ममता को गुस्सा क्यों आता है
04-Feb-2013 10:33 AM 1234767

हाल ही में एक अवसर ऐसा आया जब ममता बनर्जी ने प्रधानमंत्री के खिलाफ एक तल्ख टिप्पणी कर दी। ममता की इस टिप्पणी से कांग्रेस बौखला गई, लेकिन बाद में जब ममता ने स्पष्ट किया कि उन्होंने कुछ गलत नहीं कहा था तो फिर मामला शांत हुआ। ममता बनर्जी बोलने के लिए विख्यात हैं। वे कब क्या बोल जाएं उन्हें ही अंदाजा नहीं रहता। इसीलिए कोलकाता में एक सरकारी कार्यक्रम में जब ममता बनर्जी ने कथित रूप से मनमोहन सिंह की पिटाई करने का विवादास्पद बयान दे डाला तो किसी को आश्चर्य नहीं हुआ। दरअसल ममता पश्चिम बंगाल को आर्थिक पैकेज न दिए जाने से तमतमाई हुई थीं और इसी तमतमाहट में उन्होंने कह डाला कि खाद के दाम काफी बढ़ गए हैं राज्य को आर्थिक पैकेज चाहिए। प्रधानमंत्री को 10 बार बता दिया गया है, लेकिन कोई सुन नहीं रहा है। मैं 2011-12 में आर्थिक पैकेज के लिए पीएम से मिली लेकिन नतीजा नहीं निकला। अब मैं क्या करूं, क्या मैं पीएम को मारू तब आप कहेंगे कि मैं गुंडा बन गई हूं। ममता यहीं नहीं रुकी वह यह भी कह गईं कि यदि उनकी बात नहीं सुनी गई तो वह कुछ दिन के बाद दिल्ली पहुंचकर धरना देंगी। हालांकि बाद में ममता ने इस कथन से ही इनकार कर दिया। लेकिन यह तो तय है कि उन्हें कई बार नाजायज गुस्सा भी आ जाता है। पश्चिम बंगाल का खजाना खाली करने के लिए वे वामपंथियों को सदैव कोसती रही हैं। एक बयान में उन्होंने कहा था कि अगर उन्हें पता चलता कि वामपंथियों ने पश्चिम बंगाल का पूरा खजाना खाली कर दिया है तो वह सीएम बनना ही पसंद नहीं करतीं। दीदी का यह रुख हमेशा ही बना रहता है और उनके इस रुख के कारण बहुत से उनके अपने ही परेशान हो चुके हैं, लेकिन अब दीदी कुछ रचनात्मक करने जा रही हैं।
हाल ही में जब पार्टी का खजाना भरने की बात उठी तो ममता बनर्जी ने उद्योगपतियों के सामने हाथ फैलाने से इनकार कर दिया और अपनी सारी पेंटिग्स नीलामी पर चढ़ा दीं।  ममता का कहना है कि तृणमूल कांग्रेस के पंचायत चुनाव अभियान का खर्च निकालने के लिए यह पेंटिग्स बेची गई हैं। हालांकि विपक्ष ने पेंटिग्स की नीलामी को नाटक बताते हुए ममता बनर्जी से हिसाब भी मांग लिया है तथा खरीददारों के नाम बताने की मांग की है। दिक्कत की बात तो यह है कि जिस वक्त ममता बनर्जी की पेंटिंग की प्रदर्शनी चल रही थी उसी समय कोलकाता में जाने-माने चित्रकार जैमिनी राय के चित्रों की प्रदर्शनी भी लगी हुई थी, लेकिन राय को कोई नहीं पूंछ रहा था। लिहाजा ममता की पेंटिंग के प्रति कला पारखियोंÓ का मोह क्यों उमड़ा इसे समझा जा सकता है, लेकिन ममता इन आलोचनाओं से बेखबर हैं वे कहती हैं कि उनके पास पैसा नहीं है और न ही वे पूर्व सांसद के तौर पर पेंशन लेती है तथा बतौर मुख्यमंत्री वेतन भी नहीं ले रही हैं। इसीलिए पार्टी चलाने हेतु पैसों की जरूरत है और पंचायत चुनाव का खर्चा निकालने के लिए वे अपनी कलाकृतियों को नीलाम कर रही है। खास बात यह है कि इस कला प्रदर्शनी का उद्घाटन स्वयं ममता ने ही किया जिसमें 225 पेंटिंग्स लगी हुई थी जिनकी कीमत 1 से 3 लाख रुपए के बीच थी। जो चाटुकार इन पेंटिंग्स की तारीख कर रहे थे उन्होंने ममता में एक बड़े कलाकार को देखा। अब देखना यह है कि पेंटिंग की बिक्री से तृणमूल का बजट सुधरता है या नहीं। वैसे खास बात यह है कि ममता की बनाई पेंटिंग हाथों-हाथ बिक रही है और खरीदने वाले वे ही लोग हंै जो उनकी पार्टी को चंदा देने की मंशा रखते हैं। ममता बनर्जी इस विवाद से परेशान नहीं है। उनका कहना है कि उन्होंने 2006 में शौकिया तौर पर पेंटिंग बनाना शुरू किया था अब उन पेंटिंग्स को ग्राहक और प्रशंसक खरीद रहे हैं तो इसमें बुराई क्या है। ममता बनर्जी का अभियान भले ही सफल रहा हो, लेकिन राजनीतिक रूप से उनकी चुनौतियां एक बार फिर बढ़ गई हैं। पंचायत चुनाव में जीतने के लिए वाम पार्टियां एड़ी-चोटी का जोर लगा रही हैं। खबर यह भी है कि भीतर ही भीतर कांग्रेस ने भी वाम पार्टियों को समर्थन दे रखा है। इसी कारण ममता की पार्टी के लिए पंचायत चुनाव में चुनौतियां कम नहीं हैं। वैसे भी तृणमूल को शहरी वर्ग की पार्टी कहा जाता है। हाल ही में नगरीय क्षेत्रों में चुनाव के बाद तृणमूल ने भारी जीत हासिल की थी, लेकिन गांव में तृणमूल का संगठन वाम पार्टियों के मुकाबले काफी कमजोर है और इस बार वाम पार्टियां अपने जनाधार को एक बार फिर अपने खेमें में लाने के लिए जी तोड़ कोशिश कर रही हैं। इसी कारण तृणमूल और वाम कार्यकर्ताओं में विवाद की स्थिति भी बनी है, लेकिन ममता बनर्जी इन सबसे बेखबर हैं। उन्हें विश्वास है कि पंचायत चुनाव भी वे ही जीतेंगी।
-कोलकाता से इंद्रकुमार बिन्नानी

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