अगस्त क्रांतिÓ कितनी कारगर?
18-Aug-2018 10:31 AM 1234787
2019 के चुनाव से पहले बीजेपी को लगने लगा है कि अब एससी-एसटी और ओबीसी समुदाय की नाराजगी दूर कर उन्हें अपने करीब लाने का वक्त आ गया है। पार्टी इस कोशिश में जोर-शोर से जुटी है। इसे केंद्र सरकार के हालिया लिए गए कई फैसलों से समझा जा सकता है। सबसे पहले केंद्र सरकार ने लंबे इंतजार के बाद एससी-एसटी एक्ट को लेकर सुप्रीम कोर्ट के दिए फैसले में बदलाव के लिए एससी-एसटी एक्ट संशोधन बिल संसद में लेकर आई। लोकसभा में ये बिल पारित भी हो चुका है। 20 मार्च को दिए अपने फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने एससी-एसटी एक्ट के प्रावधानों में बदलाव किए थे। इस कानून की सबसे बड़ी खूबी थी- मुकदमे के लिए किसी भी तरह की प्राथमिक जांच की आवश्यकता न होना और एक बार मुकदमा दर्ज हो जाने के बाद अग्रिम जमानत के प्रावधान का न होना। इन दोनों प्रावधानों को सुप्रीम कोर्ट ने निरस्त कर दिया। एससी-एसटी समुदाय के जबरदस्त विरोध के बाद अब सुप्रीम कोर्ट के फैसले को पलटते हुए सरकार बिल के जरिए एससी-एसटी एक्ट को दोबारा पुराने फॉर्म में लेकर आने वाली है। दूसरा अहम फैसला है पिछड़ा वर्ग आयोग को संवैधानिक दर्जा दिलवाना। केंद्र सरकार ने संविधान संशोधन बिल के जरिए पिछड़ा वर्ग आयोग को संवैधानिक शक्तियां उपलब्ध करवा चुकी हैं। इन दोनों फैसलों के जरिए अब केंद्र सरकार एससी-एसटी और ओबीसी को अपनी तरफ खींचने की कोशिश कर रही हैं। बीजेपी पार्लियामेंट्री पार्टी की मीटिंग के बाद प्रधानमंत्री मोदी ने अपने सांसदों को बताया कि केंद्र सरकार इन दो फैसलों के जरिए एससी-एसटी और ओबीसी समुदाय के लिए अगस्त क्रांति लेकर आई है। पीएम मोदी ने अपने सांसदों को सलाह दी कि अगस्त महीने में लिए सरकार के इन दोनों फैसलों का पूरा क्रेडिट उन्हें लेना चाहिए। जनता के बीच ये संदेश अच्छी तरह से पहुंचना चाहिए कि जो काम चार पीढिय़ों में पूरा नहीं हो सका उसे सरकार ने इस अगस्त महीने में पूरा कर दिखाया। अगस्त का ये महीना सरकार के सामाजिक न्याय के लिए, लिए गए इन दो फैसलों की वजह से जाना जाएगा। प्रधानमंत्री मोदी ने आह्वान किया कि हर साल 1 अगस्त से लेकर 9 अगस्त तक सामाजिक सौहार्द पखवाड़ा दिवस के बतौर मनाया जाए। इस साल 15 अगस्त से लेकर 30 अगस्त तक सामाजिक न्याय पखवाड़ा मनाए जाने का निर्णय लिया गया है। इस दौरान बीजेपी के सांसद ओबीसी और एससी-एसटी समुदाय के लोगों के बीच जाएंगे। एक सांसद कम से कम 50 मीटिंग्स में हिस्सा लेगा और पिछड़े वर्ग और एससी-एसटी समुदाय के कम से कम एक हजार लोगों से मिलेगा। 2014 के लोकसभा चुनाव में बड़ी संख्या में एससी-एसटी समुदाय के लोगों ने बीजेपी को वोट किया था। अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के सबसे ज्यादा सांसद और विधायक बीजेपी से हैं। 2014 के चुनाव में अकेले यूपी से बीजेपी ने 17 रिजर्व सीटों पर जीत हासिल की थी। 