लाल निशानÓ पर रेडक्रॉस सोसायटी
17-Oct-2017 09:47 AM 1235090
नवता की सेवा के मकसद से 1863 में युद्ध भूमि पर जख्मी और पीडि़तों को सहायता प्रदान करने के लिए स्थापित की गई रेडक्रास सोसायटी निष्पक्षता, तटस्थता, स्वतंत्रता, स्वयं प्रेरित सेवा, एकता एवं सार्वभौमिकता के सिद्धान्तों पर काम करती है। भारतीय रेडक्रास सोसायटी अधिनियम 1920 में पारित किया गया है जिसका उद्देश्य लोगों को सस्ती और सुलभ स्वास्थ्य सेवा देना है। भारतीय रेडक्रास सोसायटी की 700 से अधिक जिला शाखाएं सभी राज्यों में हैं। भारतीय रेडक्रास सोसायटी जिला शाखा भोपाल उन्हीं में से एक है, लेकिन आज यह रेडक्रॉस सोसायटी लाल निशानÓ पर है। उसकी वजह है सिद्धांता-रेडक्रॉस सुपर स्पेशियलिटी अस्पताल। पूर्व चेयरमैन मुकेश नायक ने 3 साल पहले रेडक्रास को सिद्धांता को किराए पर दिया था। दरअसल, भोपाल में लिंक रोड-1 स्थित रेड क्रॉस अस्पताल में कई सालों से गरीब और जरूरतमंद लोग इलाज कराते आ रहे हैं। इस अस्पताल में लोगों का इलाज कम खर्चे पर हो जाता है, क्योंकि यह नो प्रॉफिट नो लॉस के आधार पर चलाया जाता रहा है। अस्पताल में जो कर्मचारी काम कर रहे हैं वह भी सालों से लोगों की सेवा में लगे हैं, लेकिन रेडक्रॉस सोसायटी की इमारत में पिछले तीन साल से संचालित हो रहे सिद्धांता-रेडक्रॉस सुपर स्पेशियलिटी अस्पताल के कारण रेडक्रॉस अस्पताल में गरीबों का इलाज अब आसान नहीं रह गया है। सिद्धांता-रेडक्रॉस सुपर स्पेशियलिटी अस्पताल के अनुबंध दस्तावेजों में रेडक्रॉस सोसायटी की भूमिका पर सवाल खड़े हो रहे हैं। दरअसल अनुबंध शर्तों में सिद्धांता अस्पताल प्रबंधन पर जमकर मेहरबानी की गई है। जैसे, 10.50 लाख रुपए प्रति माह किराये के साथ 15 साल का अनुबंध। शुरुआत में चार महीने तक किराया माफी से लेकर अस्पताल बंद करने या करार टूटने की स्थिति में एक साल पहले अस्पताल खाली कराने का नोटिस देने के साथ ही इस अवधि का किराया नहीं लेने वाले प्रावधान अनुबंध की मंशा पर संदेह खड़ा करते हैं। इन सारी शर्तों में सिद्धांता अस्पताल के हितों का खास ध्यान रखा गया है। सवाल इसलिए भी कि अनुबंध शर्तों पर फैसला राज्यपाल की मौजूदगी में एनुअल जनरल मीटिंग (एजीएम) में होना चाहिए था, लेकिन पिछले 5 साल से एक भी एजीएम नहीं हुई है। यानी रेडक्रॉस कार्यकारिणी समिति और वित्तीय समिति ने ही सारे फैसले ले लिए। यही नहीं कुछ ऐसी शर्तें सामने आई हैं जो चौकाने वाली हैं। शर्तों के अनुसार, सिद्धंाता प्रबंधन को अस्पताल खुलने के चार महीने तक कोई अंशदान किराए के रूप में नहीं देना होगा। सिद्धांता अस्पताल प्रबंधन ने अनुबंध पर 10 लाख रुपए अमानत राशि जमा कराई जो वापस होगी। जरूरत पडऩे पर 10 से 15 कमरे मरीजों को भर्ती करने के लिए सिद्धांता अस्पताल उपयोग में ले सकेगा। सिद्धांता जांचें व ऑपरेशान कर सकेगा। रेडक्रॉस सोसायटी सुपर स्पेशियलिटी की कोई सुविधा नहीं देगी। सिद्धांता प्रबंधन किसी फर्म और कंपनी से आउटसोर्स कर उपकरण और मशीनें लगा सकेगा। अस्पताल मेें पैट सिटी स्केन मशीन लगाने, दीवार, फ्लोर, टाइल्स, फॉल सीलिंग से लेकर सारे निर्माण कार्य में लगने वाली 50 फीसदी राशि रेडक्रॉस देगा। सिद्धांता अपनी सुविधा के हिसाब से अस्पताल में जांच-ऑपरेशन फीस बढ़ा सकेगा। जिस पर रेडक्रॉस सोसायटी कभी भी कोई आपत्ति नहीं ले सकेगा। रेडक्रॉस सोसायटी के पूर्व चेयरमैन जनरल एसआर सिन्हो ने मनमाने अनुबंध पर राज्यपाल ओपी कोहली से