फिर शाह के एजेंडे पर बिहार
02-May-2017 07:14 AM 1234842
बिहार में पुरानी भाजपा का सौहाद्र्रपूर्ण प्रस्थान हो चुका है और नित्यानंद राय की नई टीम में सामाजिक समीकरण पर आधारित 80 फीसदी नए चेहरे हैं। पदाधिकारियों में अध्यक्ष समेत 32 लोगों की टीम है जिसमें महज पांच ही पुराने चेहरे हैं। भाजपा के एक नेता कहते हैं, पहली बार बिहार भाजपा की टीम उन तमाम घोषित गुटों से मुक्त होकर स्वच्छंदता के साथ सिर्फ मोदी-शाह के रंग में नए युग का सूत्रपात करने जा रही है जो 2020 में उत्तर प्रदेश की तर्ज पर ही नई इबारत लिखने का माद्दा रखने वाली है। भाजपा की इस रणनीति के पीछे 2015 के विधानसभा चुनाव से मिले सबक भी हैं जब पार्टी सामाजिक समीकरण की बिसात में पिछड़ गई थी। बिहार में लालू यादव ने नीतीश कुमार के साथ महागठबंधन बनाकर जिस तरह रसातल में जा रही पार्टी को फिर से सत्ता में पहुंचाया और चतुराई के साथ विरासत अपने बेटों को सौंप दी, उससे सतर्क शाह ने सबसे पहले यादव समुदाय के ही नित्यानंद राय को प्रदेश अध्यक्ष के रूप में आगे बढ़ाया। इसके पीछे पार्टी की रणनीति लालू के बाद यादव वोट बैंक को उनके बेटे तेजस्वी यादव के साथ जाने से रोकने के साथ-साथ अगड़ों, पिछड़ों-अतिपिछड़ों और दलितों को मिलाकर नया सामाजिक ताना-बाना तैयार करना ही था। भाजपा अगले चुनाव में नेता या बेटा (नित्यानंद बनाम तेजस्वी) का कार्ड उछालने की आधारशिला रख रही है। दरअसल यूपी की जीत के बाद बिहार भाजपा ने उसी जीत वाले फॉर्मूले पर टीम गठित की है। राय की नई टीम गुटों से मुक्ति की ओर है जहां स्थापित नेताओं को टीम गठन में तरजीह देने की बजाय विशुद्ध रूप से सांगठनिक कुशलता, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नया भारत बनाने के इरादे और संघ के प्रति प्रतिबद्धता को पैमाना बनाया गया है। पूरी तरह शाह की सोच पर बनी नित्यानंद राय की टीम में विवादास्पद लालबाबू प्रसाद, पुरानी टीम में अहम रहे सूरज नंदन कुशवाहा, सुधीर शर्मा जैसे अहम चेहरों को जगह नहीं दी गई है जो सुशील मोदी गुट विशेष के सारथी माने जाते थे और राज्य संगठन पर यह गुट हावी था। हालांकि मीडिया प्रबंधन और समन्वय के लिए पहचाने जाने वाले पूर्व उपाध्यक्ष और प्रवक्ता रहे संजय मयूख को पदोन्नत करते हुए शाह ने दिल्ली बुलाकर मीडिया विभाग का राष्ट्रीय सह प्रमुख बनाया है। इस टीम में 50 की उम्र पार करने वाले महज सात पदाधिकारी हैं। राय कहते हैं, संगठन की यह सोच कि युवा देश की ताकत है, उसको ध्यान में रखते हुए अगड़े-पिछड़े-नौजवान-दलित-महिला को टीम में जगह दी गई है। लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि बुजुर्ग किनारे कर दिए गए। हमारी टीम बुजर्गों की सहभागिता के साथ नौजवानों की प्राथमिकता वाली है जो बिहार की आकांक्षाओं को पूरा करने वाली है। राय के साथ बिहार भाजपा के प्रभारी महासचिव भूपेंद्र यादव कहते हैं, काम करने वाले जुझारू लोगों की टीम है। नए चेहरों और जेएनयू से पढ़कर गांवों में काम करने वालों के साथ समाज के सभी क्षेत्र-वर्ग को प्रतिनिधित्व दिया गया है। इस टीम में 32 में से 17 चेहरे दलित-महादलित-पिछड़ा-अतिपिछड़ा वर्ग से हैं। 5-5 भूमिहार और ब्राह्मण, 4-4 राजपूत और वैश्य, 2-2 कुशवाहा और यादव और 1-1 कुर्मी, कायस्थ, सहनी, तांती, चंद्रवंशी, दलित और धानुक हैं। टीम में महिलाओं की संख्या चार है। इसके अलावा संगठन मंत्री नागेंद्र सवर्ण तो सह संगठन मंत्री शिवनारायण महतो ओबीसी से आते हैं। यानी राय की टीम पूरी तरह संतुलित है। मोदी-शाह और संघ की छाया राय की टीम में शाह की यूपी की जिताऊ रणनीति की झलक साफ दिख रही है। महासचिव बनाए गए प्रमोद चंद्रवंशी कहार समुदाय से आते हैं और पिछले तीन साल में ओबीसी को लेकर संघ-भाजपा की मुहिम में तेजी लाने वाले प्रमुख नेताओं में शामिल हैं। संघ पृष्ठभूमि से एबीवीपी में काम कर चुके चंद्रवंशी ऐसे खांटी नेता हैं जो सुर्खियों से दूर खामोशी के साथ काम करने में भरोसा रखते हैं। महासचिव बनाए गए राधामोहन शर्मा भूमिहार हैं और संघ के जमीनी कार्यकर्ता हैं। झारखंड के संगठन महासचिव रहे राजेंद्र सिंह को महासचिव बनाया गया है। भाजपा की झारखंड में सरकार बनने में इनका बड़ा योगदान है। इनका नाम प्रदेश अध्यक्ष की दौड़ में भी था। महासचिव बनाए गए सुशील चौधरी और उपाध्यक्ष बनाए गए पूर्व पत्रकार देवेश कुमार एक साथ जेएनयू से पढ़े हैं। - विनोद बक्सरी
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