पावर का बोनस
19-Jul-2018 08:57 AM 1234863
दिल्ली सरकार के अधिकारों के बारे में सुप्रीम कोर्ट का फैसला निश्चित तौर पर अरविंद केजरीवाल और आम आदमी पार्टी के लिए जीत है। हालांकि, दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा दिए जाने का मामला अभी भी इस केंद्र शासित प्रदेश की सत्ताधारी पार्टी और उसके नेताओं के लिए दूर की कौड़ी ही माना जा सकता है, लेकिन बेशक यह उनके लिए खुशी का मौका है। सुप्रीम कोर्ट ने चुनी हुई सरकार के पक्ष में अधिकारों और जिम्मेदारियों की परिभाषा फिर से तय की है। उप-राज्यपाल (लेफ्टिनेंट गवर्नर) को अब दिल्ली सरकार के मंत्रिमंडल की मदद और सलाह के मुताबिक काम करना होगा। दिल्ली के प्रशासनिक कामकाज, परियोजनाओं को शुरू करने और अधिकारियों की पोस्टिंग व ट्रांसफर के लिए मुख्यमंत्री द्वारा उपराज्यपाल को सिर्फ सूचना देना पर्याप्त होगा और सीएम अपने हिसाब से इन मामलों में कार्यों को अंजाम दे सकेंगे। दरअसल दिल्ली हाईकोर्ट ने अपने फैसले में उपराज्यपाल अनिल बैजल को दिल्ली का प्रशासनिक हेड बताया था। जिसके बाद दिल्ली सरकार ने जब सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया तो उसे पावर का बोनस भी मिल गया। सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक फैसले से केजरीवाल को एक तरह से हस्तिनापुर के रण के लिये कर्ण का कुंडल-कवच मिल गया। अब केजरीवाल को सत्ता चलाने के लिए तीन वरदान मिल चुके हैं। उनकी सलाह मानने के लिये उपराज्यपाल बाध्य होंगे। अभी तक अरविंद केजरीवाल को अपने हर फैसले के लिये उपराज्यपाल की मंजूरी लेनी पड़ती थी लेकिन अब केजरीवाल अपने फैसले के मालिक-मुख्तार खुद होंगे। केजरीवाल की सबसे बड़ी शिकायत ये रहती आई है कि दिल्ली के अधिकारी और कर्मचारी उनके आदेशों को तामील नहीं करते हैं। लेकिन अब ट्रांसफर-पोस्टिंग की पावर हाथ में आने के बाद केजरीवाल अपने महत्वपूर्ण विभागों में मर्जी के अधिकारी-कर्मचारी बैठा सकेंगे। अब केजरीवाल एंटी करप्शन ब्यूरो में अपने पसंद के अधिकारी को मुखिया बना सकेंगे। ट्रांसफर-पोस्टिंग के जरिये ही वो आईएएस अफसर और कर्मचारियों पर भी नकेल कस सकेंगे। भले ही अपने अधिकार की लड़ाई लडऩे में किसी आम आदमी की तमाम उम्र बीत जाती हो लेकिन आम आदमी पार्टी को अपने अधिकार हासिल करने में साढ़े तीन साल का ही वक्त लगा। कह सकते हैं कि दिल्ली सरकार और आम आदमी पार्टी के अच्छे दिन आ गए हैं। केजरीवाल अब विरोधियों से कह सकते हैं कि उनके पास सत्ता है, पावर है, पैसा है और पॉलिटिक्स के नए-नए स्टंट हैं। केजरीवाल कह सकते हैं, पहले तुम बोलते थे और मैं सुनता था। अब मैं बोलूंगा और तुम सुनोगे। केजरीवाल अब अधिकारियों से ये भी कह सकते हैं कि फाइल भेजी है....साइन इटÓ। बहरहाल एक आम आदमी के रूप में अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली की सड़कों पर अपनी राजनीति की शुरुआत में बिजली कंपनियों की मनमानी के खिलाफ पॉवर की लड़ाई लड़ी तो अब आम आदमी पार्टी के लिये एलजी के खिलाफ पावर की लड़ाई जीती। लेकिन इन दोनों ही लड़ाइयों के केंद्र में केवल सत्ता ही थी। अब बड़ा सवाल ये है कि केजरीवाल तय समय में अपने वादों को पूरा करने की चुनौती से किस तरह पार पा सकेंगे? क्योंकि पहले तो ये कह कर दिल्ली की जनता को समझा लिया गया, हम काम करते रहे और ये परेशान करते रहेÓ। लेकिन अब जब दिल्ली सरकार को तमाम प्रशासनिक शक्तियां मिल चुकी हैं तो फिर कोई भी आरोप, बहाना या धरना काम नहीं आएगा क्योंकि एक हवा चल रही है कि दिल्ली सरकार की दिल्लीवासियों के लिये बड़ी जीत हुई है। ऐसे में अब केजरीवाल एंड टीम भविष्य में किसी मुद्दे पर केंद्र सरकार या फिर उपराज्यपाल को इतनी आसानी से कटघरे में खड़ा नहीं कर सकेगी। अब दिल्ली सरकार पर जनता की उम्मीदों की वजह से लटकती तलवार है। लेकिन बड़ा सवाल ये है कि जब बिना पावर के आम आदमी पार्टी पर इतने अराजक होने के आरोप लगते रहे हों तो फिर पावर आने के बाद शक्तियों के गैरवाजिब इस्तेमाल न होने की गारंटी कौन लेगा? एंटी-करप्शन ब्यूरो पर नियंत्रण की बात क्यों? यह समझना जरूरी है कि केजरीवाल की कोर टीम ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले के कुछ ही मिनट के बाद एसीबी पर नियंत्रण के बारे में बात करना क्यों शुरू कर दिया है? यह कोई छिपी हुई बात नहीं है कि केजरीवाल और उनकी टीम ने हमेशा से सरकार के पुलिसिया अधिकारों की हसरत पाली है। हालांकि, उनके लिए दुर्भाग्य की बात यह है कि संविधान ने दिल्ली सरकार को दिल्ली में इस तरह का अधिकार नहीं दिया। जनवरी 2014 में विधायक (उस वक्त मंत्री) सोमनाथ भारती द्वारा खिड़की-एक्सटेंशन में आधी रात में रेड और मुख्यमंत्री के पहले कार्यकाल में केजरीवाल का राजपथ पर धरना (यहां तक कि उन्होंने गणतंत्र दिवस परेड को बाधित करने की भी धमकी दी थी) दिल्ली में पुलिस आदि के नियंत्रण या उन पर प्रभाव जमाने की कोशिश से ही जुड़ा था। पंजाब विधानसभा चुनाव से पहले आप नेता, कार्यकर्ता और समर्थक निजी बातचीत में खुलेआम बता रहे थे कि पंजाब पुलिस पर नियंत्रण होने के बाद केजरीवाल क्या कर सकते हैं। अब हम 11 फरवरी 2014 का पन्ना पलटते हैं। इस दिन केजरीवाल ने कुछ ऐसा किया, जिसके बारे में सोचा नहीं जा सकता था। यहां तक कि सरकारी निजाम और सामान्य लोगों के लिए भी यह बात कल्पना से परे थी। उनकी राय में एंटी-करप्शन ब्रांच पर उनका नियंत्रण था और इसके जरिए उन्हें किसी के भी खिलाफ आपराधिक मुकदमा दर्ज करने और इसके आगे की कार्रवाई करने का अधिकार था। - इन्द्र कुमार
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