कड़ा कदम उठाने के साथ ही कुछ सवाल भी किए हैं। पहला यह कि सिद्धांता अस्पताल के लिए रेडक्रॉस की पुरानी इमारत को तोड़कर उसका रिनोवेशन क्यों किया गया? दूसरा यह कि रेडक्रॉस सोसायटी का उद्देश्य लाभ कमाना नहीं है। जबकि सिद्धांता सुपर स्पेशियलिटी अस्पताल व्यावसायिक है। तीसरा यह कि यह जमीन लीज पर मिली है तो इसे किसी पक्ष को किराए पर देने से पहले कलेक्टर से मंजूरी क्यों नहीं ली गई? चौथा यह कि रेडक्रॉस और सिद्धांता के बीच करार को एनुअल जनरल मीिटंग (एजीएम) में क्यों नहीं रखा गया है। एजीएम के चेयरमैन राज्यपाल से मंजूरी क्यों नहीं ली गई? जनरल एसआर सिन्हो कहते हैं कि रेडक्रॉस सोसायटी को जमीन सरकार ने लीज पर दी है। सोसायटी को 1998 में करीब 40 लाख रुपए का अनुदान केंद्र और राज्य सरकार ने दिया था, जिससे इमारत बनी थी, लेकिन सरकार के लीज नियम को ताक पर रखकर सिद्धांता-रेडक्रॉस सुपर स्पेशियलिटी अस्पताल को रेडक्रॉस सोसायटी ने तीन मंजिला इमारत सौंप दी। सिद्धांता-रेडक्रॉस सुपर स्पेशियलिटी अस्पताल का संचालन करता है। इसके डायरेक्टर डॉ. सुबोध वाष्र्णेय और उपमन्यु त्रिवेदी हैं। सिन्हो कहते हैं कि रेडक्रॉस अस्पताल की इमारत को जब निजी हाथों में किराए पर सौंपने की रणनीति पर काम किया जा रहा था, तब रेडक्रॉस सोसायटी ने दिल खोलकर खर्च किया। सिद्धांता अस्पताल को तीन मंजिला बिल्डिंग सौंपने के पहले खूब काम कराए गए। रेडक्रॉस की कार्यकारिणी समिति और वित्तीय समिति ने 10 महीने में 4.36 करोड़ रुपए के काम करवाए। रेडक्रॉस से ज्यादा खर्च तो विकास के नाम पर सिद्धांता अस्पताल वाले हिस्से में हुआ। अकेले सिद्धांता सुपर स्पेशियलिटी अस्पताल के लिए करीब 2.35 करोड़ रुपए खर्च किए गए। इन 10 महीने में ही सिद्धांता से करार के अलावा आउटसोर्स को बढ़ावा दिया गया और ये सभी फैसले 20 अप्रैल 2015 को कार्यकारिणी और वित्तीय समिति बैठक में लिए गए थे। रेडक्रॉस के पूर्व चेयरमैन मुकेश नायक कहते हैं कि रेडक्रॉस की निर्वाचित मैनेजिंग कमेटी ने सारे फैसले सुपर स्पेशियलिटी सुविधाएं मरीजों को दिलाने के लिए थे। आधुनिक उपकरणों से युक्त सुविधा के लिए चिकित्सालय भवन में सभी खर्च जरूरी थे। हद तो अब यह देखिए कि रेडक्रॉस सोसायटी की इमारत और व्यावसायिक तरीके से चल रहे सिद्धांता सुपर स्पेशियलिटी अस्पताल पर नगर निगम का 3.73 करोड़ रुपए प्रॉपर्टी टैक्स बकाया है। नगर निगम ने एक लाख वर्गफीट से ज्यादा संपत्ति की गणना के हिसाब से 17 साल की टैक्स वसूली का नोटिस रेडक्रॉस सोसायटी को थमाया है। वहीं रेडक्रॉस सोसायटी चैरिटी का हवाला देकर टैक्स से छूट की बात कह रही है। इधर, निगम ने छूट से संबंधित प्रमाण नहीं मिलने पर कुर्की की तैयारी शुरू कर दी है। दरअसल, नगर निगम ने तीन माह पहले संपत्ति कर को लेकर अभियान चलाया था। इस दौरान टैक्स नहीं भरने वाले और कम गणना दिखाने वाले संस्थान, मकान, दुकान की नपती कराई। इसी दौरान खुलासा हुआ कि रेडक्रॉस सोसायटी प्रॉपर्टी टैक्स नहीं भरती है। निगम ने रेडक्रॉस और सिद्धांता के व्यावसायिक संचालन के कारण नर्सिंग होम की गणना के आधार पर बकाया टैक्स निकाला है। निगम ने रेडक्रॉस चिकित्सालय, सिद्धांता सुपर स्पेशियलिटी अस्पताल, जमीन, मेडिकल दुकान, पैथालॉजी, वर्किंग वुमन हॉस्टल, शेड सभी की नपती की। करीब 1.25 लाख स्क्वेयर फीट संपत्ति की गणना कर वर्ष 2000 से अब तक के प्रॉपर्टी टैक्स का नोटिस दिया है, जो 3 करोड़ 73 लाख 87 हजार 