केवल पुरुष दोषी नहीं
17-Apr-2018 07:40 AM 1234969
बॉम्बे हाईकोर्ट की गोवा ब्रांच ने हाल ही में रेप के एक पांच साल पुराने मुकदमे के सिलसले में बिल्कुल ही अलग तरह का फैसला सुनाया है। अपने फैसले में कोर्ट ने कहा है कि अगर दो लोगों के बीच शादी से पहले, प्रेम संबंध के दौरान आपसी रजामंदी से शारीरिक संबंध बनते हैं तो उसे किसी भी कारणवश रिश्ता टूटने पर रेप या बलात्कार की श्रेणी में नहीं रखा जा सकता है। कोर्ट ने ये भी कहा कि गलत सबूतों का हवाला देकर किसी भी पुरुष को सजा नहीं दी जा सकती है, जब इस बात के पक्के सबूत मौजूद हों कि स्त्री और पुरुष के बीच गहरे आत्मीय संबंध थे, दोनों एक दूसरे से प्यार और एक दूसरे की परवाह किया करते थे। हाईकोर्ट ने फैसला सुनाते हुए न सिर्फ अभियुक्त को दोषमुक्त किया बल्कि एक ट्रायल कोर्ट द्वारा उसे दी गई सात साल कैद और 10 हजार रुपए जुर्माने की सजा को भी माफ कर दिया। मामला तकरीबन सात साल पुराना है जब आरोपी योगेश पालेकल गोवा के एक कसीनों में शेफ की नौकरी करने के दौरान महिला के संपर्क में आए और दोनों के बीच पहले दोस्ती फिर प्रेम संबंध बने। लडक़ी के मुताबिक, योगेश ने उससे शादी का वायदा किया था और उसे अपने घरवालों से मिलवाने के लिए अपने घर भी लेकर गया था, जहां दोनों के बीच शारीरिक संबंध बने जो अगले कुछ महीनों तक जारी रहा। लेकिन युवक के घरवालों के मना करने के बाद उसने लडक़ी से शादी करने से मना कर दिया। ऐसा लडक़ी के अलग (नीची) जाति की होने के कारण हुआ। जिसके बाद लडक़ी ने लडक़े पर बलात्कार का केस कर दिया। उसके मुताबिक वो लडक़े के साथ शारीरिक संबंध बनाने के लिए राजी तभी हुई जब लडक़े ने उससे शादी करने का भरोसा दिया था। लेकिन मामले की जांच के दौरान ये पाया गया कि लडक़ी ने रिश्ते के दौरान न सिर्फ लडक़े के मानसिक और भावनात्मक तौर पर जुड़ी थी बल्कि वो उसे लगातार आर्थिक तौर पर भी मदद कर रही थी। केस की सुनवाई कर रहे जज सी वी भदांग ने फैसला सुनाते वक्त दो-तीन बातों को खासतौर पर चिन्हित किया। पहला ये कि लडक़ी का ये कहना कि वो सिर्फ शादी के वायदे के कारण शारीरिक संबंध बनाने के लिए तैयार हुई गलत है- क्योंकि उन दोनों के बीच भावनात्मक प्रेम संबंध थे, ये बार-बार केस की जांच के दौरान साबित हुए हैं। दूसरी बात जो सामने आई वो ये कि दोनों के बीच ये सेक्सुअल रिलेशन एक नहीं बल्कि कई बार और लडक़े के घर पर हुए, जहां लडक़ी अपनी मर्जी से जाती थी, जो बलात्कार की श्रेणी में नहीं आता। वो लगातार लडक़े की जरुरतों का ध्यान रखती थी और उसे पैसों की भी मदद करती थी। तीसरी और सबसे अहम बात जो कोर्ट ने संज्ञान में ली वो ये कि केस के बाद जब आरोपी युवक मानसिक तौर पर परेशान रहने लगा और उसे अपने डिप्रेशन के इलाज के लिए मनोचिकित्सकों की मदद लेनी पड़ी तब लडक़ी ने एक एफिडेविट फाइल कर अपनी शिकायत भी वापिस ले ली, उसने ऐसा करने के पीछे का कारण निजी और भावनात्मक बताया। कोर्ट ने दोनों के संबंधों के उतार-चढ़ाव और परेशानियों का बारीकी से अध्ययन करने के बाद अपने फैसले में कहा कि ये साबित होता है कि दोनों के बीच गहरे और आत्मीय संबंध थे। लडक़ा आर्थिक तौर पर कमजोर था इसलिए लडक़ी ने उसकी मदद की और वो किसी भी हालत में उसका शोषण करने की स्थिति में नहीं था। हालांकि, उसने पारिवारिक कारणों के कारण लडक़ी से शादी नहीं की, जिससे लडक़ी आहत हुई। अगर मानवीय तौर पर, स्त्रीवादी तरीके से देखा जाए तो बॉम्बे हाईकोर्ट का ये फैसला औरतों और लड़कियों के लिए भविष्य में कई मुसीबतें खड़ी कर सकता है। आखिरकार, किसी भी व्यक्ति को ये अधिकार नहीं है कि शादी का लालच देकर किसी लडक़ी के साथ पहले संबंध बनाए फिर परिवार और समाज का रोना रोकर उससे किनारा कर ले, लेकिन इसके साथ ये भी गलत होगा कि लड़कियां अपनी मर्जी से अपने जीवन से जुड़े फैसले लें और जब वो फैसला गलत हो जाए तब वे विक्टिम कार्ड खेलना शुरू कर दें। हम ये भूल रहे हैं कि हमारे समाज में लगातार बदलाव हो रहे हैं, रिश्तों की रंगत-बुनावट के साथ-साथ उससे जुड़े तंतु भी बदल रहे हैं और इसकी मांग जितना पुरुष कर रहे हैं लगभग उतनी ही लड़कियां भी। शादी से पहले संबंध बनाना या रखना, लिव-इन रिलेशनशिप में रहना, ब्रेक-अप होना, संबंध विच्छेद करना, किसी दूसरे समाज का सच भर नहीं है। थोड़े और आंशिक पैमाने पर ही सही अब ये सब हमारी जिंदगी का भी अहम् हिस्सा हैं। हालांकि, छोटे और कस्बाई समाज में इसको लेकर अभी भी काफी दबाव महसूस किया जा सकता है लेकिन पढ़े-लिखे और शहरी वातावरण धीरे-धीरे ही सही इन बातों को लेकर स्वीकार्यता बढ़ रही है। प्रगतिशील फैसला नया समाज रोज नए बदलाव की ओर बढ़ रहा है, वो अपने रिश्ते-नातों में भी एक्सपेरिमेंट्स कर रहा है। वो चाहता है कि चहारदीवारी के उस ओर बैठे लोग नए तौर-तरीकों पर टीका-टिप्पणी कम करें और उसका साथ दें। ऐसे में क्या बॉम्बे हाईकोर्ट का ये फैसला इसी दिशा में उठाया गया एक प्रगतिशील कदम नहीं कहलाएगा? कोर्ट ने अपने फैसले में भले ही युवक योगेश का साथ दिया है लेकिन वो कहीं भी युवती को लेकर जजमेंटल नहीं हुई है। -ज्योत्सना अनूप यादव
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