डीएसएस बनाम आरएसएस?
17-Apr-2017 05:58 AM 1234896
देश में आज जिस तरह भाजपा का विस्तार हो रहा है और कई राज्यों में पार्टी की सरकार बनी है उसके पीछे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की भूमिका महत्वपूर्ण मानी जा रही है। ऐसे में अब हर पार्टी संघ की तरह संगठन बनाने की कवायद में जुट गई है। इसी कड़ी में राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी)  प्रमुख लालू प्रसाद यादव के बड़े बेटे और बिहार के स्वास्थ्य मंत्री तेज प्रताप यादव ने पूरे देशभर में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के खिलाफ संघर्ष करने की घोषणा की। उन्होंने आरएसएस का मुकाबला करने के लिए धर्मनिरपेक्ष स्वयंसेवक संघ (डीएसएस) को मजबूत करने की घोषणा की। ज्ञातव्य है कि लोकसभा चुनावों के दौरान उन्होंने एक संगठन धर्मनिरपेक्ष स्वयंसेवक संघ (डीएसएस) का गठन किया था। इस संगठन के बैनर तले दो अप्रैल को पटना में पहला सार्वजनिक कार्यक्रम आयोजित किया गया।  इस दौरान रथ यात्रा भी निकाली गई। रथयात्रा की अगुवाई करते हुए अपने समर्थकों के साथ चल रहे तेज प्रताप ने कहा कि संगठन का प्रमुख एजेण्डा आरएसएस और उसके सहयोगी संगठनों के खिलाफ निर्णायक संघर्ष करना और उसे माकूल जवाब देना है। उनका कहना है कि आज आरएसएस धार्मिक कट्टरपन फैला रहा है, अपने विध्वंसात्मक आदर्शों को देश में हवा दे रहा है लेकिन डीएसएस उसको माकूल जवाब देगा। रथयात्रा के दौरान मौजूद रहे एक सामाजिक शोधकर्ता खुर्शीद अकबर, जो इन दिनों पटना में ही हैं, कहते हैं कि यह यात्रा इस मायने में सफल कही जा सकती है कि भीषण गर्मी के बाद भी बिहार की जिलों से हजारों कार्यकर्ता रैली में भाग लेने पटना आए हुए थे, उनमें उत्साह भरा हुआ था। आरएसएस और उसके आनुषांगिक संगठनों के संतुलित और विश्वसनीय ढंग से उत्थान के मद्देनजर युवा मंत्री के इस सूत्रपात को एक सकारात्मक संकेत के रूप में देखा जा सकता है। हालांकि, बड़ा सवाल यह है कि आरएसएस, जिसका हिन्दुत्ववादी नारा है और इस संगठन में लाखों प्रतिबद्ध कार्यकर्ता हैं, को डीएसएस किस तरह माकूल जवाब देने की योजना बनाएगा। हाल के वर्षों में संघ का फैलाव बिहार के साथ ही अन्य राज्यों में भी हुआ है। इसे सभी ने देखा भी है। तेज प्रताप का यह नवाचार इसलिए भी महत्वपूर्ण है कि अब तक उन्हें अपने छोटे भाई तेजस्वी यादव जो बिहार के उपमुख्यमंत्री हैं, की तुलना में एक अनिच्छुक राजनेता के रूप में देखा गया है। उनके इस ट्रैक रिकॉर्ड को देखते हुए युवा नेता के लिए आरएसएस से लोहा लेना और उसे टक्कर देना एक कठिन काम होगा, लेकिन कई लोगों का कहना है कि यदि डीएसएस बिहार में विभाजनकारी ताकतों को अनुकूलता के साथ काउंटर करने का प्रबंध कर लेता है तो यह विश्वसनीय उपलब्धि होगी। विश्वसनीय उपलब्धि हासिल करने के लिए डीएसएस और उसके नेता तेज प्रताप के लिए यह जरूरी होगा कि वे शब्दों की हवाबाजी और शब्दों के आडम्बर से परे जाएं। जमीन पर ढेर सारे काम किए जाने की जरूरत है। हिन्दुत्ववादी ताकतें विचारों की स्पष्टता और क्रियाशीलता के आधार पर लड़ सकती हैं लेकिन इसका अभाव अब उनमें देखा जा सकता है। डीएसएस की वेबसाइट पर उसके जो उद्देश्य लिखे गए हैं, वे उस एक एनजीओ के उद्देश्यों की तरह से हैं जिसका उद्देश्य वंचित वर्ग के लोगों के सशक्तिकरण के लिए काम करना है। किसी के पास गैर-सरकारी संगठनों के खिलाफ कहने को कुछ भी नहीं है लेकिन किसी को यह भी समझना होगा कि कोई भी एनजीओ अपने कार्यक्रमों के साथ संघ जैसे हजारों कार्यकर्ताओं वाले संगठन से नहीं लड़ सकता। यह एक पूर्णकालिक राजनीतिक मिशन है जिसे वैचारिक स्पष्टता और एक मजबूत संगठनात्मक संरचना की आवश्यकता है। रथयात्रा की सबसे बड़ी बातों में से एक बात यह है कि यह आरजेडी के कार्यकर्ताओं या मंत्री के समर्थकों का शो था। बड़ी संख्या में राजद समर्थकों के रैली में भाग लेने में कुछ भी गलत नहीं है, लेकिन यदि यह सिर्फ राजद कार्यकर्ता हैं तो इससे संगठन के उद्देश्यों को नुकसान हो सकता है। डीएसएस के साथ एक समस्या यह भी है कि वर्तमान में यही लगता है कि यह किसी व्यक्ति का पॉकेट ऑर्गनाइजेशन है। इसे व्यक्तिपरक संगठन के मुकाबले आदर्शवाद-आधारित प्लेटफार्म के रूप में तब्दील करना चाहिए, तभी यह आरएसएस से मुकाबले लायक बन सकेगा। कहीं दांव उल्टा न पड़ जाए सौभाग्यवश आज भी बिहार में ऐसे लोगों की कमी नहीं है। दूसरे शब्दों में, यदि तेज प्रताप वाकई में अपने उद्देश्यों के प्रति गम्भीर हैं और कुछ करने की इच्छा रखते हैं तो उन्हें तुरन्त ही कार्यकर्ताओं तक पहुंच बनानी चाहिए, अपेक्षाकृत उनके, जो उनकी पार्टी में ही हैं। वरना यह संगठन राजद के एक अन्य फ्रंटल संगठन में तब्दील होकर खत्म हो जाएगा। सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण तो यह है कि यह बात भी ध्यान में रखी जानी चाहिए कि जनता के सामने किस तरह का संदेश जाए। कहना न होगा कि सबसे छोटी गड़बड़ी भी हिन्दुत्ववादी ताकतों को मजबूत करने में उनकी मदद कर सकती हैं। एक बात और, तेज प्रताप को खुद को लम्बी दौड़ के लिए तैयार रहना चाहिए। उन्हें यह याद रखना चाहिए कि राजनीति में जो बात सबसे अधिक मायने रखती है, वह इरादा नहीं, बल्कि धारणा होती है। डीएसएस के गठन के पीछे उनका इरादा महान हो सकता है, नेक हो सकता है लेकिन अगर संदेश गलत चला गया तो यह उलटा और महंगा पड़ सकता है। क्योंकि संघ देश का इकलौता ऐसा सामाजिक संगठन है जिसके स्वयंसेवक गांव-गांव में सक्रिय हैं। जबकि डीएसएस अभी अंकुरित हो रहा है। - विनोद बक्सरी
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