427 रुपए है। निगम रेडक्रॉस को अब तक आधा दर्जन नोटिस और रिमाइंडर दे चुका है। निगम अफसरों के मुताबिक नोटिस के जवाब में रेडक्रॉस सचिव राजीव नयन तिवारी ने मौखिक जानकारी देकर बताया था कि प्रमुख सचिव ने सोसायटी के लिए अध्यादेश पारित किया है। जिसमें किसी भी तरह का कर और उपकर नहीं लगाने का उल्लेख है। निगम इसके चलते किसी तरह का टैक्स सोसायटी से नहीं ले सकता है। निगम ने कई बार रिमाइंडर देकर अध्यादेश की प्रति मांगी है, जो नहीं दी गई। वार्ड 31 के प्रभारी भवानी एस गौहर कहते हैं कि रेडक्रॉस को प्रॉपर्टी टैक्स भरने के लिए दो माह में 5 से 6 रिमाइंडर दे चुके हैं। वर्ष 2000 से टैक्स बकाया निकाला गया है। उन्होंने चैरिटी पर अस्पताल चलाने और छूट का अध्यादेश होने की बात मौखिक बताई थी, लेकिन लिखित में रिकॉर्ड पेश नहीं किया है। मुख्यमंत्री के पास पहुंचा मामला रेडक्रॉस अस्पताल को निजी हाथों में सौंपने के लिए किए जा रहे षड्यंत्र का मामला मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान तक पहुंचा गया है। प्रदेश के राजस्व मंत्री उमाशंकर गुप्ता और सहकारिता राज्यमंत्री विश्वास सारंग ने इस मामले को गंभीरता से लिया है और मुख्यमंत्री को इससे अवगत कराया है। उनका कहना है कि गरीबों के इलाज के लिए स्थापित रेडक्रॉस को निजी हाथों में नहीं जाने दिया जाएगा। मशीन मालिकों के लिए फायदेमंद रेडक्रॉस राजधानी भोपाल स्थित रेडक्रॉस अस्पताल को गर्त में ले जाने का काम शुरू हो गया है। पूर्व चेयरमैन मुकेश नायक ने 3 साल पहले रेडक्रॉस को सिद्धांता को किराए पर दिया था। फिलहाल इस अस्पताल को निजी हाथों में सौंपने के लिए रेडक्रॉस सोसायटी तरह-तरह के हथकंडे अपना रही है। यहां मरीजों की जांच के लिए लगाई गई सोनोग्राफी, पैथोलॉजी लैब और एक्स-रे जैसी कई मशीनों को आटउसोर्स पर रखा गया है। इससे रेडक्रॉस को कम और इन मशीन मालिकों को ज्यादा फायदा पहुंच रहा है। यहां पदस्थ एमडी, एमएस डॉक्टरों को बिना बताए अस्पताल से निकाला जा रहा है। अस्पताल के वरिष्ठ चिकित्सक डॉ. शंकरलाल पाटीदार ने बताया कि रेडक्रॉस अस्पताल में सोनोग्राफी मशीन लम्बे समय से खराब पड़ी है। इसे इसलिए नहीं सुधरवाया जा रहा है, क्योंकि यहां मरीजों की जांच आउटसोर्स पर रखी मशीन से हो सके और इसका लाभ सीधे मशीन मालिकों को मिल सके। सूत्रों के अनुसार रेडक्रॉस अस्पताल में 50 से 60 सोनोग्राफी प्रतिदिन होती है। 50 लाख इनकम फिर भी घाटे में रेडक्रॉस रेडक्रॉस अस्पताल को गर्त में ले जाने का काम शुरू हो गया है। जिस अस्पताल की हर माह करीब 50 लाख से ज्यादा की आमदनी है, उसे प्रबंधन ने राज्यपाल को घाटे में होना बताकर निजी हाथों में सौंपने की तैयारी कर ली है। यह जानकारी रेडक्रॉस में लंबे समय से सेवा दे रहे चिकित्सकों ने दी है। उन्होंने कहा कि सिद्धांता रेडक्रॉस को टेकओवर करने प्रबंधन के साथ मिलीभगत कर रहा है। स्वेच्छा से काम करने वाले जो डॉक्टर बचे हैं, इन पर भी 4 घंटे बैठने का दबाव बनाया जा रहा है। 5 से 10 रुपए एलाउंस पर काम करने वाले डॉक्टरों का कहना है कि अस्पताल में मरीजों का सेवा भाव नहीं बचा। अस्पताल को निजी हाथों में सौंपने रेडक्रॉस सोसायटी तरह-तरह के हथकंडे अपना रही है। यहां मरीजों की जांच के लिए लगाई गई सोनोग्राफी, पैथोलॉजी लैब और एक्स-रे जैसी कई मशीनों को आटउसोर्स पर रखा गया है। - भोपाल से कुमार राजेंद्र
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