02-Feb-2018 10:58 AM
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देश में एक बार फिर चुनावी बिगुल बज गया है। इस साल जिन राज्यों में विधानसभा चुनाव होना है उनमें से पूर्वोत्तर के इन तीन राज्यों मेघालय, त्रिपुरा और नागालैंड में दो चरणों के तहत चुनाव होंगे। पहले चरण में 18 फरवरी को त्रिपुरा और 27 फरवरी को मेघालय व नागालैंड में मतदान होगा। तीनों राज्यों का नतीजा 3 मार्च को आएगा। इन चुनावों के साथ ही राहुल गांधी की अध्यक्षी की भी परीक्षा शुरू हो जाएगी।
जबकि, कर्नाटक में मई में विधानसभा का कार्यकाल खत्म हो रहा है। ऐसे में कर्नाटक में अप्रैल-मई में चुनाव कराए जा सकते हैं। वहीं साल के उतरार्ध में मिजोरम, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में चुनाव होना है। हालांकि अभी चुनाव आयोग ने विधानसभा चुनावों का ऐलान नहीं किया है, लेकिन इसके लिए कांग्रेस और बीजेपी दोनों ने कमर कस ली है। खासकर कर्नाटक में राहुल गांधी की असली अग्रिपरीक्षा होगी। एक तरफ जहां भाजपा, कर्नाटक में कांग्रेस से सत्ता छीनकर कांग्रेस मुक्त दक्षिणÓ का सपना पूरा करना चाह रही है, वहीं कांग्रेस किसी भी कीमत पर अपनी सरकार बचाए रखना चाहती है। गौरतलब है कि पंजाब और कर्नाटक ही दो ऐसे बड़े राज्य हैं जहां वर्तमान में कांग्रेस की सरकार है। कर्नाटक विधानसभा चुनाव मार्च-अप्रैल में हो सकते हैं।
कांग्रेस यह चुनाव राहुल गांधी के लिए सबसे बड़ी चुनौती है क्योंकि कांग्रेस अध्यक्ष बनने के बाद बतौर पार्टी अध्यक्ष यह उनका पहला चुनाव है। गुजरात चुनाव में सत्ता से बाहर रह जाने और हिमाचल प्रदेश का राज छिन जाने के बाद कांग्रेस के लिए कर्नाटक की सत्ता बचाये रखना कहीं ज्यादा चुनौतीपूर्ण हो गया है। अगर कांग्रेस कर्नाटक को बचाने में कामयाब होती है, तो राहुल गांधी को इसका फायदा साल के अंत में होने वाले भाजपा शाषित राज्यों- मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में तो फायदा मिलेगा ही, उसके अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव में विपक्षी नेता के तौर पर मोदी को टक्कर दे सकते हैं और इसका सीधा फायदा 2019 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को मिल सकता है जहां लोकसभा की 26 सीटें हैं।
हालांकि कांग्रेस के लिए यह जीत इतनी आसान भी नहीं है। अगर बात पिछले विधानसभा चुनाव की हो तो कांग्रेस को फायदा भाजपा के कारण से ही हुआ था। तब भाजपा तीन हिस्सों में बंटी थी। एक भाजपा, दूसरी येदियुरप्पा के नेतृत्व वाली कर्नाटक जनता पक्ष और तीसरी बीएसआर कांग्रेस। भाजपा के हार की सबसे बड़ी वजह बीएस येदुरप्पा की बगावत भी थी, जो उस समय भाजपा के मुख्यमंत्री भी रह चुके थे, लेकिन भ्रष्टाचार के मुद्दे पर उन्हें हटा दिया गया था, लेकिन इस बार फिर से उन्हें सीएम पद का दावेदार घोषित किया गया है। इस तरह इस बार कांग्रेस का मुकाबला न केवल एकजुट भाजपा से है, बल्कि पुराने मैसूर इलाके में जेडी (एस) भी उसके लिए चुनौती होगी। साल 2013 के विधानसभा चुनाव में कर्नाटक में कांग्रेस की सरकार बनने के बाद से वहां भाजपा मजबूत होती गयी है। विधानसभा चुनाव के एक साल बाद ही हुए लोकसभा चुनाव 2014 में भाजपा को 17 सीटें हासिल हुईं थीं, जबकि कांग्रेस को मात्र 9 सीटों पर ही संतोष करना पड़ा था। 2 सीटें जेडी (एस) को मिले थे।
