सबसे गरीब क्यों?
17-Nov-2017 06:21 AM 1234881
एक तरफ मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह दावा करते हैं कि छत्तीसगढ़ सबसे तेजी से विकास कर रहा है, वहीं दूसरी तरफ केंद्र की मोदी सरकार के अनुसार छत्तीसगढ़ देश का सबसे गरीब राज्य है। तेंदुलकर कमेटी की पद्धति के आधार पर निकाले गये ग्रामीण गरीबी के यह आंकड़े केंद्र सरकार के ही हैं। पिछले 14 साल के भाजपा शासनकाल में इस स्थिति को सुधारने की कोशिश के बाद थोड़ा बदलाव तो आया है लेकिन गरीबी को कम करने की दिशा में अभी और काम किये जाने की जरुरत है। अभी जबकि छत्तीसगढ़ में विकास के आंकड़ों की बात चल रही है, तब इन आंकड़ों की पड़ताल दिलचस्प है। छत्तीसगढ़ में राष्ट्रीय गरीबी रेखा से नीचे की आबादी का आंकड़ा 39.93 फीसदी है (साल 2011-12)। छत्तीसगढ़ के गांवों में यह 44.61 फीसदी तथा शहरों में 24.75 फीसदी है। 1993-94 में छत्तीसगढ़ में यह 50.9 फीसदी था जोकि कम हुआ है। राष्ट्रीय स्तर पर यह आकड़ा 21.9 फीसदी का है (साल 2011-12) जबकि यह आंकड़ा 1990 में 47.8 फीसदी का था। जाहिर है कि छत्तीसगढ़ में गरीबी उस अनुपात में कम नहीं हुई है, जिस तरह से राष्ट्रीय स्तर तथा अन्य राज्यों में हुआ है। छत्तीसगढ़ की तुलना में पड़ोसी मध्य प्रदेश में यह 31.65 फीसदी, ओडिशा में 32.59 फीसदी, बिहार में 33.74 फीसदी तथा झारखंड में 36.96 फीसदी है। छत्तीसगढ़ को मिलाकर 9 राज्य ऐसे हैं, जिनमें राष्ट्रीय गरीबी रेखा से नीचे की आबादी का आंकड़ा ज्यादा है। उल्लेखनीय है कि छत्तीसगढ़ प्राकृतिक संसाधनों से भरपूर राज्य है। बिलासपुर रेलवे जोन देश का सबसे ज्यादा माल ढोने वाला जोन है, जो भारतीय रेलवे को उसके कुल वार्षिक राजस्व का छठवां हिस्सा देता है। छत्तीसगढ़ खनिज राजस्व की दृष्टि से देश में दूसरा बड़ा राज्य है। छत्तीसगढ़ वन राजस्व की दृष्टि से तीसरा बड़ा राज्य है। छत्तीसगढ़ में देश का 38.11 फीसदी टिन अयस्क, 28.38 फीसदी हीरा, 18.55 फीसदी लौह अयस्क और 16.13 फीसदी कोयला, 12.42 फीसदी डोलोमाईट, 4.62 फीसदी बाक्साइट उपलब्ध है। छत्तीसगढ़ में अभी देश का 38 फीसदी स्टील उत्पादन हो रहा है। सन 2020 तक हम देश का 50 फीसदी स्टील उत्पादन करने लगेंगे। छत्तीसगढ़ में अभी देश का 11 फीसदी सीमेन्ट उत्पादन हो रहा है, जो आगामी वर्षों में बढ़कर 30 फीसदी का हो जायेगा। राज्य में अभी देश का करीब 20 फीसदी एल्युमिनियम उत्पादन है, वह निकट भविष्य में बढ़कर 30 फीसदी हो जायेगा। छत्तीसगढ़ में भारत का कुल 16 फीसदी खनिज उत्पादन होता है अर्थात साल भर में खनिज से बनने वाली हर छठवीं चीज पर छत्तीसगढ़ का योगदान होता है। छत्तीसगढ़ में देश का लगभग 20 फीसदी लौह अयस्क है, यानी हर पांचवें टन आयरन ओर पर छत्तीसगढ़ का नाम लिखा है। इन सबके बावजूद छत्तीसगढ़ देश का सबसे गरीब राज्य होना इस बात का घोतक है कि विकास आम छत्तीसगढिय़ा के दरवाजे तक नहीं पहुंच पा रहा है। इस प्रदेश में खनिज और जंगलों की बहुतायत के साथ-साथ कुछ बड़े उद्योग भी हैं परंतु सत्ताधारी वर्ग के लिये विकास के मायने इन संसाधनों और सस्ते श्रम का दोहन रहा है। इसलिये प्राकृतिक श्रोतों से होने वाली आय कभी भी इस प्रदेश की श्रमिक जनता की बेहतरी के लिये नहीं लगा वरन वह धन साधन सम्पन्न अमीरों के लिये आधारभूत ढांचा बनाने के लिये उपयोग हुआ। गरीबों की आय नहीं बढ़ी प्रति व्यक्ति मासिक उपभोग के आधार पर 1962 में एक कार्यकारी समूह ने गरीबी के पैमाने को निर्धारित करने का प्रयास किया था। तब उसने प्रति व्यक्ति प्रति माह 20 रूपये न्यूनतम आवश्यकता बताई थी। यदि इस पैमाने को ही माना जाए और महंगाई की औसत दर 10प्रतिशत ही मान ली जाएं, तो आज 2015 में यह पैमाना कम-से कम 3500 रूपये प्रति माह बनता है। तब पांच व्यक्तियों के एक परिवार के लिए न्यूनतम मजदूरी 17000 रूपये मासिक तय होनी चाहिए, लेकिन आप जानते हैं कि हमारे प्रदेश में न्यूनतम मजदूरी 5000 रूपये मासिक भी नहीं हैं। सरकारी रिपोर्ट कहती है कि हमारे देश में 80 फीसदी लोग प्रतिदिन 20 रूपये भी खर्च करने की स्थिति में नहीं है। इसे दूसरी तरह से लें। हमारे प्रदेश में प्रति व्यक्ति आय वर्ष 2014-15 में 64442 रूपये वार्षिक है। इसमें लगभग 10 फीसदी की दर से बढ़ोतरी हो रही है। चार व्यक्तियों के परिवार के लिए वार्षिक आय होती है 2.58 लाख रूपये। सवाल है कि हमारे प्रदेश में कितने परिवार यह आय सुनिश्चित कर पाते हैं? सरकारी रिपोर्ट तो यह बताती है कि प्रदेश के 75 फीसदी ग्रामीण परिवारों की आय 60000 रूपये वार्षिक से कम है। -रायपुर से टीपी सिंह
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