन जाए और यदि सरकार नहीं बनती है तो उनके राजनीतिक भविष्य को नुकसान भी हो सकता है।
कांग्रेस फील्ड में चुनावी तैयारियों में जुट गई है लेकिन बंद कमरों में होने वाले चुनावी फैसलों में देरी हो रही है। दो माह से कांग्रेस की चुनावी कमेटियों की घोषणा अटकी हुई है। कांग्रेस के बड़े नेता जुलाई के शुरू में ही चुनावी कमेटियों की घोषणा का दावा कर रहे थे लेकिन अब तक घोषणा का इंतजार है। कांग्रेस ने 22 जून को ही कुमारी शैलजा की अध्यक्षता में स्क्रीनिंग कमेटी का गठन कर दिया था। उस समय प्रदेश प्रभारी सहित कई बड़े नेताओं ने बची हुई चुनावी कमेटियों का गठन जुलाई तक करने का दावा किया था।
आपसी खींचतान में अटकी कांग्रेस की चुनावी कमेटियां !
कांग्रेस में सात चुनावी समितियों का गठन होना है। प्रदेश चुनाव समिति चुनाव अभियान समिति समन्वय समिति घोषणा पत्र समिति मीडिया व प्रचार समिति अनुशासन समिति और प्लानिंग कमेटी का गठन होना है। कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष सहित बड़े नेता हर बार चुनावी कमेटियों के बारे में पूछने पर एक ही जवाब देते हैं कि जल्द गठन हो जाए लेकिन जल्द का इंतजार कांग्रेस कार्यकर्ताओं के लिए लंबा हो रहा है। चुनावी कमेटियों में कौन नेता शामिल हो इस पर खूब मंथन हो चुका है लेकिन प्रदेश के कई दिग्गज नेता उन पर सहमत नहीं है। ऐसे में कमेटियों की घोषणा को टाल दिया है। अब कांग्रेस अध्यक्ष राहल गांधी के हस्तक्षेप के बाद ही चुनावी कमेटियों की घोषणा हो सकेगी। विधानसभा चुनावों की आचार संहिता लगने में बमुश्किल डेढ़ महीने का समय बचा है और ऐसे मेंं चुनावी कमेटियों के गठन में देरी कांग्रेस के लिए प्लानिंग के स्तर पर परेशानी पैदा कर सकती है। कांग्रेस के लिए इस मामले में संतोष की बात केवल इतनी सी है कि अभी भाजपा ने चुनावी समितियां नहीं बनाई है।
-जयपुर से आर.के. बिन्नानी