30-May-2013 07:07 AM
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लगता है कर्नाटक की करारी हार से भारतीय जनता पार्टी ने कोई सबक नहीं लिया है। चुन-चुन कर महान भ्रष्टाचारियों को भाजपा गले लगा रही है और उनके प्रति सहानुभूति प्रकट कर रही है। पिछले

दिनों दिल्ली के राम मनोहर लोहिया अस्पताल में जब भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष राजनाथ सिंह इंडियन नेशनल लोकदल (इनेलो) के अध्यक्ष ओम प्रकाश चौटाला की मुलाकात हुई तो दोनों दलों के बीच चल रही भीतरी राजनीति का पर्दाफाश हुआ। 30 मिनट तक चली इस मुलाकात में क्या समीकरण तय किए गए इसके विषय में तो ज्ञात नहीं है किंतु राजनाथ को यूं अचानक चौटाला की याद आना आश्चर्यजनक माना जा रहा है।
वैसे भी राम मनोहर लोहिया अस्पताल राजनीतिक कैदियों की पनाहगाह माना जाता है। जो भी प्रभावशाली नेता कथित रूप से बीमार पड़ता है उसे दिल्ली शहर के बीचों-बीच राम मनोहर लोहिया अस्पताल में भेज दिया जाता है। वहां पर उससे मिलने जुलने वाले बैखोफ आ सकते हैं और राजनीति भी बखूबी चलाई जा सकती है। हरियाणा में अगले वर्ष चुनाव है इस लिहाज से इनेलो और भाजपा की नजदीकी को वहां अवश्यंभावी माना जा रहा है। चौटाला जेल से ही चुनाव लडऩे के इच्छुक हैं। उनके पुत्र भी चुनावी मैदान में उतरना चाहते हैं। यह सब सोची-समझी रणनीति के तहत किया जा रहा है ताकि आगामी चुनाव में सहानुभूति का लाभ उठाया जा सके। चौटाला के बगैर इनेलो का अस्तित्व शून्य है इसीलिए चुनावी राजनीति में उनकी कहीं न कहीं उपस्थिति दर्ज करानी ही होगी। इस लिहाज से भाजपा और इनेलो की नजदीकी कांग्रेस के लिए खतरे की घंटी साबित हो सकती है। चौटाला हरियाणा में लोकप्रिय नेता है।
गिरफ्तारी के बाद उनके प्रति जनता की सहानुभूति भी बढ़ी है। हालांकि जिस तरह के भ्रष्टाचार में आरोपित होकर वे सलाखों के पीछे पहुंचे हैं वह सरकारी रुतबे के दुरुपयोग का उत्कृष्ट उदाहरण है। भारतीय राजनीति में इस तरह के उदाहरण कई देखे जा सकते हैं, लेकिन चौटाला के खिलाफ जो कार्रवाई की गई है वह भी अपने आप में एक बड़ा उदाहरण है। हालांकि चौटाला और उनके सुपुत्र ने इस कार्रवाई को राजनीति से प्रेरित बताया है पर शिक्षक भर्ती घोटाले में जो कुछ हुआ वह साफ दिख रहा है और उसमें चौटाला परिवार की संलिप्तता भी स्पष्ट दिखाई दे रही है। इसके बावजूद राजनाथ केवल कुशल क्षेम पूछने चौटाला के पास गए हों तो कोई विशेष बात नहीं राजनीति में इतना शिष्टाचार चलता है, लेकिन यदि चौटाला को साथ लेकर चलने की कोई रणनीति है तो उसका उल्टा असर भी हो सकता है।
चौटाला व उनके बेटे अजय दोनों ही हरियाणा से विधायक हैं। दोनों को राज्य में 3,000 से ज्यादा जेबीटी शिक्षकों की अवैध भर्ती के मामले में 16 जनवरी को हिरासत में लिया गया था। अदालत ने प्रथम दृष्टया चौटाला तथा अन्य 53 के खिलाफ सबूत पाया था। सीबीआई ने छह जून, 2008 को चौटाला तथा अन्य के खिलाफ औपचारिक तौर पर आरोप तय किया था। यह मामला वर्ष 1999 और 2000 के बीच का है, जब चौटाला हरियाणा के मुख्यमंत्री थे।
उस दौरान राज्य में 3,000 से अधिक शिक्षकों की नियुक्ति की जानी थी। आरोप है कि चौटाला ने वरिष्ठ अधिकारी संजीव कुमार पर चयनित अभ्यर्थियों की सूची बदलने और झूठे तथ्यों के आधार पर उसमें कुछ चहेते अभ्यर्थियों के नाम जोडऩे के लिए दबाव बनाया था। बाद में संजीव कुमार सर्वोच्च न्यायालय गए और उन्होंने मूल रूप से चयनित अभ्यर्थियों की सूची अदालत के समक्ष पेश की।
अधिकारी ने यह भी कहा कि शिक्षकों की भर्ती में पैसे लेकर नाम बदले गए। सर्वोच्च न्यायालय ने सीबीआई को इस मामले, खासकर रिश्वत लेने के मामले की जांच करने का निर्देश दिया था। जांच एजेंसी ने आरोप पत्र दाखिल कर कहा था कि शिक्षकों की भर्ती में फर्जी दस्तावेजों का उपयोग किया गया। रोहिणी अदालत ने चौटाला को दोषी करार दिया। उनका हालांकि दावा है कि उन्हें राजनीतिक षड्यंत्र के तहत फंसाया गया है। चौटाला, उनके बेटे व अन्य को भारतीय दंड संहिता व भ्रष्टाचार निरोधक अधिनियम के तहत दोषी पाया गया। अदालत ने उनके खिलाफ आईपीसी व पीसीए की 120-बी (आपराधिक षड्यंत्र), 420 (धोखाधड़ी), 467 (जालसाजी), 468 (धोखाधड़ी के लिए जालसाजी) और 471 (वास्तविक की जगह जाली दस्तावेज का इस्तेमाल) धाराओं के तहत आरोप तय किए थे।चौटाला पूर्व उप प्रधानमंत्री देवी लाल के बेटे हैं और हरियाणा विधानसभा में विपक्ष के नेता है। वह 1999 से 2005 तक मुख्यमंत्री रहे। उनके बड़े बेटे अभय सिंह चौटाला भी विधायक हैं। चौटाला बड़ी अदालत में अपील करना चाहते हैं। उनका मामला विचाराधीन है। वहां से कितनी राहत मिल पाएगी कहना कठिन है। लेकिन इस घोटाले के ऊपर उनकी सियासत का बहुत कुछ दारोमदार है यदि सुप्रीम कोर्ट से भी सजा बरकरार रखी जाती है तो चौटाला के लिए भारी मुश्किल होगी।