17-Oct-2017 08:25 AM
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छत्तीसगढ़ में आज किसानों के सामने अगर आप रतनजोत का नाम लें तो वो भड़क जाते हैं। उनका मानना है कि रतनजोत के कारण उनकी जिंदगी बर्बाद हो गई। असल में मामला बायोफ्यूल से जुड़ा है। छत्तीसगढ़ सरकार ने 12 साल पहले कम कीमत का हवाला देकर बायो डीजल बनाने के लिए अमरीकी मूल के रतनजोत पौधे को अपना हथियार बनाया और राज्य भर में रतनजोत लगाने की शुरुआत की। इसके लिए कई जगह सरकार ने किसानों से भी जमीन लेकर रतनजोत लगाया, लेकिन सरकार की यह स्कीम तेल न मिठाई, चूल्हे धरी कढ़ाई बनकर रह गई। यानी किसी को कोई फायदा नहीं हुआ।
छत्तीसगढ़ सरकार ने जब बायोडीजल बनाने के नाम पर पूरे छत्तीसगढ़ में रतनजोत के पौधे लगाने की शुरुआत की तो सुंदरकेरा गांव भी उसकी जद में आया। राज्य के मुख्यमंत्री रमन सिंह ने नारा दिया था- डीजल नहीं अब खाड़ी से, डीजल मिलेगा बाड़ी से। रमन सिंह ने दावा किया था कि 2014 तक छत्तीसगढ़ डीजल के मामले में आत्मनिर्भर हो जायेगा। पूरे राज्य में 1.65 लाख हेक्टेयर जमीन पर रतनजोत लगाये गये। सुंदरकेरा पंचायत की 105 एकड़ जमीन पर भी रतनजोत लगाया गया। 7 नवंबर 2006 को तत्कालीन राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम को इस गांव में बुला कर एक भव्य आयोजन किया गया और उनके हाथों रतनजोत लगवाया गया। गांव के तत्कालीन सरपंच नत्थू साहू का दावा है कि तब से अब तक उस 105 एकड़ की जमीन पर तीन बार पौधारोपण किया जा चुका है। बीज विकास निगम और रोजगार गारंटी योजना में भी पौधे लगाये गये। नत्थू साहू कहते हैं, अब एक भी पौधा नहीं बचा। रख रखाव किया ही नहीं गया। राष्ट्रपति जी ने रतनजोत का जो पौधा लगाया था, वह भी सूख गया। रतनजोत पूरा फेल हो गया। अब वहां पर दूसरे पौधे लगाये गये हैं लेकिन उसे भी उखाड़ कर वहां जलाशय बनाने की योजना है।
छत्तीसगढ़ के अधिकांश जिलों में सरकार पर आरोप लगे कि उन्होंने रतनजोत लगाने के लिये आदिवासियों को उनकी पुश्तैनी जमीनों से बेदखल कर दिया। कांकेर से लेकर बिलासपुर तक सैकड़ों ऐसे मामले सामने आए, जहां रतनजोत के लिये पुश्तैनी जमीनें छीन ली गईं। हालांकि छत्तीसगढ़ बायोफ्यूल विकास प्राधिकरण के परियोजना अधिकारी सुमित सरकार ऐसी किसी जानकारी से इंकार करते हैं। सरकार कहते हैं, अलग-अलग विभागों ने पौधे लगाए। उन्होंने क्या किया, क्या नहीं किया, इस बारे में प्राधिकरण के पास कोई जानकारी नहीं है। यह हमारे अधिकार क्षेत्र से बाहर का मामला है। सरकार यह मानते हैं कि राज्य में हर कहीं बिना तैयारी के रतनजोत के पौधे लगाये गये और उन्हें भगवान भरोसे छोड़ दिया गया। इस कारण इसके बेहतर परिणाम सामने नहीं आए।
छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन के संयोजक आलोक शुक्ला कहते हैं कि झूठे दावे और फर्जी योजनायें छत्तीसगढ़ सरकार की पहचान बन चुकी हैं। बायो डीजल का सपना दिखा कर सरकार ने पहले ही हजारों करोड़ से अधिक की रकम फूंक डाली। पहले सरकार को जनता के इन पैसों का हिसाब देना चाहिए। वह कहते हैं कि इस योजना में बड़ा घोटाला हुआ है। मामला किसानों की जमीन छिनने और अरबो रूपए स्वाहा करने का है। इसकी पड़ताल हानी चाहिए।
सरकार से अपनी जमीन वापस मांग रहे किसान
सरकार की इस स्कीम पर किसानों की पुरखों की जमीन यानी जिस पर उनके बाबा, परबाबा खेती कर अपना गुजारा करते थे, उसे सरकार ने वन विभाग की जमीन बताकर हड़प लिया और वहां रतनजोत लगा दिया गया। छत्तीसगढ़ बायोफ्यूल विकास प्राधिकरण के अनुसार इस योजना में अलग-अलग विभाग कार्यरत थे, इसलिये यह स्पष्ट नहीं है कि छत्तीसगढ़ में रतनजोत लगाने और उसके रख रखाव के नाम पर कुल कितने अरब रुपये खर्च हुए। सरकारी आंकड़ों की मानें तो 2005 से 2009 तक कम से कम 1.65 लाख हेक्टेयर इलाके में रतनजोत लगाए गए। इसे आसानी से समझना हो तो कहा जा सकता है कि सिक्किम और गोवा जैसे दो राज्यों से भी बड़े इलाके में रतनजोत लगा दिया गया, लेकिन फायदा न सरकार को हुआ न ही किसानों को। अब किसान सरकार से अपनी जमीन वापस मांग रहे हैं।
-रायपुर से टीपी सिंह के साथ संजय शुक्ला