15-Jun-2013 07:44 AM
1234936
मौसम में अचानक बदलाव आने पर आप अकसर अपने आसपास लोगों को छींकते और खांसते देख सकते हैं। दरअसल मौसम में बदलाव के साथ-साथ लोगों का खांसी के प्रभाव में आना बहुत ही आम

बात है। छाती में जब वायु प्रवेश करती है तो कभी-कभी श्वास नली का दरवाजा बंद हो जाता है। बैचेनी होने पर अवरोध खुल जाता है और आवाज के साथ हवा बाहर आ जाती है। इसी स्थिति को खांसी कहते हैं। मौसमी खांसी होना तो आम बात है परन्तु श्वासनली, स्वरतंत्र या फेफड़ों में गड़बड़ी होने से महीनों खांसते रहना चिन्ताजनक है।
प्राय: खांसी होने से पहले गले में खिच-खिच का अहसास होता है। खाते-पीते समय गले में कांटे सी चुभन होने लगती है। साथ ही पीडि़त व्यक्ति की आवाज भारी हो जाती है और उसके गले में खराश शुरू हो जाती है। ऐसी अवस्था में हल्का बुखार तथा घबराहट भी हो सकती है। अकसर पीडि़त व्यक्ति इतना सुस्त तथा कमजोर महसूस करता है कि उसका किसी काम में मन नहीं लगता। ज्यादा खांसी आने से छाती में दर्द भी हो सकता है। लगातार खांसने से पीडि़त व्यक्ति को उल्टी भी हो सकती है। इसके अतिरिक्त रोगी को बलगम आने और सांस फूलने की शिकायत भी हो सकती है। खांसी आने के कारण अलग-अलग हो सकते हैं। कई बार किसी पुराने रोग के कारण भी व्यक्ति खांसी से पीडि़त हो सकता है। लगातार खांसी आना जिसे आम बोलचाल की भाषा में कुकर खांसी कहते हैं जो होमोफाइल्स परटूटिस नामक जीवाणु के कारण होती है।
ये जीवाणु रोगी की बलगम, लार तथा थूक में चिपके रहते हैं। ऐसी स्थिति में यदि उचित सावधानी नहीं बरती जाए तो स्वस्थ व्यक्ति भी बीमार हो सकता है। वास्तव में यह रोग संक्रमणीय होता है और यदि रोगी की बलगम, थूक और लार का उचित निपटान न किया जाए तो इसके जीवाणु ड्राप्लैट इंफैक्शन द्वारा स्वस्थ व्यक्ति के शरीर में प्रवेश कर जाते हैं तथा स्वस्थ व्यक्ति भी रोग के प्रभाव में आ जाता है। कई बार पुराने जुकाम, छोटी चेचक, दमा, निमोनिया तपेदिक, गठिया तथा छोटी आंत के कीड़ों के कारण भी लगातार खांसी आ सकती है। खांसी से पीडि़त व्यक्ति के रक्त में श्वेत रक्त कणों तथा पेशाब में यूरिक अम्ल की मात्रा भी बढ़ सकती है। आयुर्वेद के अनुसार, खांसी अपने आप में कोई बीमारी नहीं अपितु यह फेफड़ों में गंदगी होने के कारण होती है। जब फेफड़ों में बलगम भर जाती है और अपने आप नहीं निकल पाती तब खांसी होती है जिससे बलगम बाहर आ जाता है। दूषित वातावरण में धुंआ, पानी या अन्य रासायनिक पदार्थ भी श्वास नली में प्रविष्ट करके भी खांसी पैदा कर सकते हैं। आयुर्वेद में अनेक ऐसे सरल उपयोगी योग हैं जिनके प्रयोग से खांसी से निश्चित रूप से राहत मिलती है। सितोफलादि चूर्ण को शहद में मिलाकर चाटने से खांसी में बहुत आराम मिलता है। बच्चों के लिए चूर्ण की तीन ग्राम मात्रा बड़ों को छह ग्राम मात्रा दी जानी चाहिए। शहद की मात्रा एक चम्मच होनी चाहिए। इस योग का प्रयोग दिन में तीन बार करना चाहिए। आधा चम्मच अदरक के रस में आधा चम्मच शहद और चुटकी भर काला नमक मिलाकर खाने से भी आराम मिलता है। इस मिश्रण का प्रयोग दिन में तीन बार सुबह, दोपहर और रात को खाना खाने के लगभग आधे घंटे बाद करना चाहिए। इसका प्रयोग लगभग दस दिनों तक लगातार करना चाहिए। खांसी से पीडि़त व्यक्ति को लंबगादि वटी की दो-दो गोली दिन में तीन बार चूसने के लिए देने से भी खांसी में आराम मिलता है। जमे हुए बलगम को निकालने के लिए पिसी हुई मुलहठी को दो कप पानी में उबाल कर उसमें चुटकी भर नमक मिलाकर सुबह-शाम पिएं। गला ज्यादा खराब हो तो मुलहठी को चूसा भी जा सकता है। यदि गर्भवती महिलाओं को खांसी की शिकायत हो तो आधा कप दूध में लगभग तीन ग्राम बड़ी इलायची का चूर्ण मिलाकर उसे आधा कप पानी में तब तक उबालें जब तक कि पानी आधा न हो जाए। इसमें एक चम्मच शहद मिलाकर महिला को इसे सुबह-शाम देने से लाभ होगा। गर्म पानी में नमक डालकर गरारे करने से भी संक्रमण में आराम मिलता है। खांसी होने पर कुछ सावधानियां रखना बहुत जरूरी है जैसे कि खांसते समय मुंह पर रुमाल रखना चाहिए। बलगम को इधर-उधर न थूकें। बच्चों तथा बुजुर्गों को नमी से बचाना चाहिए। पीडि़त व्यक्ति को पौष्टिक तथा जल्दी पचने वाला भोजन देना चाहिए। चावल, खट्टा दही, राजमा, उड़द की दाल तथा बासी भोजन खांसी से पीडि़त व्यक्ति को नहीं देना चाहिए।