रामचरितमानस में शिव कृपा
01-Jan-2018 09:25 AM 1235669
रामचरितमानस हर समय प्रासंगिक है। हमें जीवन की हर कठिनाई से लडऩे की शक्ति देता है और इसका गहराई से अध्ययन किया जाए तो यह आध्यात्मिक बल के साथ-साथ हर परिस्थिति में मार्गदर्शक की भूमिका भी निभाता है। रामचरितमानस के पाठ से भोलेनाथ शिव की भी कृपा प्राप्त होती है। भगवान शंकर भक्तों की प्रार्थना से बहुत जल्द ही प्रसन्न हो जाते हैं। इसी कारण उन्हें आशुतोष भी कहा जाता है। वैसे तो धर्मग्रंथों में भोलेनाथ की कई स्तुतियां हैं, पर श्रीरामचरितमानस का रुद्राष्टकम अपने-आप में बेजोड़ है। रुद्राष्टकम केवल गाने के लिहाज से ही नहीं, बल्कि भाव के नजरिए से भी एकदम मधुर है। यही वजह है शिव के आराधक इसे याद रखते हैं और पूजा के समय सस्वर पाठ करते हैं। रुद्राष्टकम और इसका भावार्थ आगे दिया गया है... नमामीशमीशान निर्वाणरूपं । विभुं व्यापकं ब्रह्मवेदस्वरूपम् ॥ निजं निर्गुणं निर्विकल्पं निरीहं । चिदाकाशमाकाशवासं भजेऽहम् ॥1॥ (हे मोक्षरूप, विभु, व्यापक ब्रह्म, वेदस्वरूप ईशानदिशा के ईश्वर और सबके स्वामी शिवजी, मैं आपको नमस्कार करता हूं। निज स्वरूप में स्थित, भेद रहित, इच्छा रहित, चेतन, आकाश रूप शिवजी मैं आपको नमस्कार करता हूं।) निराकारमोङ्कारमूलं तुरीयं । गिराज्ञानगोतीतमीशं गिरीशम् । करालं महाकालकालं कृपालं । गुणागारसंसारपारं नतोऽहम् ॥2॥ (निराकार, ओंकार के मूल, तुरीय (तीनों गुणों से अतीत) वाणी, ज्ञान और इन्द्रियों से परे, कैलाशपति, विकराल, महाकाल के भी काल, कृपालु, गुणों के धाम, संसार से परे परमेशवर को मैं नमस्कार करता हूं।) तुषाराद्रिसंकाशगौरं गभीरं। मनोभूतकोटिप्रभाश्री शरीरम्॥ स्फुरन्मौलिकल्लोलिनी चारुगङ्गा। लसद्भालबालेन्दु कण्ठे भुजङ्गा ॥3॥ (जो हिमाचल के समान गौरवर्ण तथा गंभीर हैं, जिनके शरीर में करोड़ों कामदेवों की ज्योति एवं शोभा है, जिनके सिर पर सुंदर नदी गंगाजी विराजमान हैं, जिनके ललाट पर द्वितीया का चन्द्रमा और गले में सर्प सुशोभित है...) चलत्कुण्डलं भ्रूसुनेत्रं विशालं । प्रसन्नाननं नीलकण्ठं दयालम् ॥ मृगाधीशचर्माम्बरं मुण्डमालं । प्रियं शङ्करं सर्वनाथं भजामि ॥4॥ (जिनके कानों में कुण्डल शोभा पा रहे हैं। सुन्दर भृकुटी और विशाल नेत्र हैं, जो प्रसन्न मुख, नीलकण्ठ और दयालु हैं। सिंह चर्म का वस्त्र धारण किए और मुण्डमाल पहने हैं, उन सबके प्यारे और सबके नाथ श्री शंकरजी को मैं भजता हूं।) प्रचण्डं प्रकृष्टं प्रगल्भं परेशं। अखण्डं अजं भानुकोटिप्रकाशं॥ त्रय: शूलनिर्मूलनं शूलपाणिं । भजेऽहं भवानीपतिं भावगम्यम् ॥5॥ (प्रचंड, श्रेष्ठ तेजस्वी, परमेश्वर, अखण्ड, अजन्मा, करोडों सूर्य के समान प्रकाश वाले, तीनों प्रकार के शूलों को निर्मूल करने वाले, हाथ में त्रिशूल धारण किए, भाव के द्वारा प्राप्त होने वाले भवानी के पति श्री शंकरजी को मैं भजता हूं।) कलातीतकल्याण कल्पान्तकारी। सदा सज्जनानन्ददाता पुरारी॥ चिदानन्दसंदोह मोहापहारी। प्रसीद प्रसीद प्रभो मन्मथारी॥6॥ (कलाओं से परे, कल्याण स्वरूप, प्रलय करने वाले, सज्जनों को सदा आनंद देने वाले, त्रिपुरासुर के शत्रु, सच्चिदानन्दघन, मोह को हरने वाले, मन को मथ डालने वाले हे प्रभो, प्रसन्न होइए, प्रसन्न होइए।) न यावद् उमानाथपादारविन्दं। भजन्तीह लोके परे वा नराणाम्। न तावत्सुखं शान्ति सन्तापनाशं। प्रसीद प्रभो सर्वभूताधिवासं॥7॥ (जब तक मनुष्य श्रीपार्वतीजी के पति के चरणकमलों को नहीं भजते, तब तक उन्हें न तो इहलोक में, न ही परलोक में सुख-शान्ति मिलती है और अनके कष्टों का भी नाश नहीं होता है। अत: हे समस्त जीवों के हृदय में निवास करने वाले प्रभो, प्रसन्न होइए।) न जानामि योगं जपं नैव पूजां। नतोऽहं सदा सर्वदा शम्भुतुभ्यम् ॥ जराजन्मदु:खौघ तातप्यमानं। प्रभो पाहि आपन्नमामीश शंभो॥8॥ (मैं न तो योग जानता हूं, न जप और न पूजा ही। हे शम्भो, मैं तो सदा-सर्वदा आप को ही नमस्कार करता हूं। हे प्रभो! बुढ़ापा तथा जन्म के दु:ख समूहों से जलते हुए मुझ दुखी की दु:खों से रक्षा कीजिए। हे शम्भो, मैं आपको नमस्कार करता हूं।) रुद्राष्टकमिदं प्रोक्तं विप्रेण हरतोषये॥। ये पठन्ति नरा भक्त्या तेषां शम्भु: प्रसीदति॥9॥ वन्दे बोधमयं नित्यं गुरु, शंकर रूपिणम। यमाश्रितो हि वक्रोपि, चन्द्र: सर्वत्र वन्द्यते।। इस श्लोक में शिव जी को गुरु रूप में प्रणाम करके उनकी महिमा बताई गई है। कोई भी पूजा उपासना करने के पूर्व इस श्लोक को पढ़ लेना चाहिए ताकि पूजा का पूर्ण फल मिल सके। अगर पूजा में कोई समस्या आ जाए तो शिव कृपा से वह समाप्त हो जाती है। महामंत्र जोई जपत महेसू, कासी मुकुति हेतु उपदेसू। जब भी आप मंत्र जाप करना या सिद्ध करना चाहते हों उसके पहले यह दोहा पढऩा चाहिए। शिव जी की कृपा से तुरंत ही मंत्र सिद्ध भी होता है और प्रभावशाली भी। संभु सहज समरथ भगवाना, एही बिबाह सब विधि कल्याणा। जब संतान के दाम्पत्य जीवन में समस्या आ रही हो तब इस दोहे का प्रभाव अचूक होता है। नित्य प्रात: शिव जी के समक्ष इस दोहे का 108 बार जाप करें, फिर अपने संतान के सुखद दाम्पत्य जीवन की प्रार्थना करें। जो तप करे कुमारी तुम्हारी, भावी मेटी सकही त्रिपुरारी। अगर जीवन में ग्रहों या प्रारब्ध के कारण कुछ भी न हो पा रहा हो तो यह दोहा अत्यंत फलदायी होता है। इस दोहे को चारों वेला कम से कम 108 बार पढऩे से भाग्य का चक्र भी बदल सकता है। परन्तु कुछ ऐसी कामना न करें जो उचित न हो। तव सिव तीसर नयन उघारा, चितवत कामु भयऊ जरि छारा। अगर मन भटकता हो और अत्यंत चंचल हो तो यह दोहा लाभकारी होता है। जो लोग काम चिंतन और काम भाव से परेशान हों उनके लिए यह दोहा अत्यंत प्रभावशाली है। पाणिग्रहण जब कीन्ह महेसा, हिय हरसे तब सकल सुरेसा। वेद मंत्र मुनिवर उच्चरहीं, जय जय जय संकर सुर करहीं।। अगर विवाह होने में बाधा आ रही हो तो इस दोहे का जाप अत्यंत शुभ होता है। प्रात: काल शिव और पार्वती के समक्ष इस दोहे का जाप करने से शीघ्र और सुखद विवाह होता है। -ओम
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