07-Dec-2017 07:10 AM
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तीस लाख की आबादी वाले इंदौर शहर में कई झुग्गी बस्ती क्षेत्र है। जब भी चुनावी बेला आती है पट्टों की खैरात पाने लंबी कतार लग जाती है, लेकिन मजे की बात यह है कि इस बार इंदौर जैसे शहर में ही प्रशासन को मात्र 16 परिवार ही पट्टे की पात्रता वाले सर्वे में मिले हैं। पिछले दिनों शासन के निर्देश पर कलेक्टर ने क्षेत्रवार एसडीएम से भूमिहीन परिवारों का सर्वे करवाया था। इतनी कम संख्या में पात्र परिवार मिलने के बाद भौचक प्रशासन अब दोबारा सर्वे कराए जाने की बात भी कह रहा है। उधर इससे अधिकारियों की कार्यप्रणाली भी संदेह के घेरे में आ गई है।
ज्ञातव्य है कि 33 साल पहले प्रदेश सरकार ने इसी तरह गरीबों को पट्टे बांटे थे और इंदौर जिले में 1984 में तीस हजार परिवारों को सरकारी जमीनों पर पट्टे देकर काबिज करवाया गया। इनमें शहरी क्षेत्र में लगभग 24 हजार और बाकी के 6 हजार पट्टे राऊ, महू, सांवेर, देपालपुर क्षेत्र में बांटे गए, जिसके चलते कई झुग्गी झोपडिय़ां कायम हो गई। 450 स्क्वेयर फीट के बांटे इन पट्टों की अवधि तीन साल पहले ही समाप्त हो चुकी है और अब इनका नवीनीकरण किया जाना है, लेकिन इसके लिए भी गिने-चुने पट्टाधारियों ने आवेदन किए हैं। उल्लेखनीय है कि पूर्व की कांग्रेस की सरकारों ने मुफ्त जमीन यानी पट्टे गरीबों को खूब बांटे और बाद में भाजपा की सरकार को भी अपना वोट बैंक बनाने के लिए इसी नीति को जारी रखना पड़ा। कई सम्पन्न और अपात्र लोगों ने भी ये पट्टे हासिल कर लिए और इनकी बिक्री के साथ व्यवसायिक उपयोग से लेकर अन्य अनियमितताएं भी खूब की गई।
हालांकि बाद में शहरों को झुग्गी मुक्त करने के लिए केन्द्र सरकार ने पहले जवाहरलाल नेहरू शहरी नवीनीकरण मिशन के तहत वैम्बे और फिर राजीव आवास जैसी योजनाएं भी बनाई और वर्तमान मोदी सरकार ने भी प्रधानमंत्री आवास योजना लागू कर रखी है। प्राधिकरण के साथ-साथ नगर निगम ने भी गरीबों के लिए मकान बनाए, जिनमें सड़क चौड़ीकरण से लेकर ओवरब्रिजों के निर्माण या अन्य प्रोजेक्टों में बाधक बन रहे पट्टेधारकों को हटाकर इन पक्के मकानों में शिफ्ट भी कराया गया, वहीं शेखर नगर जैसी वर्षों पुरानी झुग्गी झोपड़ी बस्ती हटाई गई। यहां पर भी शासन-प्रशासन ने पट्टे ही दिए थे। अभी भी नगर निगम 25 हजार से अधिक मकान गरीबों के लिए बनवा रहा है, जिसके लिए प्रशासन ने नजूल की जमीनें आवंटित की है। यही कारण है कि पिछले दिनों शिवराज सरकार ने नए पट्टों के वितरण करवाने के लिए सर्वे करवाने का आदेश सभी जिला कलेक्टरों को भिजवाए, उसमें इंदौर शहरी क्षेत्र में सर्वे करवाया गया। क्षेत्रीय एसडीएम ने थानावार ये सर्वे करवाया और इसमें मात्र 16 परिवारों को ही पट्टे योग्य पाया गया है। इंदौर जैसे शहर में यह आंकड़ा जिले के आला अधिकारियों को भी कम लग रहा है। लिहाजा संभव है कि एक बार फिर यह सर्वे करवाया जाए।
अब पिछले दिनों शासन ने इन विसंगतियों का निराकरण करते हुए सभी कलेक्टरों को 1984 के पट्टों की जांच कर नवीनीकरण कराने के दिशा-निर्देश भिजवाए हैं, जिसके चलते शहरी विकास अभिकरण यानी डूडा ने इन सभी 30 हजार पट्टों की सूची को नए सिरे से तैयार किया है। डूडा इंदौर कार्यालय के प्रभारी अधिकारी प्रवीण उपाध्याय से पूछने पर उन्होंने बताया कि इन पट्टों का नवीनीकरण होना है। शहरी क्षेत्र में आने वाले 24 थाना क्षेत्रों के तहत ये पट्टे बांटे गए, जिसमें 10 अनुभाग लगते हैं। लिहाजा संबंधित एसडीओ और एसडीएम के द्वारा राजस्व निरीक्षक और अन्य अमला थानावार इन पट्टों की जांच करेगा। अभी तक कुछ ही पट्टाधारी सामने आए हैं, लिहाजा इस योजना का एक बार फिर व्यापक प्रचार-प्रसार भी किया जाएगा, ताकि अधिक से अधिक लोग नवीनीकरण का लाभ ले सकें।
कई पट्टेधारक पक्के मकानों में भी शिफ्ट
विगत वर्षों में कई पट्टे धारकों को पक्के मकानों में भी शिफ्ट किया गया है। पहले वैम्बे और राजीव आवास योजना के तहत इंदौर विकास प्राधिकरण और नगर निगम ने गरीबों के लिए फ्लेट बनाए हैं। शहर की कई झुग्गी बस्तियों में रहने वाले लोगों को इन मकानों में शिफ्ट भी किया गया है। एयरपोर्ट के सामने की बस्ती से लेकर लालबाग के सामने की पुरानी बस्ती और अन्य मास्टर प्लान की सड़कों के निर्माण, चौड़ीकरण और अन्य प्रोजेक्टों के चलते भी कई परिवारों को हटाया गया और उन्हें पक्के मकान भी दिए। हालांकि इस मामले में प्राधिकरण और निगम का अनुभव अच्छा भी नहीं रहा। जिन परिवारों को ये मकान दिए गए, थोड़े ही दिन बाद वे वापस झुग्गी झोपड़ी में आकर रहने लगे या अन्य जगह पर जाकर नई झुग्गी झोपड़ी बना ली। अभी शासन जो नए भूमिहीनों को पट्टे बांटना चाहता है उनकी संख्या भी इंदौर में मात्र 16 निकली है, वहीं पुराने कितने पट्टेधारी मौके पर रह रहे हैं इसका भी फिलहाल खुलासा नहीं हुआ है, जब तक प्रशासन इन सभी 30 हजार पट्टों की मौके पर जांच न करवाए।
- इंदौर से विशाल गर्ग