02-May-2017 07:50 AM
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योगी आदित्यनाथ ने उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री बनने के एक महीने के अंदर कई बड़े फैसले देश की राजनीति की दिशा और दशा ही बदल दी है। उनके एक माह के कार्यकाल की विशेषता यह रही है कि उन्होंने घोषणाएं या वादे नहीं किए हैं, बल्कि फैसले लिए हैं। इस कारण वे इतने कम समय में मीडिया से लेकर तमाम राजनीतिक गलियारों में छाए हुए हैं। जहां भी जाओ योगी की ही चर्चा होती है। भाजपा के नेता हो या मंत्री, तमाम लोग उनके कामकाज की तारीफ करते हुए चर्चा करते हैं। साथ-साथ विपक्ष के नेता भी उन्हीं के बारे में बतियाते दिखते हैं। सभी की जुबान से यही निकलता है योगी अच्छा काम कर रहे हैं। योगी जहां भी जाते हैं आकर्षण का केंद्र रहते हैं।
राजनीतिक गलियारों में तो योगी के काम करने की तुलना मोदी से होने लगी है। राजनीतिक जानकार तो यह भी कहने लगे हैं कि मोदी के बाद का नेता योगी के तौर पर उनको मिल गया है। भाजपा और विपक्ष के नेता यह भी चर्चा करते हैं कि मोदी और योगी की मेहनत और तरीका मिलता है। प्रधानमंत्री बनने से पहले जब मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री थे, वह भी इसी प्रकार मीडिया और सबके आकर्षण का केंद्र रहा करते थे। जब वह गुजरात से दिल्ली आते थे तो मीडिया की नजर हमेशा उनको ढूंढती रहती थी। उसी प्रकार योगी भी मुख्यमंत्री बनने के बाद खास आकर्षण का केंद्र बने हुए हैं। योगी कुछ भी करते हैं वो मीडिया के लिए खबर होती है।
मुख्यमंत्री बनने से पहले योगी आदित्यनाथ की छवि बेशक कट्टर हिंदूवादी नेता की रही है और उसी अंदाज में उनके भाषण और काम दिखाई देते थे। लेकिन मुख्यमंत्री की कुर्सी संभालने के बाद वह मोदी के एजंडे पर काम कर रहे हैं। सबका साथ सबका विकास के नारे को उन्होंने उत्तर प्रदेश में लागू करने की कोशिश की है। इस बात का प्रमाण इससे लगाया जा सकता है कि उन्होंने गरीब मुस्लिम महिलाओं के लिए शादी में मेहर देने की बात की। उन्होंने हजरत अली के जन्मदिन पर ट्वीट भी किया। कहीं ना कहीं वह जो कट्टर हिंदुत्व की इमेज थी उससे बाहर आकर सभी का साथ सभी का विकास के नारे पर आगे बढऩे की बात कर रहे हैं। इसीलिए राजनीतिक गलियारों में चाहे वह भाजपा या कांग्रेस या दूसरी पार्टियों हो यही चर्चा हो रही है कि क्या भाजपा को भविष्य का दूसरा मोदी मिल गया है?
