04-Jun-2018 07:29 AM
1234887
शिवसेना द्वारा कुछ महीनों पहले यह घोषणा करने, कि अब वह भाजपा के साथ मिलकर चुनाव नहीं लड़ेगी, की यह कार्रवाई प्रत्यक्ष तौर पर फडनवीस पर दबाव बनाने के लिए है, जिन्होंने हाल ही में कहा था कि राज्य में मुख्यमंत्री अधिक समय तक नहीं रहते। संयोग की बात यह है कि अभी तक मुख्यमंत्री, जो अक्टूबर में अपने कार्यकाल के 4 वर्ष पूरे कर लेंगे, न केवल अपनी कुर्सी बचाने में सफल रहे हैं बल्कि भीतर तथा बाहर से मिली चुनौतियों से भी पार पाने में सफलता प्राप्त की है। यहां तक कि उनके विरोधी भी यह मानते हैं कि वह एक नेता के तौर पर उभरे हैं।
राजनीतिक पर्यवेक्षकों का कहना है कि भाजपा तथा शिवसेना के बीच खींचतान का फायदा बहुजन विकास अघाडी के बलिराम जाधव को होगा, जो 2014 में भाजपा के चिंतामन वनगा के बाद रनरअप थे, जिनके निधन के बाद उपचुनाव की जरूरत पड़ी। जाधव ने वनगा को 2009 में हराया था। एक निष्ठावान कार्यकत्र्ता तथा जनजातीय नेता वनगा को अपने लोगों में विशेष स्थान प्राप्त था और उनकी शवयात्रा में हजारों लोग शामिल हुए थे। बहुजन विकास अघाडी एक स्थानीय तथा प्रभावशाली संगठन है, जिसके नेता हितेन्द्र ठाकुर मुख्यमंत्री के करीबी के तौर पर जाने जाते हैं।
मगर शिवसेना ने दिवंगत नेता के बेटे श्रीनिवास वनगा को खड़ा नहीं करने को भाजपा की असफलता मानते हुए एक अवसर के रूप में देखा और वनगा परिवार द्वारा मुलाकात करने और खुद को भाजपा नेतृत्व द्वारा ‘नजरअंदाज’ करने की शिकायत के बाद पार्टी प्रमुख उद्धव ठाकरे ने उन्हें अपनी पार्टी का उम्मीदवार घोषित कर दिया। घटनाक्रम से अचम्भित भाजपा ने कांग्रेस से एक उम्मीदवार ‘आयात’ किया और पूर्व मंत्री राजेन्द्र गावित को पार्टी में शामिल करने के कुछ ही मिनटों बाद उम्मीदवार घोषित कर दिया। भाजपा ने इसे बेईमानी बताया और आरोप लगाया कि शिवसेना ने उसके उम्मीदवार को ‘हाईजैक’ कर लिया है। पहले यह रिपोर्ट थी कि भाजपा की योजना जनजातीय कल्याण मंत्री विष्णु सावरा को मैदान में उतारने की है।
यद्यपि कांग्रेस ने अपने पूर्व सांसद दामू शिंगडा को उम्मीदवार बनाया है, पार्टी के साथ-साथ राकांपा भाजपा को तंग करने के लिए और शिवसेना के साथ उसके मतभेदों को और बढ़ाने के लिए कार्य कर सकती है। भाजपा, जो कल तक राज्य में इसका ‘छोटा भाई’ थी, के बढ़ते प्रभाव को लेकर शिवसेना नेताओं की चिंताओं के चलते राज्य में राजनीतिक समीकरणों में बदलाव स्पष्ट हैं। बाद में शिवसेना द्वारा भाजपा तथा प्रधानमंत्री की आलोचना बढ़ गई। यह तथ्य, कि राजग सहयोगी भाजपा में विश्वास खो चुके हैं, इस बात से स्पष्ट हो जाता है कि तेलुगु देशम पार्टी प्रमुख एन. चन्द्रबाबू नायडू ने भाजपा तथा सत्ताधारी राजग से अपना रास्ता अलग कर लिया है।
लोकसभा चुनावों की तरह महाराष्ट्र में इस बार कोई मोदी लहर नहीं है मगर अभी तक किस्मत के साथ-साथ कुछ अच्छे कार्यों ने भाजपा तथा मुख्यमंत्री की मदद की है। अब जबकि लोकसभा चुनावों में लगभग 1 वर्ष बचा है, कांग्रेस तथा राकांपा के हाथ मिलाने से राज्य में भाजपा विरोधी गठबंधन की शुरूआत हो गई है और शरद पवार छोटी पाॢटयों को लुभाने में व्यस्त हैं।
मोदी-शाह के लिए महाराष्ट्र नंबर एक गुत्थी
आगे के महिनों में मोदी-शाह के लिए महाराष्ट्र नंबर एक गुत्थी होगा। आखिर उत्तरप्रदेश के बाद नंबर दो महत्व वाला राज्य महाराष्ट्र है। लोकसभा की 48 सीटे है। 2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा -शिवसेना ने एलायंस से चुनाव लड़ा था और 48 में से 43 सीटे एलायंस ने जीती थी। भाजपा के 23 और शिवसेना के 18 सांसद जीते थे। कांग्रेस व एनसीपी 4 और 2 सीट पर सिमटे। मगर उसके बाद भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने विधानसभा चुनाव में शिवसेना और उद्धव ठाकरे को ऐसा धता बताया कि शिवसेना को अकेले चुनाव लडऩा पड़ा। उसके बाद चुनाव जीतने और शिव सेना को लेकर सरकार बनाने की मजबूरी के बावजूद नरेंद्र मोदी-अमित शाह ने शिवसेना को न कायदे के मंत्रालय दिए और न महत्व! सो शिवसेना और उद्धव ठाकरे के घाव गहरे है। तभी भाजपा को आंखे दिखाते हुए शिवसेना चार साल से राजनीति कर रही है और उसका ऐलान है कि वह 2019 का लोकसभा चुनाव भाजपा के साथ मिल कर नहीं लड़ेगी। बहुत संभव है यह आगे ज्यादा सीटे लेने या अपना भाव बढ़ाने का पैंतरा हो। मगर इतना तय है कि उद्धव ठाकरे और शिवसेना का उनका कॉडर भाजपा का रायता फैलाना चाहता है।
-बिन्दु माथुर