02-Aug-2018 08:17 AM
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देशद्रोह और देशद्रोही ये दो शब्द इन दिनों मध्यप्रदेश की राजनीतिक फिजा में खूब गूंज रहे हैं। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के आरोपों पर दिग्विजय सिंह गिरफ्तारी देने टीटी नगर थाने पहुंचे। उनकी गिरफ्तारी ना तो होनी थी और ना ही हुई। जब उमा भारती ने बंटाधार कहा था तो दिग्विजय सिंह ने मानहानि का मुकदमा ठोक दिया था। अब क्या वजह है कि कथित रूप से देशद्रोही कहे जाने पर उन्होंने रैली निकाली। दिग्विजय सिंह के शक्ति प्रदर्शन के इस दांव में निशाने पर कौन था? ये बड़ा सवाल है। वो वाकई शिवराज के देशद्रोही जैसे आरोप से आहत होकर विरोध जता रहे थे या फिर रैली के बहाने अपनी ही पार्टी को अपनी ताकत दिखा रहे थे।
दरअसल इस रैली को दिग्विजय का शक्ति प्रदर्शन कहा जा रहा है। सवाल ये है कि ये शक्ति प्रदर्शन था किसलिए। इस रैली से बड़े नेताओं ने दूरी बना ली। पहले हां-हां करने वाले तमाम नेता आखिरी वक्त में नदारद थे। अजय सिंह और विवेक तन्खा शामिल नहीं हुए। कमलनाथ ने सिर्फ पीसीसी से रैली शुरू कराके पीछा छुड़ा लिया। बड़े नेता के नाम पर सिर्फ सुरेश पचौरी और रामनिवास रावत ही मौजूद थे। दिग्विजय सिंह की रैली में अनुमान के मुताबिक करीब 5 हजार कार्यकर्ता शामिल हुए। बताया जा रहा है कि इस मामले में पीसीसी चीफ ने पहले ही निर्देश जारी किए थे कि ये दिग्विजय सिंह का निजी मामला है। लेकिन पार्टी उनके साथ खड़ी है, ये संदेश देने के लिए कार्यकर्ता इस रैली में जरूर शामिल हों।
सीडब्लूसी से बाहर होने के बाद दिग्विजय सिंह ने अपनी ताकत दिखाई। रैली के दौरान करीब 2 घंटे तक पुलिस प्रशासन के हाथ-पैर फूले रहे। पीसीसी चीफ कमलनाथ ने ये भी सख्त निर्देश दिया था कि कोई भी कार्यकर्ता पुलिस या प्रशासन से बदसलूकी नहीं करेगा। हालांकि भीड़ ज्यादा होने के कारण कई जगह कार्यकर्ताओं के बीच धक्का-मुक्की और मारपीट भी हुई। यहां तक कि सुरेश पचौरी के साथ भी बदसलूकी की गयी। दरअसल कार्यकर्ताओं का क्रेज दिग्विजय सिंह के साथ सेल्फी लेने के लिए था। उमा भारती ने दिग्विजय सिंह को बंटाधार कहा था, तब दिग्विजय ने सीधे मानहानि का दावा ठोक दिया था। लेकिन इस बार ऐसा नहीं हुआ। दिग्विजय ने इस बार गांधीवादी तरीका अपनाया। सीडब्लूसी में शामिल नहीं होने पर दिग्विजय का अपनी ताकत दिखाने का ये एक तरीका था।
दूसरी तरफ कांग्रेस में कमलनाथ ने पार्टी के सभी दिग्गजों को अपने झंडे तले इक_ा करने में कामयाबी हासिल कर ली है मगर दिक्कत आ रही है सबके बीच में समन्वय की। कमलनाथ की अपनी टीम में कोई युवाओं में ऐसा सर्व स्वीकार और सर्वशक्तिशाली लीडर नहीं है जो अपने वरिष्ठों की टीम के साथ तालमेल बैठा सके। यहां सारे काम कमलनाथ को ही करने हैैं। समय कम है और इसमें कमलनाथ कुछ खास करने के लिये वक्त नहीं निकाल पा रहे हैैं। प्रदेश कांग्रेस कार्यालय में अनुभवी नेता तो हैं मगर नई पीढ़ी के साथ उनका समन्वय नहीं है। कांग्रेस की दिक्कत यहीं से शुरू होती है। कुल मिलाकर सारे बढ़े खिलाड़ी जिसमें पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह से लेकर ज्योतिरादित्य सिंधिया, सुरेश पचौरी, कांतिलाल भूरिया, सत्यव्रत चतुर्वेदी, अरुण यादव जैसे तमाम और भी नेताओं की सूची है यह सब साथ तो हैं मगर कौन कहां से और कैसे पार्टी को आगे बढ़ाएगा यह तय नहीं होने से भ्रम, असमंजस, अनिश्चितता का माहौल बना हुआ है।
अगर पार्टी इससे नहीं उबरी तो युवा कार्यकर्ताओं में एक किस्म की निराशा होगी और वे भाजपा की तरफ झुकें तो किसी को हैरत नहीं होगी। पार्टी के अंदरखाने से जो खबरें आ रही हैैं उसमें कमलनाथ और ज्योतिरादित्य सिंधिया के बीच पर्याप्त तालमेल का नहीं होना भी चिंता का विषय है। पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह प्रदेश भर में यात्रा कर कार्यकर्ताओं को सक्रिय कर रहे हैं। इसमें सक्रियता का लाभ मिल रहा है तो गुटबाजी पनपने की खबरें भी आ रही हैैं। हालांकि कांग्रेस में गुटबाजी होने का मतलब है कि वह ताकतवर हो रही है। इसका सही उपयोग हुआ तो सत्ता और अनदेखी हुई तो फिर विपक्ष जिंदाबाद।
कमलनाथ के सामने चुनौतियां
कमलनाथ की भी कम दिक्कतें नहीं हैैं। उन्हें अपने भरोसे का कोई युवा और वरिष्ठता लिए हुए ऐसा लीडर नहीं मिल रहा है जो सबके साथ मिल कर काम कर पाए। चंद्रप्रभाष शेखर को कार्यालय की कमान सौैंपी तो उम्र उनके आड़े आ रही है। मीडिया का जिम्मा मानक अग्रवाल को सौैंप दिया गया था। लेकिन बाद में उन्हें हटाकर शोभा ओझा को कमान सौंप दी है। वहीं केके मिश्रा को कोई काम नहीं देना भी प्रदेश नेतृत्व की उपयोग करने वाली क्षमता पर सवाल खड़े करता है। वैसे ही कांग्रेस की गाड़ी सक्रियता के मामले में निर्धारित समय से देरी से चल रही है। ऐसे में कमलनाथ, सिंधिया, दिग्विजय सिंह की जुगलबंदी में नौजवान लीडरों की दूसरी पंक्ति को सक्रिय नहीं किया तो बाजी फिर हाथ से फिसलती लग सकती है।
- नवीन रघुवंशी