आखिर हो गया तलाक
02-Feb-2018 07:31 AM 1234834
मुंबई में पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में प्रस्ताव पारित कर शिवसेना ने 2019 का लोकसभा चुनाव अकेले लडऩे का ऐलान कर दिया है। अब अगला लोकसभा चुनाव शिवसेना बीजेपी से अलग होकर लड़ेगी। शिवसेना के इस फैसले ने बीजेपी के साथ उसके संबंधों को लेकर फिर से कई सवाल खड़े कर दिए हैं। सबसे बड़ा सवाल यही है कि शिवसेना के साथ बीजेपी का गठबंधन अब कब तक चलेगा? क्या शिवसेना और बीजेपी के बीच गठबंधन के खात्मे की इसे शुरुआत कहा जा सकता है? लगता तो यही है। क्योंकि दोनों ही दलों के बीच खटपट तो पहले से ही थी। अब शिवसेना के इस कदम ने उसकी मंशा को सामने ला दिया है। दरअसल, शिवसेना को लगता है कि बीजेपी धीरे-धीरे उसके आधार को खत्म करती जा रही है। बीजेपी के जनाधार में लगातार हो रही बढ़ोत्तरी शिवसेना के आधार को सीमित कर रहा है। इस बात को लेकर शिवसेना लगातार परेशान है। बात अगर लोकसभा चुनाव 2014 की करें तो उस वक्त बीजेपी और शिवसेना दोनों ने गठबंधन में ही चुनाव लड़ा था। महाराष्ट्र की 48 लोकसभा सीटों में से बीजेपी ने 24 जबकि शिवसेना ने 20 सीटों पर चुनाव लड़ा था। इसके अलावा चार सीटें दूसरे छोटे सहयोगी दलों के खाते में गई थीं। लोकसभा चुनाव 2014 में बीजेपी को 24 में से 23 जबकि शिवसेना को 20 में से 18 सीटों पर जीत हासिल हुई थी। हालांकि लोकसभा चुनाव 2009 में बीजेपी ने 25 सीटों पर चुनाव लड़ा था जिसमें उसे 9 सीटों पर जीत मिली थी और शिवसेना ने 22 सीटों पर चुनाव लडक़र 11 सीटों पर जीत दर्ज की थी। 2009 के मुकाबले 2014 में बीजेपी का प्रदर्शन जिस तरह बेहतर हुआ, उससे साफ लग रहा था कि बीजेपी की ताकत में जमीनी स्तर पर इजाफा हुआ है। दूसरी तरफ, बाला साहब ठाकरे के निधन के बाद शिवसेना धीरे-धीरे कमजोर होती गई। लोकसभा चुनाव 2014 के नतीजे के बाद बीजेपी ने लोकसभा चुनाव में सफलता और मोदी मैजिक को आधार बनाकर शिवसेना पर दबाव बनाया। ज्यादा सीटों की मांग और शिवसेना को कम सीटें देने की जिद में बात नहीं बन पाई और 2014 का विधानसभा चुनाव दोनों दलों ने अलग होकर लडऩे का फैसला कर लिया। चुनाव नतीजों से साफ हो गया कि बीजेपी के लिए यह कदम कारगर साबित हुआ। 288 सदस्यों वाली महाराष्ट्र विधानसभा में बीजेपी को 122 जबकि शिवसेना को महज 63 सीटें ही मिल सकीं। लेकिन, सरकार बनाने के लिए बीजेपी को फिर से शिवसेना ने समर्थन दे दिया। महाराष्ट्र में सरकार बनने के वक्त शिवसेना को बीजेपी की तरफ से वो मंत्रालय नहीं दिए गए जिसकी वो मांग कर रही थी। यहां तक कि उप मुख्यमंत्री का पद भी नहीं मिल पाया। यहीं से दोनों ही दलों के बीच अदावत शुरू हो गई। यह लड़ाई उस वक्त भी जारी रही जब मुंबई महानगर पालिका यानी बीएमसी के चुनाव के वक्त भी शिवसेना और बीजेपी का गठबंधन नहीं हो पाया। अलग-अलग चुनाव लडऩे के बावजूद शिवसेना को 84 और बीजेपी को 82 सीटें मिली। इसके बावजूद बीजेपी ने बीएमसी में शिवसेना को समर्थन देकर संबंध सुधारने की काफी कोशिश की। ताकत की कमी से चिढ़ शिवसेना को लगता है कि हिंदुत्व की पैरोकार और झंडाबरदार बीजेपी उसके ही वोट बैंक में सेंधमारी कर रही है। अपने 25 सालों से ज्यादा के संबंधों के दरम्यान शिवसेना प्रमुख बाला साहब ठाकरे के साथ बीजेपी के आला नेतृत्व अटल बिहारी वाजपेयी और लालकृष्ण आडवाणी की केमिस्ट्री काफी बेहतर रही थी। उस वक्त बीजेपी शिवसेना की बी टीम बनकर महाराष्ट्र में काम करती रही थी। लगता है शिवसेना को अपनी कम हुई ताकत के कारण बीजेपी से जो चिढ़ हुई है उसे इतनी जल्दी वो भुलाने के मूड में नहीं है। शिवसेना ने युवा सेना के प्रमुख और उद्धव ठाकरे के बेटे आदित्य ठाकरे को नेशनल एक्जक्युटिव का सदस्य बनाकर उनके कद को बड़ा कर दिया है। लेकिन, उसकी बीजेपी के साथ अदावत से साफ है कि वो बीजेपी को ही सबसे बड़ा सियासी दुश्मन मान कर चल रही है। शिवसेना चाहे लाख दंभ भर ले लेकिन, उसे भी इस बात का एहसास है कि आने वाले दिनों में उसकी एकला चलो की राह आसान नहीं होगी। -ऋतेन्द्र माथुर
FIRST NAME LAST NAME MOBILE with Country Code EMAIL
SUBJECT/QUESTION/MESSAGE
© 2025 - All Rights Reserved - Akshnews | Hosted by SysNano Infotech | Version Yellow Loop 24.12.01 | Structured Data Test | ^