भाजपा गुजरात में सरकार बचाने और कांग्रेस से हिमाचल प्रदेश छीनने के बाद, नरेंद्र मोदी कर्नाटक में कांग्रेस को सत्ता से बाहर कर दक्षिण के बड़े राज्य में कमल खिलाने की कोशिश करेंगे। भाजपा के पक्ष में एक और कारक है और वो है कर्नाटक में सत्ता बदलने की परंपरा। 1994 में वहां जनता दल की सरकार थी और 1999 में अगले चुनाव राज्य की जनता ने जनता दल को नकारते हुए कांग्रेस को वापस सत्ता दिलायी थी। ठीक उसी तरह 2004 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस भी सत्ता से बाहर हो गई और वहां जेडी (एस) के साथ भाजपा की मिली-जुली सरकार बनी थी। हालांकि यह सरकार अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पायी और 2008 के चुनाव में भाजपा ने बाजी मारते हुए सत्ता में आयी। इसी क्रम को जारी रखते हुए 2013 में भाजपा को वहां की जनता ने सबक सिखाया और मात्र 40 सीटों पर ला पटका और 122 सीटों के साथ कांग्रेस सत्ता पर विराजमान हुई। अगर कर्नाटक की जनता यही क्रम को जारी रखती है तो अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं है। यानि भाजपा की सरकार बन सकती है। लेकिन इन सब के बीच देखना होगा कि राहुल गांधी अपने दक्षिण भारत की एकमात्र सबसे बड़े राज्य में अपने पार्टी की सत्ता बचाने में कामयाब हो पाते हैं या नहीं? पार्टी ने राहुल गांधी को अध्यक्ष बनाकर इस अग्नि परीक्षा में उतारा है। उनकी इस सफलता पर कांग्रेस का भविष्य टिका है।
सोशल मीडिया का सहारा
कर्नाटक में कांग्रेस कितनी गंभीर है इसका अंदाजा आप इसी बात से लगा सकते हैं कि न सिर्फ पार्टी ने कर्नाटक में पार्टी प्रवक्ताओं की लिस्ट तैयार की है बल्कि वो वर्कशॉप लगाकर इन नेताओं को खास ट्रेनिंग भी दे रही है कि उन्हें क्या बोलना है, कैसे बोलना है, कहां और किस मौके पर बोलना है। कर्नाटक चुनाव में पार्टी की रणनीति एक ऐसी संचार व्यवस्था को लागू करने की भी है जिससे पार्टी का पक्ष सही तरीके से और तेजी के साथ मीडिया को बताया जा सके। कर्नाटक चुनाव के मद्देनजर इसके लिए स्वयं राहुल गांधी ने खाका तैयार किया है जिसमें शुरूआती दौर में सोशल मीडिया और ईमेल के जवाब के लिए पार्टी टेक सेवी लोगों को नियुक्त कर रही है। साथ ही पार्टी के प्रचार का जिम्मा यूथ कांग्रेस और एनएसयूआई के लोगों पर होगा।
पूर्वोत्तर में त्रिकोणीय मुकाबला
पूर्वोत्तर के नागालैंड, त्रिपुरा और मेघालय के विधानसभा चुनाव का औपचारिक ऐलान हो चुका है। इन तीनों राज्यों में फरवरी में मतदान होगा। त्रिपुरा लेफ्ट का दुर्ग है, तो मेघालय कांग्रेस का मजबूत किला है। जबकि नगालैंड की सत्ता पर बीजेपी-एनपीपी की साझा सरकार है। ऐसे में पूर्वोत्तर के इन तीनों राज्यों में कांग्रेस, लेफ्ट और बीजेपी की प्रतिष्ठा दांव पर है। त्रिपुरा लेफ्ट का मजबूत किला माना जाता है। पिछले पांच