18-Jun-2018 09:55 AM
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प्रदेश के 23 जिलों में गहराते जलसंकट का असर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के स्वच्छ भारत अभियान पर भी पड़ा है। पेयजल के लिए तरस रहे लोगों के सामने शौचालय के लिए पानी की भी समस्या आ खड़ी हुई है। ऐसे में प्रदेश के करीब ओडीएफ (खुले में शौच से मुक्त) गांवों के लोग भी खुले में शौच जाने को मजबूर हैं। आलम यह है कि शौचालय में ताला डालकर पुरूष ही नहीं महिलाओं ने भी लोटा थाम लिया है।
उल्लेखनीय है कि प्रदेश में सरकार स्वच्छ भारत अभियान के तहत ग्रामीण क्षेत्रों के हर घर में शौचालय बनवाने पर जोर दे रही है। लोग भी अब खुले में शौच जाने की आदत छोड़ रहे हैं। लेकिन इस गर्मी में जलसंकट ने उन्हें एक बार फिर से खुले में शौच के लिए मजबूर कर
दिया है।
सरकारी दावों के अनुसार, प्रदेश के 54,903 गांवों में 19,410 गांव ओडीएफ घोषित हो चुके हैं। यानी इन गांवों में अब कोई खुले में शौच नहीं करता। लेकिन इस बार बूंद-बूंद पानी के लिए जूझ रहे गांवों के लोगों ने कहीं अप्रैल में तो कहीं मई में अपने शौचालय में तालाबंदी कर दी और खेत व जंगल की राह पकड़ ली। दरअसल, प्रदेश के कई जिलों में भीषण जलसंकट है। सागर, टीकमगढ़, दमोह, छतरपुर, पन्ना, रीवा, सतना, सिंगरौली, शहडोल, गुना, श्योपुर, शिवपुरी, भिंड, मुरैना, ग्वालियर, मंडला, डिंडोरी, बालाघाट और झाबुआ आदि जिलों के ग्रामीण क्षेत्र में तो लोगों को पानी के लिए दूर-दूर तक भटकना पड़ता है। खुले में शौच करने आने को मजबूर लोग भी मान रहे हैं कि ऐसा करना गलत है। लेकिन वह कहते हैं कि पीने का पानी तो मिल नहीं रहा, शौचालय में डालने के लिए पानी कहां से लाएं। प्रदेश में औसतन एक परिवार को शौचालय में डालने के लिए कम से कम 100 लीटर पानी की जरूरत पड़ती है।
प्रदेश के 13 जिलों समेत 62 जनपद पंचायतों की 19,410 ग्राम पंचायतें ओडीएफ घोषित कर दी गई हैं। इनमें ऐसे जिलों की करीब 1496 ग्राम पंचायतें भी शामिल है, जिन्हें राज्य शासन ने सूखाग्रस्त घोषित किया है। 18 जिलों को दिसंबर 2017 में सूखाग्रस्त घोषित किया गया है। इन जिलों के 133 विकासखंडों में जब पीने के पानी की समस्या है तो ये शौचालय के लिए पानी कहां से लाएं। इस बारे में स्वच्छ भारत मिशन और राजस्व विभाग के अफसर दबी जुबान में स्वीकार रहे हैं कि सूखे के कारण मिशन की मंशा प्रभावित हुई है।
कांग्रेस विधायक जीतू पटवारी कहते हैं कि केवल कागजों पर शौचालय बने हैं। लोग पहले भी खुले में शौच करते थे, आज भी कर रहे हैं। हैरानी की बात यह है कि गांवों को ओडीएफ तो कर दिया गया है, लेकिन शौचालय के लिए पानी की व्यवस्था नहीं की गई है। उधर ग्रामीणों का कहना है कि गांव में पेयजल समस्या इतनी गंभीर बनी हुई है कि रोजमर्रा के कार्यों के लिए पानी का इंतजाम करना टेढ़ी खीर साबित हो रही है। आखिर ऐसे में शौचालय के लिए पानी कहां से लाएं। शासन-प्रशासन ने ऐसे गांव में पानी की समस्या को लेकर ना तो कोई योजना तैयार की है और ना ही शौचालय के लिए पानी का प्रबंध। ऐसे में ग्रामीण खुलें में शौच जाने को मजबूर है।
जरूरत 40 लीटर की जुटा रहे 10-15 लीटर
एक व्यक्ति को एक दिन में कम से कम 40 लीटर पानी की जरूरत पड़ती है। लेकिन प्रदेश के दर्जनभर से अधिक जिले ऐसे हैं जहां के लोग मुश्किल से एक व्यक्ति के लिए 10 से 15 लीटर पानी ही जुटा पा रहे हैं। ऐसे में वे शौचालय का उपयोग कैसे कर सकते हैं। प्रदेश की महिला आईएएस दीपाली रस्तोगी ने एक साल पहले ही ओडीएफ को हकीकत बयां की थी। उन्होंने लिखा था कि ग्रामीणों को लंबा फासला तय करके पानी लाना होता है। इतनी मेहनत से अगर कोई दो घड़े पानी लाता है तो क्या वह एक घड़ा शौचालय में डाल सकता है? बिलकुल नहीं। आज उनका कहा सच साबित हो रहा है। प्रधानमंत्री का दावा है कि अक्टूबर 2019 तक हमारा देश पूरी तरह स्वच्छ हो जाएगा। लेकिन कैसे? यह सवाल छतरपुर के हमां गांव के लोग पूछ रहे हैं। दरअसल, इस गांव के लोगों ने अपने घरों में पिछले साल शौचालय तो बनवा लिए, लेकिन अभी भी उसका इस्तेमाल नहीं करते हैं। क्योंकि इस गांव में पीने का पानी भी बड़ी मुश्किल से मिलता है। ऐसे हजारों गांव प्रदेश में हैं जहां शौचालय तो बन गए हैं और उनमें लोग अपना सामान रखते हैं।
- सुनील सिंह