03-Mar-2018 07:58 AM
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बिहार में तीन सीटों पर उपचुनाव हो रहे हैं। इसमें विधानसभा के लिए जहांनाबाद और भभुआ सीट और लोकसभा के लिए अररिया सीट पर उपचुनाव होने हैं। यहां एक बार फिर राजनीतिक सरगर्मियां तेज हो चुकी है। जेडीयू, आरजेडी और बीजेपी ताल ठोक चुकी है। इन उप चुनावों के नतीजे बिहार की राजनीति की दशा-दिशा लगभग तय कर देंगी। वहां 11 मार्च को उपचुनाव होगा। ये उपचुनाव बिहार में राजनीतिक समीकरण बदलने के बाद हो रहे हैं। पिछले साल जेडीयू ने लालू प्रसाद के नेतृत्व वाले आरजेडी का साथ छोड़कर एनडीए का दामन थाम लिया था। इस बीच लालू प्रसाद दूसरी बार चारा घोटाले में सजा पाकर जेल चले गए हैं। यानी, लालू प्रसाद चुनाव प्रचार के लिए उपलब्ध नहीं हैं। उनकी जगह उनके पुत्र तेजस्वी यादव ने कमान संभाल ली है।
2013 में जब लालू प्रसाद को चारा घोटाले के ही एक अन्य केस में सजा हुई थी तो आरजेडी ने तब भी कहा था कि सहानुभूति के कारण बिहार में वह लोकसभा की सभी 40 सीटें जीतेगा। पर उसे 2014 के लोकसभा चुनाव में सिर्फ 4 सीटें मिलीं। देखना है कि इस बार आरजेडी के लिए यह चुनाव कैसा रहता है। दलीय समीकरण में आए बदलाव का सरजमीन पर कैसा असर पड़ा है? उप चुनाव नतीजे इस सवाल का भी जवाब दे देंगे। वैसे आरजेडी ने जब 2010 में लोक जनशक्ति पार्टी के साथ मिलकर चुनाव लड़ा तो उसे बिहार विधानसभा की कुल 243 सीटों में से सिर्फ 23 सीटें मिली थीं। एलजेपी को 2 सीटें मिलीं। इन ताजा उपचुनावों में आरजेडी के साथ कांग्रेस है। भभुआ सीट पर कांग्रेस लड़ेगी। भभुआ कांग्रेस के आधार वोट वाली सीट मानी जाती है।
2014 के लोकसभा के चुनाव में अररिया में राजद के मोहम्मद तसलीमुद्दीन को कड़े मुकाबले में करीब 4 लाख 7 हजार मत मिले थे। बीजेपी के प्रदीप कुमार सिंह को करीब 2 लाख 61 हजार और जेडीयू के विजय कुमार मंडल को करीब 2 लाख 21 हजार वोट मिले थे। इस बार अररिया में आरजेडी और बीजेपी में सीधा मुकाबला होगा। जेडीयू बीजेपी का समर्थन कर रहा है। पिछले लोकसभा चुनाव में अररिया में प्रमुख उम्मीदवारों को मिले मतों को ध्यान में रखें तो आरजेडी के लिए यह सीट जीतना इस बार कठिन होगा। पर इसके साथ कुछ अन्य तत्व भी चुनाव में काम कर सकते हैं। लालू प्रसाद के परिवार की कानूनी परेशानियों से मतदाता कितने द्रवित होते हैं, यह देखना दिलचस्प होगा या फिर उसका कोई असर नहीं पड़ता है! यदि असर नहीं पड़ेगा तो आरजेडी का राजनीतिक भविष्य अनिश्चित हो सकता है। साथ ही केंद्र सरकार की उपलब्धियां भी कसौटी पर होंगी।
तसलीमुद्दीन के पुत्र सरफराज आलम हाल तक जेडीयू के विधायक थे। उन्होंने अररिया लोकसभा उप चुनाव लडऩे के लिए विधानसभा की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया है। अब वे अररिया में आरजेडी उम्मीदवार हैं। दक्षिण बिहार के जहांनाबाद से आरजेडी विधायक मुंद्रिका सिंह यादव के निधन के कारण वह विधानसभा सीट खाली हुई। वहां आरजेडी और एनडीए के बीच सीधा मुकाबला होने की संभावना है। मुंद्रिका यादव के पुत्र वहां आरजेडी उम्मीदवार हैं। पिछले विधानसभा चुनाव में आरजेडी और जदयू मिल कर चुनाव लड़ रहे थे। भभुआ में पिछले चुनाव में बीजेपी के आनंद भूषण पांडेय ने जेडीयू के प्रमोद सिंह को हराया था। देखना है कि इस बार बदले समीकरण में कैसा नतीजा आता है। राजद के लिए यह चुनौतीभरा समय है क्योंकि बिना लालू यादव के पार्टी मैदान में है। इससे अब यह भी साफ हो जाएगा कि राजद का लालू के बिना क्या हश्र होता है।
कांग्रेस की परीक्षा भभुआ में
कांग्रेस को एक ही सीट भभुआ पर उम्मीदवार उतारना था। कांग्रेस को दो पूर्व विधायकों विजय शंकर पाण्डेय और श्याम नारायण पाण्डेय के बेटों क्रमश: अशोक पाण्डेय और विनोद पाण्डेय की दावेदारी ने नेतृत्व को असमंजस में डाल रखा था कि मीरा कुमार का अपने उम्मीदवार सुनील कुशवाहा और सदानंद सिंह का अपने विश्वस्त शंभू पटेल को लेकर टकराव कांग्रेस की मुश्किलें और बढ़ा दी। शंभू पटेल का आनन-फानन में दिल्ली पहुंचना और फिर मीरा कुमार के मान-मनौव्वल से कांग्रेस की राह आसान हुई। आखिर में आरजेडी के दबाव और सुनील कुशवाहा के बाहरी होने वाले फैक्टर ने पुराने कांग्रेसी शंभू पटेल की दावेदारी को आसान बना दिया।
- विनोद बक्सरी