2017 के यूपी चुनाव में दलित वोट बीजेपी की झोली में गिरे। लेकिन इन सबके बावजूद एससी-एसटी और ओबीसी वोटर्स को लेकर बीजेपी का विश्वास डगमगाया है। इस समुदाय के वोट बैंक को लुभाने के लिए पार्टी ने पूरा जोर लगा दिया है। इसी कड़ी में गत दिनों बीजेपी ने एससी-एसटी मोर्चे को कुछ स्पष्ट निर्देश दिए। मोर्चा को कहा गया है कि वो ज्यादा से ज्यादा पिछड़े और एससी-एसटी समुदाय के लोगों के बीच पहुंचे। सोशल मीडिया के जरिए कैंपेन चलाकर इस समुदाय के लोगों को अपने साथ जोड़ें। नए फेसबुक पेज और ट्विटर हैंडल के जरिए बीजेपी के लिए पिछड़े तबके की गलतफहमियों को दूर करें। बीजेपी कहीं से भी कोई रिस्क लेने के मूड में नहीं है। बीजेपी एससी-एसटी मोर्चा के अध्यक्ष और सांसद विनोद कुमार सोनकर कहते हैं कि देश की आजादी में अगस्त महीने का विशेष महत्व है। 9 अगस्त को क्रांति दिवस के तौर पर मनाया जाता है। उसी तरह से आजादी के 70 वर्षों में भी जिस तरह से पिछड़ा वर्ग को संवैधानिक दर्जा नहीं दिया गया। सौभाग्य से इसी अगस्त महीने में पीएम मोदी के नेतृत्व में दर्जा मिला है। दूसरा सुप्रीम कोर्ट के निर्णय की वजह से एससी-एसटी एक्ट में जो गड़बड़ी हो गई थी, उसको दूर करने के लिए बिल लाया गया। प्रमोशन में आरक्षण का निर्णय भी एससी के पक्ष में इसी महीने में आया। यूजीसी के रोस्टर को रोकने का काम भी सरकार ने इसी महीने में किया। ये पूरा विषय सामाजिक बदलाव के लिए है। इसलिए सामाजिक न्याय सप्ताह मनाया जा रहा है।Ó चाहे एससी-एसटी एक्ट में बदलाव का मसला हो, विश्वविद्यालयों में रोस्टर का मसला हो या प्रमोशन में आरक्षण का मसला। इन सारे मुद्दों पर बीजेपी की छवि दलित और पिछड़ा विरोधी बनाए रखने की कोशिश चलती रही है। इन मुद्दों पर हर बार विपक्ष ने बीजेपी को घेरा है। आरएसएस के भीतर से उठी आरक्षण की समीक्षा की मांग जैसे बयानों ने बीजेपी के लिए मुश्किलें और बढ़ाई हैं। दलितों और पिछड़ों के लिए भाजपा के पास क्या जमीनी स्तर पर दलित समुदाय के भीतर बीजेपी के लिए नाराजगी झलकती है। लेकिन ये पक्के तौर पर नहीं कहा जा सकता है कि दलित और ओबीसी समुदाय अपनी नाराजगी बीजेपी के खिलाफ वोट करके जाहिर करेगा। खासकर एक समुदाय एकमुश्त तौर पर वोट कर दे ऐसा मुश्किल है। बीजेपी का पूरा जोर है कि ज्यादा से ज्यादा ऐसे वोटर्स को छिटकने से रोका जाए। इसलिए पिछड़ा और दलित समुदाय उनके एजेंडे में अहम हो गए हैं। बीजेपी दलित मुद्दों पर बचाव के साथ विपक्ष पर हमलावर रुख अपनाए हुए है। बीजेपी एससी-एसटी मोर्चा के अध्यक्ष विनोद कुमार सोनकर कहते हैं, 1997 में जब आरक्षण संबंधी सुप्रीम कोर्ट के 5 फैसले हम लोगों के खिलाफ चले गए तो 2002 में अटल की सरकार ने बाकायदा तीन संविधान संशोधन करके आरक्षण बचाने का काम बीजेपी ने किया। हम अऩुसूचित जाति जनजाति के स्वाभिमान के लिए बिल लेकर आए। प्रमोशन में आरक्षण गया तो बहनजी की गलती की वजह से गया उसको ठीक करने के लिए एसएलपी फाइनल करने का काम ये सरकार करती है। -इन्द्र कुमार
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