विधानसभा चुनावों से यहां लेफ्ट का कब्जा है। इस बार राज्य का सियासी मिजाज गड़बड़ाया हुआ है। लेफ्ट के इस दुर्ग में बीजेपी सेंधमारी की लिए बेताब है। हालांकि ये उसके लिए आसान नहीं है। त्रिपुरा के 2013 विधानसभा चुनाव में राज्य की कुल 60 सीटों में से वाम मोर्चा ने 50 सीटें जीती थीं। जबकि कांग्रेस को 10 सीटों के साथ संतोष करना पड़ा था। मेघालय की सत्ता पर आसीन कांग्रेस के लिए अपनी सत्ता बचाए रखने की बड़ी चुनौती है। बीजेपी से लेकर नेशनल पीपुल्स पार्टी सहित अन्य क्षेत्रीय दल पूरी तरह से कमर कसकर चुनावी मुकाबले में उतर चुके हैं। राज्य की बाजी जीतना बीजेपी के लिए काफी कठिन है। दरअसल राज्य में 60 फीसदी आबादी ईसाई समुदाय की है। बीजेपी की हिंदुत्व छवि और बीफ पाबंदी उसकी राह में सबसे बड़ी बाधा हैं। नगालैंड की सत्ता पर नगा पीपुल फ्रंट और बीजेपी गठबंधन की साझा सरकार है। राज्य की सत्ता से कांग्रेस को 2003 में बेदखल करके नगा पीपुल फ्रंट ने यहां कब्जा किया था, उसके बाद से लगातार सत्ता में वो बनी हुई है। बीजेपी के सामने सबसे बड़ी चुनौती अपनी सीटों को बढ़ाने की है। इसके अलावा अपनी सहयोगी पार्टी एनपीपी के साथ सत्ता में बहुमत के साथ वापसी करना भी एक चैलेंज है। जबकि कांग्रेस 14 साल बाद सत्ता में वापसी के लिए हाथ पांव मार रही है। नगालैंड में कुल
60 विधानसभा सीटें हैं। पिछले 2013
के विधानसभा चुनाव में नगा पीपुल
फ्रंट ने 45 सीटें जीती थीं। इसके अलावा 4 बीजेपी और 11 सीटें अन्य के खाते
में हैं।
हर राज्य में हार्दिक, अल्पेश और जिग्नेश
गुजरात चुनाव में कांग्रेस के हाथ एक नया हथियार लग गया है। वह हथियार है विभिन्न जातियों के युवा। यह कांग्रेस के बदलते मिजाज का प्रतीक भी है। कांग्रेस किस तरह बदल रही है यदि हमें इस बात को समझना हो तो हमें ज्यादा दूर जाने की जरूरत नहीं है। पूर्व में गुजरे गुजरात चुनाव पर अगर निगाह डालें तो कई बातें स्पष्ट हो जाती हैं। कहा जा सकता है कि 2014 के बाद, गुजरात चुनाव एक ऐसा चुनाव था जिसमें कांग्रेस ने अपनी कमियों को समझा, उस पर काम किया और अश्चार्यजनक रूप से भाजपा को कड़ी चुनौती दी। गुजरात में कई ऐसी सीटों पर कांग्रेस ने भाजपा को चारों खाने चित किया जो भाजपा की परंपरागत रूप से मजबूत सीटें बताई जाती थीं। गुजरात में कांग्रेस ने न तो मुस्लिम हितों की बात की न ही व्यर्थ में प्रधानमंत्री पर आरोप प्रत्यारोप लगाए। गुजरात चुनाव में कांग्रेस और राहुल गांधी दोनों ने युवाओं को ध्यान में रखा और युवा हितों की बात की। इस प्लानिंग का फायदा कांग्रेस को मिला और उसे हार्दिक पटेल, अल्पेश ठाकोर और जिग्नेश मेवाणी के रूप में युवा नेता मिले जिन्होंने मोदी लहर को रोकने में काफी हद तक कांग्रेस पार्टी और राहुल गांधी का साथ दिया। सबको अचरज में डालते हुए, गुजरात में कांग्रेस नंबर दो तक रही। कांग्रेस के इस प्रदर्शन पर चुनावी पंडितों ने तर्क दिया कि, अगर कांग्रेस और राहुल गांधी इसी तरह काम करती रहे तो वो दिन दूर नहीं जब वो भाजपा और प्रधानमंत्री को कड़ी टक्कर दे पाएंगे।
-एस.एन. सोमानी