02-Apr-2018 07:05 AM
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सरकार के फैसले से राजधानी के 14 गांवों के लोगों को राहत मिलेगी। इनमें बैरागढ़ के लाऊखेड़ी, बोरवन और बहेटा, हलालपुर, बरेठा तथा निशातपुरा, शाहपुरा, कोटरा सुल्तानाबाद और सेवनिया गौड़ शामिल हैं। लेकिन यहां निवासरत लोगों को अभी भी विश्वास नहीं है कि उनको उनकी जमीन का मालिकाना हक मिल पाएगा। वह इसलिए कि हर बार कोई न कोई पेंच अड़ा दिया जाता है। वैसे मर्जर का यह झंझट आज नहीं रहता अगर 1965-66 में इन जमीनों को सरकारी घोषित कर दिया जाता।
उल्लेखनीय है कि 30 अप्रैल 1949 को भोपाल नवाब और भारत सरकार के बीच मर्जर एग्रीमेंट हुआ, जिसे 1 जून 1949 से लागू माना गया। इसमें नवाब की ओर से उन संपत्तियों की सूची दी गई, जिसे उन्होंने स्वयं के लिए रखा। इसके अलावा वे सभी संपत्तियां, जो नवाब की निजी संपत्तियों की सूची में नहीं थी, वे मर्जर एग्रीमेंट के तहत भारत सरकार की संपत्तियां हो गईं। भोपाल रियासत के 30 अप्रैल 1949 के मर्जर एग्रीमेंट के परिप्रेक्ष्य को आधार मानते हुए तत्कालीन कलेक्टर आरके माथुर ने 2004 में स्वप्रेरणा निगरानी प्रकरण दर्ज करके नामांतरण, एनओसी और बिल्डिंग परमीशन, सीमांकन और डायवर्सन और खरीद फरोख्त पर रोक लगा दी थी। जून 2012 में तत्कालीन कलेक्टर निकुंज श्रीवास्तव ने इन प्रकरणों को खत्म कर दिया था और यह जमीन शासकीय और अशासकीय होने के विवाद के चलते निराकरण के लिए राज्य सरकार को भेज दिया था। तब से यह मामला विवादों में फंसा हुआ है।
कैबिनेट के निर्णय के अनुसार भारत-पाकिस्तान के बीच हुए विभाजन के बाद मध्यप्रदेश में बसे सिंधी विस्थापितों को जमीनों के मालिकाना हक संबंधी जो विवाद लंबित हैं, उनका भी निपटारा किया जाएगा। ऐसे विस्थापितों के मामले भोपाल, कटनी बालाघाट, मंडला, जबलपुर और बुरहानपुर जिलों में लंबित हैं। विस्थापितों के पास अगर पट्टा है तो उसे रिन्यू किया जाएगा और संबंधित को मालिकाना हक दिया जाएगा। यदि अतिरिक्त जमीन कब्जे में है तो उसका मालिकाना हक भी दिया जाएगा। विस्थापितों के अधिकांश मामले राज्य सरकार और केंद्र के पुनर्वास विभाग के अधीन आ रही जमीनों के हैं। भोपाल में ऐसी जमीनें हलालपुर और बैरागढ़ के पुराने बैरक सी और टी वार्ड में है। इस तरह के अलग-अलग 109 प्रकरणों को सुलझाया जाएगा। पुनर्वास अधिनियम 2010 समाप्त होने के कारण मालिकाना हक के विवाद उलझ गए गए थे।
यह उलझन इतनी आसानी से सुलझ जाएगी ऐसा नहीं लगता। दरअसल कई भूखण्ड ऐसे हैं जिसके मालिक कई बार बदल चुके हैं। ऐसे में विवाद की स्थिति निर्मित होनी है। हालांकि सरकार के निर्णय के अनुसार जिन विस्थापितों के पास रजिस्ट्री नहीं बल्कि अपंजीकृत दस्तावेज हैं, उनके भी मालिकाना हक मान्य किए जाएंगे। वहां नियमानुसार धनराशि और जुर्माना वसूला जाएगा। बकाया राशि ली जाएगी, लेकिन उस पर ब्याज माफ रहेगा। आवंटित जमीन के अलावा जिस जमीन पर अतिरिक्त कब्जा है उसके संबंध में नियमितीकरण की कार्रवाई कर मालिकाना हक देंगे। उदाहरण के लिए 2000 की कलेक्टर गाइड लाइन के हिसाब से यदि किसी के पास 500 वर्ग फीट आवासीय जमीन है तो जमीन की कीमत की पांच प्रतिशत राशि ली जाएगी। कमर्शियल जमीन की 20 प्रतिशत राशि वसूली जाएगी। इन जमीनों पर प्रतिवर्ष 7.5 प्रतिशत लीज रेंट लिया जाएगा। मध्यप्रदेश भू राजस्व संहिता में धारा 162 जोड़ी गई है। इसके तहत शहरी क्षेत्र में जो लोग सरकारी जमीन पर 2000 से काबिज हैं उन्हें प्रीमियर लेकर 30 साल का पट्टा दिया जाएगा। ऐसे मामलों में पट्टाधारी को 18 साल पुरानी स्थिति में कब्जा साबित करना होगा। यह पेंच सैकड़ों लोगों को परेशानी में डालेगा। उधर संतनगर में निवासरत सिंधी सामाज के लोगों का कहना है कि अब उम्मीद जगी है कि हमें मालिकाना हक मिल जाएगा। लेकिन राजस्व विभाग के सूत्रों का कहना है कि अभी इसमें बहुत सारे पेंच है। सरकार को इसके लिए कई परिवर्तन करने होंगे।
अब तक इसलिए अटका था
1 अगस्त 2011 को तत्कालीन कलेक्टर निकुंज श्रीवास्तव ने मर्जर प्रभावित 8 गांवों में राजस्व रिकॉर्ड में दर्ज 1120 से अधिक संपत्तिधारकों को नोटिस जारी किए। नवंबर 2011 में भू-राजस्व संहिता में संशोधन कर धारा-50 के तहत स्वप्रेरणा निगरानी के अधिकार संभागायुक्त को और धारा 57-2 के तहत संपत्ति के सरकारी-गैर सरकारी का फैसला करने का अधिकार शासन को दे दिया गया। अक्टूबर 2013 में तत्कालीन पीएस अजीत केसरी ने इसे धारा-57-2 के बजाए सरकारी रिकॉर्ड में प्रविष्टि का केस माना और वापस भोपाल कलेक्टर को भेज दिया। तब से ही यह विवाद असमंजस के कारण लंबित था। एडवोकेट जगदीश छाबानी के मुताबिक मर्जर केस खत्म होते ही 2000 से पूर्व की स्थिति बहाल हो जाएगी। यानी यहां की जमीन सरकारी नहीं बल्कि निजी मानी जाएगी। जिनके पास 8 गांवों में संपत्ति के मालिकाना हक के वैध दस्तावेज हैं, वे उसके पूर्ण मालिक होंगे। जिनके पास दस्तावेज नहीं हैं, लेकिन वे वर्ष 2000 के पूर्व से संपत्ति पर काबिज हैं, उन्हें सरकार भू-राजस्व संहिता की धारा 162 को तहत पट्टा देकर नियमित कर सकेगी।
- राजेश बोरकर