लेकिन राजनीतिक विश्लेषक यह भी मानते हैं कि अभी योगी को मुख्यमंत्री बने हुए सिर्फ एक ही महीना हुआ है। अभी उनके काम का मूल्यांकन करना जल्दी होगा। अभी तो यह भी देखना होगा कि जितनी घोषणाएं योगी ने की हैं, जो वादे वह कर रहे हैं, जमीन पर कितना कर पाएंगे। इसलिए मोदी या किसी भी नेता से उनकी तुलना अभी जल्दबाजी होगी। वैसे भी 2019 के लिए तो एनडीए और भाजपा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में ही चुनाव लडऩे की बात कर चुका है। इसलिए योगी को पहले तो उत्तर प्रदेश से 2019 में लोकसभा चुनाव में ज्यादा से ज्यादा सीटें जीतकर देनी होंगी। तभी उनके काम का मुल्यांकन हो पाएगा। मुख्यमंत्री बनते ही योगी ने उत्तर प्रदेश की कानून व्यवस्था का मुद्दा, किसानों की दुर्दशा या उनके विकास का मुद्दा, महिलाओं की सुरक्षा का मुद्दा, इन सभी पर काम करना शुरु कर दिया। मोदी अंदाज में योगी ने भी उत्तर प्रदेश में सभी विभागों को काम करने का एक टारगेट दिया। योगी ने आते ही शिक्षा, स्वास्थ्य, किसान और आम आदमी के लिए योजनाओं की बात की।
सीएम दफ्तर से जुड़े लोग बताते हैं कि योगी ने अपने अब तक के कार्यकाल में दफ्तर को तय वक्त से ज्यादा ही समय दिया है। आमतौर पर वो आधी रात तक काम करते हैं। लेकिन यह जरूर कहना होगा कि दफ्तरों में नौकरशाही की सुस्ती पर, संस्थागत रूप में चलने वाली भ्रष्ट प्रथाओं पर और वर्क कल्चर के बदलाव में फिलहाल योगी बेअसर साबित नजर आते हैं। जनता दरबार के जरिए आम आदमी की सीएम तक पहुंच बनाने का योगी का फैसला सराहनीय रहा है। हालांकि, मायावती ने जनता दरबार के पारंपरिक अभ्यास को बंद कर दिया था। पीएम मोदी के आह्वान पर योगी और उनके मंत्रियों ने वीआईपी कल्चर के खिलाफ अपने नौकरशाहों से लाल व नीली बत्तियां हटाने को कह तो दिया है, लेकिन जिस 15-20 गाडिय़ों के लंबे-चौड़े काफिले के साथ अखिलेश यादव चलते थे, योगी भी उसे वैसे ही इस्तेमाल कर रहे हैं। हाल कमोबेश योगी के मंत्रियों का भी उनके जैसा ही है, जो देश के सबसे घनी आबादी वाले सूबे में अपनी चौधराहट को फिलहाल तो कम होते नहीं देखना चाह रहे।
कसौटी पर योगी और उनका राज
दरअसल, कई वर्षों तक प्रचंड सांप्रदायिक राजनीति करने के बाद और खुद एक कट्टर हिंदुत्ववादी आंदोलन को शक्ल देने के बाद जब सीएम आदित्यनाथ योगी ने नया अवतार लिया, तो उनका नारा था, किसी से भेदभाव नहीं और किसी का मनुहार नहीं, लेकिन उनके इस नारे पर लोग काफी देख-परख कर ही भरोसा करेंगे। क्योंकि सवाल ये है कि क्या ये नारा महज एक राजनीतिक मजबूरी में दिया गया है, क्या एक कट्टर मुस्लिम विरोधी चेहरा रहे योगी आदित्यनाथ केवल गद्दी पर बैठने के कारण ऐसा कह रहे हैं? क्योंकि ये सच है कि कई बार सत्ता की शक्ति, विचारधारा से अधिक शक्तिशाली हो जाती है। यह कहा जा सकता है कि आदित्यनाथ योगी ने अवैध बूचडख़ानों को बैन करके और एंटी रोमियो जैसी मुहिम के जरिए चर्चा बटोरी है और अपने समर्थकों की वाह वाही भी, लेकिन सच ये है कि जिन अधिकारियों की बदौलत ये गैर-लाइसेंसी बूचडख़ाने चल रहे थे, उन पर योगी सरकार ने कोई कार्रवाई नहीं की। वहीं योगी यह कहते जरूर रहे कि एंटी रोमियो दल किसी निर्दोष को तंग नहीं करे। लेकिन यह साफ देखा जा सकता था कि पुलिस या फिर योगी की सेना कही जाने वाली हिंदू युवा वाहिनी के सदस्यों ने बेकसूर लोगों का शोषण किया, उन मामलों में योगी ने कोई कार्रवाई नहीं की। ऐसे में जनता योगी और उनकी सरकार को कसौटी पर जांच रही है।
-मधु आलोक निगम