पंचमेल की खिचड़ी
17-Nov-2017 06:45 AM 1234850
जबसे शिवसेना ने राहुल गांधी की तारीफ कर दी है, बीजेपी की बौखलाहट बढ़ गयी है। ऐसे में जबकि शिवसेना और ममता बनर्जी की पार्टी नोटबंदी को छोड़ कर किसी भी मसले पर इत्तेफाक नहीं रखते, दोनों दलों के नेताओं की मुलाकात के क्या मायने हो सकते हैं? बीजेपी के खिलाफ शिवसेना के तीखे तेवर पिछले तीन साल में कभी भी नरम नहीं पड़े हैं। हालांकि, इन तीन साल में शिवसेना ने काफी कुछ गंवाया भी है। असल बात ये है कि जो भी शिवसेना ने गंवाया है उसका सीधा फायदा बीजेपी ने ही उठाया है। तेवर को लेकर भले ही बीजेपी और शिवसेना का रिश्ता बेर-केर संग जैसा नजर आये लेकिन हकीकत ये भी है कि दोनों साथ-साथ बने हुए हैं - राज्य सरकार में भी और केंद्र में भी। शिवसेना के मुखपत्र सामना के संपादकीय में निशाने पर मोदी सरकार तो अक्सर ही रहती है, लेकिन इस बार पार्टी सांसद संजय राउत का बयान बीजेपी को बेहद नागवार गुजरा है। इतना कि महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने सीधे-सीधे पूछ लिया कि शिवसेना वास्तव में चाहती क्या है? दरअसल, गुजरात चुनाव के संदर्भ में टिप्पणी करते हुए संजय राउत ने कहा कि कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी देश का नेतृत्व करने में सक्षम हैं। साथ ही, ये भी कह डाला कि देश में अब नरेंद्र मोदी लहर खत्म हो चुकी है। एक बात और भी - वोटर समझदार हैं और किसी को भी पप्पू बना सकते हैं। देवेंद्र फडणवीस का कहना था - शिवसेना हमारे सभी फैसलों का विरोध करती रहती है। वो हमें सुझाव दे सकते हैं, लेकिन लगातार वो विपक्ष की तरह बर्ताव नहीं कर सकते। ये दोहरा रवैया स्वीकार नहीं किया जाएगा। फडणवीस यहीं नहीं रुके, उन्होंने कह डाला कि - शिवसेना चीफ उद्धव ठाकरे को सोचना और तय करना होगा कि गठबंधन जारी रहेगा या नहीं। उद्धव ठाकरे अपने बेटे आदित्य ठाकरे के साथ जब ममता बनर्जी से मुलाकात की तो चर्चाओं और अटकलों का तेज होना स्वाभाविक था। बाद में उद्धव ने मुलाकात के राजनीतिक होने से तो इंकार किया, लेकिन जो बयान दिया वो मामूली बात भी नहीं थी। उद्धव ने मीडिया से कहा, उनके साथ ये मेरी पहली बैठक थी। कोई राजनीतिक चर्चा नहीं हुई, लेकिन नोटबंदी और जीएसटी जैसे मुद्दों पर हमारे विचार एक समान हैं। इन मुद्दों पर हम दोनों बोलते रहे हैं। देखते हैं चीजें कैसे आकार लेती हैं। उद्धव के बयान में चीजों के आकार लेने को क्या समझा जाना चाहिये? निश्चित तौर पर कोई न कोई खिचड़ी तो पक ही रही है। नोटबंदी और जीएसटी इसका विरोध ममता बनर्जी और राहुल गांधी तो जोर शोर से कर रहे हैं। शिवसेना ने भी विरोध में वैसे कोई कसर बाकी नहीं रखी है। अब अगर उद्धव ठाकरे और ममता बनर्जी मिलते हैं और उसके बाद खुद उद्धव ठाकरे कहते हैं कि इन दोनों मुद्दों पर चर्चा हुई फिर कैसे न किसी राजनीतिक रणनीति की संभावना जतायी जाये। हालांकि, जिसे एजेंडे के साथ शिवसेना की राजनीति चलती है और जो राह ममता बनर्जी की है वो बिलकुल अलग है। बावजूद इसके दोनों में मेल तो हो ही सकता है, राजनीति आखिर इसे ही तो कहते हैं। राजनीति के दो ध्रुवों का मेल कोई अजीब बात नहीं है। जम्मू कश्मीर में बीजेपी और पीडीपी की गठबंधन सरकार बेहतरीन और ताजातरीन मिसाल है। दोनों का एजेंडा अलग है, बल्कि कई मुद्दों पर गहरे मतभेद भी हैं फिर भी सरकार चल रही है। क्या देवेंद्र फडणवीस की खुली चुनौती के बाद शिवसेना नये विकल्पों पर विचार करने लगी है? ऐसी संभावनाएं राष्ट्रपति चुनाव के वक्त भी नजर आ रही थीं, लेकिन थोड़े से हो-हल्ला के बाद सब शांत हो गया। शिवसेना बीजेपी के साथ ही बनी रही, लेकिन राहुल गांधी पर संजय राउत का बयान और फिर उद्धव और आदित्य ठाकरे की ममता से मुलाकात किसी नये गठजोड़ की ओर इशारा तो करते ही हैं। मगर क्या ये इतना आसान है? इस मुलाकात की मंजिल क्या है? उद्धव ठाकरे और ममता बनर्जी की यह मुलाकात देशभर में चर्चा का विषय बनी हुई है। बड़ा सवाल यही है कि क्या ये मुलाकात सिर्फ मुलाकात ही रह जाएगी या कोई गुल खिलाएगी भी? इस मुलाकात की मंजिल क्या है। इस मुलाकात की परिणति जो भी हो गौर करने वाली बात ये है कि ममता मातोश्री नहीं गयीं बल्कि उद्धव खुद उनसे मिलने होटल पहुंचे। ये ठीक है कि ममता बनर्जी प्रधानमंत्री मोदी के खिलाफ मोर्चेबंदी में जुटी हुई हैं। इसमें वे सारे लोग हैं हो जो मोदी का खुलेआम विरोध करते हैं। नोटबंदी और जीएसटी पर ये एक ही तरह की बात करते हैं, लेकिन कॉमन एजेंडे के बावजूद कांग्रेस केजरीवाल को साथ लेने को तैयार नहीं है जबकि पी. चिदंबरम को वकील बनाने से उन्हें कोई परहेज नहीं है। - ऋतेन्द्र माथुर
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